tag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post6285404385582306283..comments2023-10-25T05:42:29.254-07:00Comments on भड़ास: जैन धर्म क्या है ?आर्यावर्त डेस्कhttp://www.blogger.com/profile/13966455816318490615noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-48246432102277055022012-07-12T01:17:47.028-07:002012-07-12T01:17:47.028-07:00वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना...वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी आम मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार एवं मानवीय मूल्यों के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-3773937587408425792012-07-12T01:17:17.997-07:002012-07-12T01:17:17.997-07:00वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना...वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी आम मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार एवं मानवीय मूल्यों के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-15522801692997686082012-06-17T21:34:52.557-07:002012-06-17T21:34:52.557-07:00धर्म का अर्थ - मनुष्य द्वारा सत्य, न्याय एवं नीति ...धर्म का अर्थ - मनुष्य द्वारा सत्य, न्याय एवं नीति (सदाचरण) को धारण करके, कर्म करना धर्म है ।<br />असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म होता है ।<br />सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । <br />ईश्वर या स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । वर्तमान न्यायपालिका भी यही कार्य करती है ।<br />धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।<br />धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । <br />व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -<br />राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।<br />धर्म सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।<br />धर्म एवं ‘ईश्वर की उपासना, दान, पुण्य द्वारा मोक्ष’ एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है । धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।<br />राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है ।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-69230153895915318912009-06-05T12:43:02.971-07:002009-06-05T12:43:02.971-07:00आदरणीय महावीर जी ,
विनोबा भावेजी का सन्देश भेज...आदरणीय महावीर जी , <br />विनोबा भावेजी का सन्देश भेजने के लिए हार्दिक धन्यवाद ,<br /> आपका <br /> अमित जैनdr amit jainhttps://www.blogger.com/profile/05568646394497826829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-34363660977458311482009-06-04T21:25:37.591-07:002009-06-04T21:25:37.591-07:00आदरणीय महावीर जी
प्रणाम
भड़ास एक लोकतांत्रिक मंच है...आदरणीय महावीर जी<br />प्रणाम<br />भड़ास एक लोकतांत्रिक मंच है जिस पर लोग बातचीत के द्वारा एक बेहतर समाज और राष्ट्र का निर्माण कर सकें,धार्मिक विवाद समाप्त हो सकें ऐसा सत्प्रयास जारी रहता है। इस मंच की लोकतांत्रिक स्थिति तो इतना अधिक स्पष्ट है कि शायद आप और अमित भाई भी जानते हों कि मेरे ही इस ब्लाग पर मुझ पर माफ़िया डान दाउद इब्राहिम से धन पाने का आरोप खुल कर एक सदस्य ने सिर्फ़ इसलिये लगाया था क्योंकि शायद वे भ्रमित थे कि मैं मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिये भड़ास का दुरुपयोग कर रहा हूं। अमित भाई ने विकिपीडिया से लेकर जो जानकारी प्रस्तुत करी है साधुवाद के पात्र हैं। यदि कोई वैचारिक मतभेद हैं तो उन्हें चर्चा और विमर्श से ही सुलझाया जा सकता है बम और बंदूक से समस्याएं हल नहीं होती हैं। आपका प्रेम भड़ास और मुझ पर बना रहे व आप समय-समय पर मार्गदर्शन देंगे साथ ही विमर्श में हिस्सा लेंगे इस बात का पूर्ण विश्वास है<br />जय जय भड़ासडॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)https://www.blogger.com/profile/13368132639758320994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-55441797307215518132009-06-04T15:01:01.435-07:002009-06-04T15:01:01.435-07:00भाई अमित जैन (जोक्पीडिया ),
हमारे मित्र रुपशजी क...भाई अमित जैन (जोक्पीडिया ), <br /><br />हमारे मित्र रुपशजी के ब्लोग पर जैन धर्म कि आपने जो व्याख्या कि वो सटीक के साथ साथ वर्तमान समय के लिऐ प्रासगिक भी लगी। वैसे दुनिया को हजारो साल पुराने जैन धर्म के बारे मे भली भॉती जानकारी होगी ही इसमे कोई सन्देह नही। फिर भी आपने जो प्रयास किया किया वह हम सभी के लिऐ उपयोगी मगलकारी साबित हो ईश्वर से मेरी यह ही प्रार्थना है। वैसे भाई रुपेशजी के विचारो से एवम लेखनी से मै प्रभावित हू।<br /><br />अमितजी मै आपके अवलोकनार्थ सन्त विनोबा भावे द्वारा "जैन धर्म-सार" पर किया गया कार्य एवम उनके एक सन्देश के अन्श भेज रहा हू पढकर आत्मसात करे-शेषकुशल- लिखते रहे ऐसी मेरी शुभकामानाऐ।<br /><br />आपका अपना<br />महावीर बी सेमलानी<br /><br /><br />-----------------------------<br />विनोबा भावेजी का सन्देश <br />---------------------------<br />महोदय,<br />जैन-धर्म-सार ग्रन्थ के आरम्भ में सन्त विनोबाजी ने अपने निवेदन में कहा है -"कि सर्व-धर्म-समन्वय और दिलों को जोड़ने की दृष्टि से उन्होंने धम्मपद नवसंहिता तैयार की, ऋग्वेद-सार, मनु-शासनम्, भागवत-धर्म-सार, अष्टादशी, कुरान-सार, ख्रिस्त-धर्म-सार आदि धर्म-ग्रन्थों का सार निकाला है, उसी तरह से जैन-धर्म का सार भी निकले, ऐसी उनकी तीव्र भावना बहुत दिनों से थी।"<br />उसके अनुसार उनके दिशा-दर्शन में जैन-समाज के प्रमुख साधक-तपस्वी श्री जिनेन्द्र वर्णीजी ने अखण्ड परिश्रम करके जैन-धर्म-सार ग्रन्थ का संकलन तैयार किया है। <br /><br />विज्ञान ने दुनिया छोटी बना दी, और वह सब मानवों को नजदीक लाना चाहता है। ऐसी हालत में मानव-समाज संप्रदायों में बँटा रहे, यह कैसे चलेगा? हमें एक-दूसरे को ठीक से समझना होगा। एक-दूसरे का गुणग्रहण करना होगा।<br />अतः आज सर्वधर्म-समन्वय की आवश्यकता उत्पन्न हुई है। इसलिए गौण-मुख्य-विवेकपूर्वक धर्मग्रंथों से कुछ वचनों का चयन करना होगा। सार-सार ले लिया जाय, असार छोड़ दिया जाय, जैसे कि हम संतरे के छिलके को छोड़ देते हैं, उसके अन्दर का सार ग्रहण कर लेते हैं।<br />इसी उद्देश्य से मैंने `गीता' के बारे में अपने विचार `गीता-प्रवचन' के जरिये लोगों के सामने पेश किये थे और `धम्मपद' की पुनर्रचना की थी। बाद में `कुरान-सार', `ख्रिस्त-धर्म-सार', `ऋग्वेद-सार', `भागवत-धर्म-सार', `नामघोषा-सार' आदि समाज के सामने प्रस्तुत किये।<br />मैंने बहुत दफा कहा था कि इसी तरह जैन-धर्म का सार बतानेवाली किताब भी निकलनी चाहिए। उस विचार के अनुसार यह किताब श्री जिनेंद्र वर्णीजी ने तैयार की है। बहुत मेहनत इसमें की गयी है। यह आवृत्ति तो सिर्फ विद्वद्जन के लिए ही निकाली जा रही है। <br />जैसे हिन्दुओं की `गीता' है, बौद्धों का `धम्मपद' है, वैसे ही जैन-धर्म का सार सबको मिल जायगा।<br />`बुद्ध और महावीर भारतीय आकाश के दो उज्ज्वल रत्न हैं। .......बुद्ध और महावीर दोनों कर्मवीर थे। लेखन-वृत्ति उनमें नहीं थी। वे निर्ग्रन्थ थे। कोई शास्त्र-रचना उन्होंने नहीं की। पर वे जो बोलते जाते थे, उसीमें से शास्त्र बनते जाते थे, उनका बोलना सहज होता था। उनकी बिखरी हुई वाणी का संग्रह भी पीछे से लोगों को एकत्र करना पड़ा।"<br />बरसों तक भूदान के निमित्त भारतभर में मेरी पदयात्रा चली, जिसका एकमात्र उद्देश्य दिलों को जोड़ने का रहा है। बल्कि, मेरी जिन्दगी के कुल काम दिलों को जोड़ने के एकमात्र उद्देश्य से प्रेरित हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन में भी वही प्रेरणा है। मैं आशा करता हूँ, परमात्मा की कृपा से वह सफल होगी।<br />विनोबा भावे<br />ब्रह्म-विद्या मन्दिर, पवनार<br />१-१२-'७३MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगरhttps://www.blogger.com/profile/12686479234497210080noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-13282964993613431082009-06-04T11:32:31.862-07:002009-06-04T11:32:31.862-07:00सुल्ताना बहन हम सब मे कोई भी विरोधाभाष नहीं है ,
...सुल्ताना बहन हम सब मे कोई भी विरोधाभाष नहीं है ,<br /> सब लोग यहाँ पर बड़े ही मानसिक रूप से दुरुस्त है ,<br /> धर्म जैसा विषय किसी को भी लड़ने के लिए तैयार नहीं कर सकता , <br />यदि आप कुछ कहेगी तो भी कोई धर्म वही रहेगा जो है ,<br /> और यदि मै भी कुछ कहुगा तो भी वही रहेगा , बात सिर्फ नजरिये की है ,<br /> मै तो मानता हु की हम सब का धर्म इंसानियत ,<br /> प्रेम ,<br /> विस्वाश ,<br /> दया ,<br /> स्त्रियों के परती सम्मान ,.<br /> बच्चो के पर्ती प्यार , <br />बुजुर्गो के लिए सेवा से भरा हो तो वो धर्म है अन्यथा वो धर्म ही नहीं हैdr amit jainhttps://www.blogger.com/profile/05568646394497826829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-60074792477049239802009-06-03T20:05:26.389-07:002009-06-03T20:05:26.389-07:00इस विवाद पर डॉ.रूपेश जी ने जो कहा उसमें आनंद आ गया...इस विवाद पर डॉ.रूपेश जी ने जो कहा उसमें आनंद आ गया कि इस ग्रह पर धर्म के नाम पर जितनी हत्याएं हुई हैं उससे अधिक अन्य किसी वजह से नहीं। मैं किसी धर्म,मत या सम्प्रदाय के बारे में टिप्पणी करने से डरती हूं क्योंकि अभी मैं दिमागी तौर पर डॉ.रूपेश जी की तरह मार खाने के लिये तैयार नहीं हूं। बस इतना बताना चाहती हूं कि डॉ.रूपेश जी के घर पर एक गुजराती लिपि में छपी पुस्तक "जैन धर्म सउथी प्राचीन अने जीवंत धर्म" मैंने देखा था लेकिन ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि भाई के घर पर तो इतनी किताबें हैं कि वे किताबों से ही घिरे रहते हैं। अमित भाई धर्म बड़ा ही संवेदनशील विषय है आप जैन धर्म समझने-पढ़ने को कहेंगे,गुफ़रान भाई इस्लाम पढ़ने-समझने को कहेंगे,मुनेन्द्र भाई सनातन धर्म और बेहद उलझा हुआ हिंदू धर्म जानने समझने का आग्रह करेंगे और इसी में छोटी सी जिंदगी बीत जाएगी,इंसानियत की बातें सभी करते हैं लेकिन आप सब देखिये कि आप सब में कितना स्पष्ट विरोधाभास है अगर आप सब इंसानियत की बात पर एक हैं तो फिर इतनी भिन्नता क्यों है?आवरण बेहद पतला लेकिन अभेद्य है इस दुराग्रह का इसके पार जा पाना बस डॉ.रूपेश जी के बस में ही जान पड़ता है जो इतनी सरलता(ढिठाई)से कह सकते हैं कि वे टार्ज़न जैसे हैं :)<br />जय जय भड़ासमुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہhttps://www.blogger.com/profile/07581617208915603720noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-85845860299992457392009-06-03T13:04:51.261-07:002009-06-03T13:04:51.261-07:00यदि डॉ साहब आप को किसी बात से बुरा लगा हो तो मे उस...यदि डॉ साहब आप को किसी बात से बुरा लगा हो तो मे उस के लिए दिल से खेद parkat करता हु , लकिन मेरा कोई भी इरादा किसी को भी , किसी भी रूप मे , गलत कहना नहीं था , मे सिर्फ जैन धर्म के बारे मे किसी भी को bharanti दूर करना चाहता हुdr amit jainhttps://www.blogger.com/profile/05568646394497826829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-79097543124401583482009-06-03T13:00:33.493-07:002009-06-03T13:00:33.493-07:00सोनी भाई आप ने कहा की जैन भी अलाप्संखायक है , जी...सोनी भाई आप ने कहा की जैन भी अलाप्संखायक है , जी बिलकुल सही कहा है , जहा तक मेरी जानकारी है , देलही मे जैन भाई ये कानूनी रूप से हो गए है , रही बात अदालत मे जाते ही भगवत गीता की शपथ लेन की तो उस मे कोई भी अदालत अब गीता को ही लेने के लिए नहीं कहती है , यदि आप जैन धर्म की किसी धार्मिक पुस्तक का उपयोग करना चाहते है (शपथ लेने के लिए तो आप कर सकते है ) / आप का कहना की भगवन राम या कृषण स्वीकार है की नहीं , तो मै उस के जवाब मे आप को कुछ जैन साहित्य पड़ने का अनुरोध करुगा / रही बात भाई बुरा मानने की , दोस्त यदि हम सब लोग सिर्फ धर्म की बातो पर लड़ेगे तो हम और आप जैसा मुर्ख कोई नहीं है , लड़ने से पहले हमे उन ग्रंथो को पढना चहिये / ताकि हम सब बातो को जानने के बाद ही कोई बात कहे ना की कुछ समाज विरोधी तत्वों द्वारा फैलाये गई अफवाहों को हवा दे कर वमंसय फैलेdr amit jainhttps://www.blogger.com/profile/05568646394497826829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-48066817895559278192009-06-02T23:11:40.238-07:002009-06-02T23:11:40.238-07:00अमित भाई आप सवालों के जवाब देने आगे आए इसके लिये ध...अमित भाई आप सवालों के जवाब देने आगे आए इसके लिये धन्यवाद स्वीकारिये क्योंकि जिनसे सवाल करा गया था वो तो कन्नी काट गए, खैर जाने दीजिए। आप बस इतना बता दीजिए कि भारत में कानूनी तौर पर अल्पसंख्यक सिख,ईसाई,मुस्लिम आदि सभी अपने-अपने धर्म ग्रन्थों की शपथ लेते हैं लेकिन जैन भी अल्पसंख्यक हैं लेकिन अदालत में जाते ही हिंदू धर्म के कानूनी तौर पर स्वीकारे गए धर्मग्रन्थ भगवदगीता की शपथ लेते हैं तब वे हिंदुओं का एक सम्प्रदाय हो जाते हैं और अदालत से बाहर आते ही फिर जैन बन जाते हैं ये क्या चक्कर है इसका उत्तर अवश्य दीजिये लेकिन ये मत कहियेगा कि गीता तो सबका ग्रन्थ है वगैरह-वगैरह....। सीधा उत्तर हो न कि गोलमाल घुमा फिरा कर दिया हुआ। अगर आपको गीता स्वीकार है तो क्या भगवान राम व क्रष्ण आदि हिंदू मानयताओं के आराध्य पूज्यनीय हैं? इस विषय पर अभी बहुत कुछ बाकी है आशा है आप दुखी व परेशान न होंगे बल्कि संयत रह कर इस मंच का सदुपयोग करेंगे। ये सवाल मेरा है इस पर डा.रूपेश जैसे व्यक्ति को मत बीच में लाइये उन्होंने तो मात्र पोस्ट अपनी तरफ से कर दी थी। यदि अन्य कोई भी इस चर्चा में हिस्सा लेना चाहे तो सीधे ईमेल द्वारा बिना भड़ास का सदस्य बने पोस्ट करके अपने विचार bharhaas.bhadas@blogger.com पर मेल कर दे<br />जय जय भड़ासमुनेन्द्र सोनीhttps://www.blogger.com/profile/01045795613217822984noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4413051685021810107.post-37959102013322159922009-06-02T10:42:14.176-07:002009-06-02T10:42:14.176-07:00अमित भाई यकीन मानिये कि मैं किसी धर्म में विश्वास ...अमित भाई यकीन मानिये कि मैं किसी धर्म में विश्वास नहीं रखता जो इंसानियत से परे हो फिर दिशाभ्रम होने का प्रश्न ही नहीं है। ये पोस्ट मात्र एक सवाल जैसी है जो उन बंदों ने मेरे आगे रखा इसमें मेरा कोई निजी दुराग्रह नहीं है। मैं तो टार्जन की तरह हूं बस एक पशु जैसा मानव जैसा बनाने वाले ने बनाया मैं धर्म जैसे विषय पर और ईश्वर जैसी जटिल पहेली पर बात करने के लायक खुद को नहीं पाता हूं,मरने के बाद सत्य देख लूंगा जीते जी एक ही बात देखी है कि इस ग्रह पर जितनी हत्याएं धर्म जैसे करुणा के विषय के कारण हुईं हैं और किसी कारण से नहीं हुईं जब से मानव विकसित हुआ। तो भाई मैं तो धर्म विषयक चर्चा से ही बाज़ आया....<br />जय जय भड़ासडॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)https://www.blogger.com/profile/13368132639758320994noreply@blogger.com