tag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post2767752019616928515..comments2023-10-25T05:42:29.254-07:00Comments on भड़ास: संवेदनाओं के ड्रैकुला वणिक के दांत, चमकाने के अलग.... खून चूसने के अलगआर्यावर्त डेस्कhttp://www.blogger.com/profile/13966455816318490615noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-18707029309064740852009-02-23T02:29:00.000-08:002009-02-23T02:29:00.000-08:00आप सब देख रहे हैं कि ये वणिक अपनी दुकान में अभी भी...<B>आप सब देख रहे हैं कि ये वणिक अपनी दुकान में अभी भी पौने छह सौ भड़ासी बताता है जबकि इसने खुद ही न जाने कितने लोगों की सदस्यता समाप्त कर दी है, कौन पूछने जाता है कि कितने हैं रही बात पंखों(fans) की तो इस तरह के लोग या तो पाठक वर्ग के होते हैं या फिर भेड़चाल चलने वाले..... आप एक कनिष्का की बात कर रहे हैं इस संवेदनाओं के हत्यारे ने तो भड़ास के दर्शन को ही मार कर उसका "ममी" बना रखा है जिस पर सारी दुकान सजी है। उसकी दुकान में रखे अधिकतर डिब्बे खाली हैं किसी में बारूद नहीं है जो आग रच सकें...<BR/>जय जय भड़ास</B>डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)https://www.blogger.com/profile/13368132639758320994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-27799558109408316952009-02-22T11:10:00.000-08:002009-02-22T11:10:00.000-08:00भाई अजय,वनिक, ग्रामीण,देहाती,बाटी चोखा और पता नही ...भाई अजय,<BR/>वनिक, ग्रामीण,देहाती,बाटी चोखा और पता नही क्या क्या का भ्रम दिखा कर ये नौटंकी लोगों को गुमराह कर रहा है, मगर गुमराह होने वाले लोग नए ब्लोगेर हैं. पुराने लोग इसकी हद्कातों को जान चुके हैं इसे पहचान चुके हैं सो सारे इस से किनारा कर चुके हैं, <BR/>रही बात रखने की या हटाने की तो इसे पता है की जो भड़ास से जा चुके हैं उसके पोस्ट और लिंक हटाने के बाद इसके पास दिखाने को कुछ न बचेगा जिस पर ये अपना दूकान चला रहा है. भड़ास के लेखकों की लाश पर अपनी दूकानदारी चलने वाला बनिया अपना दूकान चलने के लिए किसी का भी गू खा सकता है.<BR/>जय जय भड़ासAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-54764024194905790382009-02-22T10:01:00.000-08:002009-02-22T10:01:00.000-08:00अजय भाईसाहब एक आप हैं जो पलकें चीर-चीर कर लोगों को...अजय भाईसाहब एक आप हैं जो पलकें चीर-चीर कर लोगों को सच दिखाने की कोशिश कर रहे हैं और दूसरी तरफ ये व्योम श्रीवास्तव के नाम से लिखने वाला यशवंत का भड़वा संजय सेन कैसा अंधा बना हुआ है<BR/>जय जय भड़ासरम्भा हसनhttps://www.blogger.com/profile/16451846701148658865noreply@blogger.com