मौलाना एजाज़ अहमद इदरीसी के घर यदि बहन से मुँह ढंक कर कोई बलात्कार करना चाहे तो उसका स्वागत है

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

हमारे लिये ये कोई पहली बार ऐसा नहीं है कि पत्राकारिता के दौरान मतभेदों के चलते विवाद न हुए हों,कभी किसी ने भड़ास पर महिला या लैंगिक विकलाँग सदस्यों के साथ बेहूदगी न करी हो। ब्लॉग पर लिखने वाले या पढ़ने वाले लोग कुछ भिन्न तो होते नहीं है वे ही हैं जो हमारे आसपास अपनी नातिन या बेटी की उम्र की लड़की को देख कर लार टपका रहे होते हैं| आज से कुछ समय पहले एक भले मानस हैं राज सिंह जिनका पत्रा है राजसिंहासन से... जिसमें सुरेश चिपलूणकर के नाम से किसी ने तकनीकी कलाबाजी दिखाते हुए मेरे बारे में लिखा था कि मैं मुंबई में सी-बीच पर बीस रुपये में बिक रहा हूँ । इस टिप्पणी को राजसिंह ने बड़ी अच्छी तरह से सहेज कर लगा रखा था। जब राज सिंह के साथ ही सुरेश चिपलूणकर को पेला गया तो उन्होंने स्पष्ट करा कि ये उन्होंने नहीं बल्कि किसी महाहरामी किस्म के बंदे के साइन इन करके ओपन आईडी से कलाकारी करी है। निःसंदेह मैं सुरेश चिपलूणकर से कई बातों से सहमत नहीं रहता हूँ तो भी इस बात पर लगा कि शायद उन्हें अकारण पेला गया लेकिन क्या करते हम ठहरे गंवार,भदेसी किस्म के लोग तो जिसका मुखौटा था उसी को गरिया दिया और इस सारे मामले में टिप्पणी सजाए रखने वाले राजसिंह की भी चंपी करना जरूरी था क्योंकि ब्लॉग के सारे तकनीकी अधिकार राजसिंह के पास थे वो चाहते तो टिप्पणी को हटा सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं करा जिसके कारण भड़ासियों ने उन्हें उनके इस सुकर्म के लिये जीभर कर सराहा था। यहाँ तक कि जब वे एक ब्लॉगर मीट में मिले भी तो उस प्रकरण का जिक्र करे बिना न रह सके। अब ऐसा कैसे हो सकता था कि राजसिंह जैसे महासज्जन व्यक्ति हमारी चपल चंचल भड़ासिन फ़रहीन नाज़ को देख कर चुप रह जाते तो परिचय पूछा लेकिन नाम के बाद जैसे ही बताया कि ब्लॉग का नाम है भड़ास तो राजसिंह ने ऐसा मुँह बना लिआ जैसे कि करेले के जूस में कालानमक और डीजल मिला कर उन्हें चार गिलास एक साथ पिला दिए गये हों।
एक हज़रत हैं(पता नहीं अब थे हो चुके हों तो कोई आइडिया नहीं है वैसे कभी कभी फोन करते हैं और हर बार दुहाई देते हैं उस प्रकरण की) उनके ब्लॉग पर भी फ़रहीन ने कुछ टिप्पणी करी थी तो अश्लीलता भरा प्रतिकार करा गया था, मैं जानता हूँ कि ब्लॉग का मॉडरेटर चाहे तो उसके ब्लॉग पर कोई मादरजात किसी किस्म की खुराफ़ात नहीं कर सकता है। लेकिन ये लोग ऐसा नहीं करते और जब इनके इस छिछोरपन का विरोध हम भड़ासी अंदाज़ में करते हैं तो रोना शुरू कर देते हैं कि हम ब्लॉगिंग बंद कर देंगे, तो इनके सहलाने वाले भी अपने अपने बिलों से निकल कर आ जाते हैं और भड़ास का विरोध बिना पूरे मुद्दे को जाने समझे ही करने लगते हैं,इनके पास निंदा और भर्त्सना जैसे शब्द रिजर्व में रखे रहते हैं जिन्हें ये ऐसे मौकों पर बौद्धिकता की जुगाली करते हुए प्रयोग करते हैं।

अभी हाल ही में ऐसा ही एक अत्यंत ताज़गी भरा प्रकरण फिर हुआ है इस बार मुँह ढंक कर बौद्धिक बलात्कार करने वाले को एक इस्लाम की दुहाई देने वाले स्वयंभू मौलाना ने अपने ब्लॉग रूपी घर में शरण दे रखी है। इसका कारण ये है कि हमारी युवा भड़ासिन फ़रहीन नाज़ ने इनके ब्लॉग पर एक टिप्पणी करी जो कि इन्हें भी नागवार गुजर रही है लेकिन शायद खुद खुल कर वैचारिक बलात्कार नहीं कर सकते तो अपना ही मुँह ढंक कर या अपने किसी भाई(लैंगिकता स्पष्ट नही है लेकिन लिंगधारी होने का लिखित दावा कर रहा है भला बेनामी का भी लिंग होता है?) से एक टिप्पणी कराई है जो कि फ़रहीन नाज़ का पता ये लिख कर माँग रहा है कि जब से देखा है तब से उसका खड़ा है। इस टिप्पणी को स्वयंभू नवमौलाना एजाज़ अहमद इदरीसी ने बड़े सम्मान के साथ सजा रखा है। इस बात की तुलना इस बात से सीधे ही करी जा सकती है कि यदि इन मौलाना महाशय के घर अगर कोई बहन से बलात्कार करे और अपना मुँह ढंक ले तो ये उसे अपने घर में बैठाए रहते हैं टिप्पणी न हटाने और इस अश्लील टिप्पणी को सजा कर रखने और विरोध न करने का आशय तो यही है। ये शायद उन्हीं लोगों की जमात में सिरमौर हैं जो कि औरत के बोलने पर उसे नंगा करके बीच बाजार में खड़ा करने का डर दिखाते हुए अपनी जिंदगी पार कर लेते हैं, धार्मिक आचरण के नाम पर शोषण करना अपना हक़ जताते हैं। ये हमेशा दिमाग से नहीं कमर के नीचे के अंग से सोचते हैं वरना औरत के हक़ की बात करने वाले में इतनी शर्म तो होगी ही कि वो अपने घर में मुँह ढंक कर आए शैतान को लिंग खड़ा करके बहन के साथ बलात्कार करने को व्यग्र को न बैठाएं बल्कि जूते मार कर घर से निकाल दें। ये हैं इस्लाम की शिक्षा का प्रचार करने वाले जिन्हें इस्लाम भी अपने ही चश्में से दिखता है औरत के हक़ में यदि बोलेंगे तो सिर्फ़ ये ही बोलेंगे अगर किसी औरत ने अपने हक़ में विमर्श करने की जुर्रत भी करी तो उसे सरेबाजार नंगा कर लेंगे कि नाज़ो ज्यादा न भांजो क्योंकि ये मानते हैं कि पश्चिमी औरत ही विचार विमर्श कर सकती है। ये शब्द का जवाब पत्थर से देते हैं शायद ये वो ही हैं जिन्होंने "औरत के हक़ में" पुस्तक लिखने वाली तस्लीमा नसरीन को टीवी कैमरे के सामने पीटना अपनी मर्दानगी समझा है। जहालत इस हद तक है कि ये शब्द का उत्तर शब्द में दे ही नहीं सकते अभी भी हर मसले का हल तलवार से निकालना चाहते हैं और सारी की सारी बंदूक चलेगी दुनिया बनाने वाले के कंधे पर।
जय जय भड़ास

3 टिप्पणियाँ:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

आपने एकदम वाजिब फारमाया ! हालाकि आपके लेख का शीर्षक आपतिजनक लगे, लेकिन इन गंदी ब्रीड के लोगो के लिए इससे बेहतर किस्म के शब्द इस्तेमाल करना भी नाइंसाफी होगी ! अफ़सोस होता है यह देख कर कि इनके ज्यादातरों की सोच ही इतनी घटिया है ! बाहर दिखावे को बहले मानस भले ही बन रहे हो लेकिन अन्दर यही सब गंद इनके भरा है ! दूसरों को तो बड़े-बड़े सबक देंगे मगर खुद की गिरेबान में झांककर ये कायर इन्हें एक कठोर टिपण्णी नहीं दे पाते !

ये कहते फिरते है कि हमारा धर्म बहुत महान है, मेरा यह कहना है कि जिस धर्म के अनुशरण से ऐसे घटिया और गिरे चरित्र के अनुयायी पैदा होते है वह धर्म महान कैसे हो सकता है ?

दीनबन्धु ने कहा…

भाई गोंदियाल जी,आपने पूरे प्रकरण को कदाचित ठीक से समझा नहीं है ये बात एक स्त्री के मान से संबंधित है। अपमान चाहे प्योर ब्रीड वाला करे या हाइब्रिड किस्म का कमीना उसको नंगा करके उसकी शराफ़त के ढोल को फोड़ कर औकात बताना हमारे लिये जीवन शैली है चाहे वह फ़रहीन नाज़ हो या मनीषा दीदी के लिये करी गयी अश्लील बातें। भड़ासी किसी को अनर्गल परेशान कतई नहीं करते।
जय जय भड़ास

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