कोरोना पर साम्प्रदायिक वायरस का संक्रमण

गुरुवार, 16 अप्रैल 2020


कोरोना वायरस पर साम्प्रदायिक वायरस का संक्रमण
-जयसिंह रावत
कोरोना महामारी के महासंकट में तब्लीगियों के शोर में लोग भूल ही गये कि यह विपत्ति कहां उत्पन्न हुयी और कहां-कहां उत्पात मचाने के बाद भारत पहुंची। आजकल तो केवल कोराना जिहाद और जमाती या तब्लीगी बमों की चर्चाएं इस संकट को कई गुना बढ़ा रही हैं। तब्लीगी मरकज वालों ने गैर जिम्मेदाराना हरकत से अक्षम्य अपराध तो किया ही है जिसे जाहिलों ने और अधिक फैलाने का गुनाह किया, लेकिन वे लोग और भी अधिक खतरनाक खेल खेल रहे हैं जो कि संकट की इस घड़ी में कोरोना वायरस के अंदर साम्प्रदायिक वायरस डाल कर उसे सोशियल एवं अन्य मीडिया के माध्यम से समाज के उस बड़े हिस्से को भी संक्रमित कर रहे हैं जो कि कोरोना से अभी तक अछूता ही है। भारत सरकार ने नफरत की इस बीमारी की नब्ज तो पकड़ ली मगर इलाज से कतरा गयी।
सोशियल मीडिया में जो कुछ चल रहा है उससे भारत सरकार अनविज्ञ नहीं है। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने भी स्वीकार किया है कि सोशल मीडिया पर कुछ समुदायों और स्थानों को गलत जानकारियों के आधार पर संक्रमण फैलाने का दोषी ठहराया जा रहा है तथा इस तरह के पूर्वाग्रह पूर्ण दोषारोपण को तत्काल रोका जाना जरूरी है। गत 8 अप्रैल को जारी भारत सरकार की इस एडवाइजरी ने सीधे-सीधे लक्ष्य किये जा रहे मुस्लिम वर्ग का नाम तो नहीं लिया मगर उसका इशारा बहुत ही स्पष्ट है। सरकार की इस एडवाइजरी से स्पष्ट हो जाता है कि सोशियल मीडिया पर मुसलमान व्यवसाइयों द्वारा फलों को चाट कर बेचने, नर्सों पर छींकने और थूकने, करेंसी नोटों को चाटने एवं तब्लीगियों द्वारा बसों में थूकने जैसे जो वीडियो वायल हो रहे हैं वे सब फर्जी हैं और हिन्दू और मुसलमानों के बीच नफरत फैलाने के लिये वायरल किये जा रहे हैं। यही नहीं भारत सरकार ने एडवाइजरी में स्पष्ट कर दिया है कि किसी समुदाय या स्थान को कोरोना संक्रमण फैलने के लिये दोषी नहीं ठहराया जाए। सरकार के इस स्पष्टीकरण का इशारा भी स्पष्ट है।
कोरोना के महासंकट से निपटने के लिये जहां सम्पूर्ण मानव बिरादरी को एकजुट होकर इन असाधारण परिस्थितियों का सामना करने के लिये सहयोग और एकजुटता की आवाजें राजनीतिक सीमाओं को भी तोड़ रही हैं वहीं हमारे देश में कुछ गैरजिम्मेदार लोग वायरस के अंदर भी साम्प्रदायिक विद्वेष का वायरस भर कर भय और चिंता, लोगों और समुदायों के विरुद्ध पूर्वाग्रह तथा सामाजिक अलगाव का संक्रमण फैला रहे हैं। दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में पिछले महीने हुए तबलीगी जमात के एक धार्मिक कार्यक्रम के बाद कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में तेजी से हुई वृद्धि और देश के विभिन्न हिस्सों में यह महामारी फैलने से कोहराम मचना तो स्वाभाविक ही है। आरोप तो यह भी है कि उनकी जांच ही साम्प्रदायिकता बढ़ाने केइरादे से की गयी।तिरुपति मंदिर और वैष्णोदेवीमंदिर  में जमा लगभग 40 हजार लोगों की जांच नहीं की गयी। अगर उनकी जांच भी होती तो उनमें भी संक्रमण की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता था। दिल्ली में ही मजनू के टीले के एक गुरुद्वारे में इसी तरह लगभग 600 लोग फंसे हुये थे। मरकज के मौजूदा संचालकों की यह हरकत भी अक्षम्य है, क्योंकि जमातियों में शामिल कुछ जाहिलों के कारण महामारी का संक्रमण बहुत तेजी से फैला है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सारे मुसलमान तबलीगी कारोना बम बन गये हों। इस एक गलती के कारण तब्लीगी मरकज को राष्ट्रद्रोही साबित करने में मीडिया का एक वर्ग भी दिन रात एक किये हुये है। जबकि इस मरकज से जुड़े महान देशभक्तों का राष्टीय आन्दोलन और राष्ट्र निर्माण में उल्लेखनीय योगदान भी रहा।  गत 30 जनवरी को चीन के बुहान विश्वविद्यालय में मेडिकल की पढ़ाई कर रही छात्रा भारत की पहलीं संक्रमित लड़की थी जिसे उसके दो अन्य सहपाठियों के साथ भारत लाया गया था। यह लड़की मुसलमान नहीं थी। इसके बाद मार्च में केरल का ही इटली से लौटा हुआ एक 3 साल का लड़का अपने परिवार समेत संक्रमित पाया गया था और वह भी मुसलमान नहीं था। यह महामारी कोई दबे पांव पैदल चल कर झुग्गी झोपड़ियों में अचानक प्रकट नहीं हुयी, बल्कि समाज के साधन सम्पन्न वर्ग के लोगों द्वारा देश विदेश से हवाई जाहजों के माध्यम से भारत में लाई गयी है।
संकट के लिये दूसरों को बलि का बकरा बनाने या दूसरों पर आरोप थोपने की मनोवृति नयी नहीं है। चौदहवीं शताब्दी में बूबोनिक प्लेग फैलने के लिये यहूदियों पर कुओं को जहरीला बनाने का अरोप लगा था। सन् 1341 से 1351 तक यूरोप में प्लेग महामारी के चरमकाल में अफवाहों के कारण विभिन्न शहरों में 200 से अधिक यहूदी बस्तियों को मिटा दिया गया था। अमेरिका में हैती के लोगों को एड्स के संवाहक मान कर उनके साथ भेदभाव और उत्पीड़न की घटनाएं तो हाल ही में नब्बे के दशक की हैं। सन् 1321 में फ्रांस में कुष्ट रोगियों के बारे में अफवाह फैली कि वे बीमारी फैलाने के लिये झरनों, कुंओं और नदियों में बीमारी फैलने वाला पाउडर डाल कर प्रदूषित कर रहे हैं। इसके बाद सारे कुष्ट रोगी गिरफ्तार कर जेल में डाले गये और कुछ कोढ़ियों को लोगों ने जिन्दा तक जलाया। हमारे देश में चुड़ैल और जादू टोना कर लोगो को मारने के आरोप में जाने कितने लोग मारे गये। कोविड-19 की महामारी भी अफवाहों के भंवरों से गुजरते हुये ही ‘‘कोरोना जिहाद’’ तक पहुंची है। इससे पहले कोई इसे चीन द्वारा जैविक हथियार के परीक्षण का नतीजा मान रहा था तो कोई इसे अमरीका की साजिश बता रहा था। अब एक मजहब विशेष के प्रति डाह या प्रतिद्वन्दिता के चलते हिसाब चुकता करने के लिये नयी अफवाहें गढ़ी जा रही हैंं जिनके आधार पर राजनीतिक दलों के संबिद पात्रा जैसे प्रवक्ताओं और अर्णव गोस्वामी जैसे दुराग्रही  एंकरों (जो पत्रकार हैं ही नहीं) को भी भड़ास निकालने का मौका मिल गया है। 
इस महामारी पर हमारी सरकार और उसका तंत्र देर से ही सही मगर जीत अवश्य ही हासिल कर लेगा। लेकिन जिस तरह सुनियोजित तरीके से अफवाहें फैला कर देश के 20 करोड़ से अधिक मुस्लिम आबादी को लक्ष्य किया जा रहा है वह भविष्य के लिये बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। इस  बेहद गैरजिम्मेदाराना और खतरनाक हरकत से चिन्तित भारत सरकार को एडवाइजरी जारी करनी पड़ी है, जिसमें कहा गया कि, ‘‘किसी संक्रामक बीमारी के फैलने से उपजी जन स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों के कारण पैदा होने वाले भय और चिंता, लोगों और समुदायों के विरुद्ध पूर्वाग्रह तथा सामाजिक अलगाव को बढ़ावा देती है। इस तरह के बर्ताव से आपसी बैर भाव, अराजकता और अनावश्यक सामाजिक बाधायें बढ़ती हैं।’’ लेकिन इस साम्प्रदायिक वायरस से निपटने के लिये केवल एडवाइजरी से काम नहीं चलेगा। इसके लिये जहरीले लोगों की जुबान बंद करने के साथ ही अफवाहबाजों पर लगाम लगानी पड़ेगी, लेकिन लगाम लगेगी कैस? इनमें ज्यादातर तो सत्ताधारी दल के ‘‘स्कूल ऑफ थॉट्स’’ के जमाती हैं।
उत्तराखण्ड के एक गांव में अपनी धार्मिक पहचान छिपाने के लिये नाम बदल कर सब्जियां बेचने वाले युवकों को स्थानीय लोगों ने संदेह होने पर पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया। कुछ स्थानों पर वर्ग विशेष के सब्जी विक्रेताओं की सस्ती सब्जियांे के बजाय दूसरे वर्ग के विक्रेता की महंगी सब्जियां खरीदना। उत्तराखण्ड में ही बदरीनाथ के विधायक द्वारा मजहब विशेष के सब्जी विक्रेताओं से सब्जी ही नहीं बल्कि उनसे सम्बन्धित सभी व्यवहारों का वहिष्कार करने का आवाहन करना समाज में अविश्वास की जड़ों के गहराने का ही एक सबूत है। इन विधायक महोदय ने तो उत्तराखण्ड में मस्जिदों का तक विरोध कर डाला। भाजपा के राजकुमार ठुकराल संजय गुप्ता जैसे विधायक तो बेरोकटोक मजहब विशेष के प्रति आये दिन जहर उगलते रहते हैं। अगर भाजपा इन विधायकांे से सहमत नही ंतो इनके खिलाफ कार्यवाही कर इनका मुंह बंद क्यों नहीं करती? हिन्दू और मुसलमानों की सामाजिक और आर्थिक गतिविधियां इस तरह से आपस में जुड़ी हुयी हैं जिन्हें अलग करना लगभग नामुमकिन ही है। यहां तक कि रक्षा बंधन के लिये राखियां और कांवड़ियों के लिये कांवड़ भी मुसलमान ही बनाते हैं। अगर इस तरह अलगाव और अविश्वास का माहौल गहराता गया तो सारी व्यवस्था ही चरमरा जायेगी। जिससे देश कमजोर होगा और दुश्मनों के मंसूबे ही पूरे होंगे।
सामाजिक विद्वेष इस कदर फैलाया जा रहा है कि अशफाकुल्ला खान जैसे क्रांतिकारियों का कोई नामलेवा नहीं रह गया। वैसे विचारधारा के कारण भगतसिंह और चन्द्रशेखर आजाद का कोई महत्व नहीं रह गया तो 1857 की गदर में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ फतवा जारी करने के जुर्म में फांसी पर लटकाये गये 34 उलमेमाओं को कौन पूछेगा? आज दमोदर सावरकार के कालापानी की जेल में उत्पीड़न की पीड़ा तो जरूर महसूस की जा रही है मगर उसी कालापानी जेल में अत्याचार सहते हुये दम तोड़ने वाले फजल--हक की कुर्बानी को याद करने वाला कोई नहीं है। उस दौरान 200 से अधिक उलेमा जेल भेज गये थे जिनमें से कई माल्टा की जेलों में ठूंसे गये। भारत-पाक बंटवारे का विरोध करने वाले मौलानदा मदनी, अब्दुल कलाम आजा, सैफुद्दीन किचलू, एवं अब्बास अली जैसे राष्ट्र नायकों के योगदान को कभी लव जेहाद तो कभी कारोना जेहाद के नाम पर मिटाने का प्रयास किया जा रहा है। अगर तब्लीगी मरकज से गलती हो गयी तो दारुल उलूम देवबंद जैसी इस्लामिक अध्ययन केन्द्र मरकज की आलोचना करने के साथ ही लॉकडाउन का सख्ती से पालन करने का आवाहन कर चुके हैं। दारुल उलूम ने भी इस देश को कई स्कालर ही नहीं राष्ट्रनायक भी दिये हैं
जिस आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत देश में लॉकडाउन लागू किया गया है उसकी धारा 54 के तहत झूठी खबर या अफवाह फैलाने के मामले में भी एक साल जेल की सजा प्रावधान तो है ही लेकिन उससे भी पहले भारतीय दण्ड संहिता की धारा 505, 153 और 499 आदि में भी झूठी खबरें फैलाना तथा किसी वर्ग विशेष के प्रति नफरत फैलाना दंडनीय अपराध है। अगर कोई व्यक्ति दो समूह, धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, रिहायश या भाषा के नाम पर नफरत फैलाता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा-153 के तहत मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 54 में प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति आपदा के बारे में गलत चेतावनी देता है, या इसकी गंभीरता के बारे में चेतावनी देता है, जिससे घबराहट फैलती है, जोकि वह जानता है कि झूठी है, तो उसका यह कृत्य इस धारा के अंतर्गत दंडनीय होगा। इस धारा के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति ऐसा प्रयास करता है कि इस आपदा या उसकी गंभीरता के सम्बन्ध में आम जनता के बीच आतंक का फैलाव हो तो उसे इस धारा के अंतर्गत दण्डित किया जा सकता है। सरकार स्वयं स्वीकार कर रही है कि एक वर्ग विशेष के के खिलाफ अफवाहें फैला कर बैर भाव बढ़ाया जा रहा है और उसके बाद भी साम्प्रदायिक सोच के भाजपा समर्थक अफवाहबाजों को खुली छूट मिलना हैरानी की बात है।
जयसिंह रावत
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