अहिंसा मेरे विश्वास का पहला नियम है ..

शनिवार, 14 मार्च 2009

महात्मा गाँधी अहिंसा को अपना धर्म मानते थे । इसलिए असहयोग आन्दोलन के दौरान हिंसा होने पर उन्होंने आन्दोलन वापस लेने का फैसला लिया था । इस कदम की आलोचना भी हुई पर उन्होंने अहिंसा के नाम पर समझौता नही किया । असहयोग आन्दोलन उनका अपना चलाया गया आन्दोलन था अतः वापस लेने अधिकार केवल उन्हें ही था । हालांकि इससे जनता के बिच कुछ निराशा जरुर हुई लेकिन जल्द ही उनके अनुयायी गांवों में रचनात्मक कार्यों में लग गए । यही रचनात्मक कार्य अगले आन्दोलन की नींव रखने वाले थे । सच बात तो यह है की गाँधी जी के पास हमेशा कोई न कोई काम रहता ही था । वे कभी भी खाली नही बैठे ।
अहिंसा मेरे विश्वास का पहला नियम है । यही मेरे विश्वास का अन्तिम नियम भी है । ये कथन गाँधी जी का है । इन वाक्यों हमें समझ आता है की उनके लिए अहिंसा के मायने क्या थे ?

4 टिप्पणियाँ:

मनोज द्विवेदी ने कहा…

vishwas ko banaye rakhiye..har saflata ke liye vishwas sabse badi punji hoti hai.

अजय कुमार झा ने कहा…

markandey jee,
bahut achhee baat kahee aapne, mujhe to lagtaa hai vartmaan haalaaton mein ve aadarsh jayada auchityapurn lagte hain.

mark rai ने कहा…

jee manoj jee vishwaas to banaaye rakhna hi padega...

ajay jeeaap ki baat bilkul sahi hai...aaj in mulyon ki hame jyaada jarurat hai..

बेनामी ने कहा…

भाई,
भड़ास का भी पहला नियम अहिंसा ही है.
लगे रहिये.
जय जय भड़ास

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