राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंचे यशवंत
मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

सेवा में,
मानवाधिकार आयोग
दिल्ली / लखनऊ
विषय-  तीन महिलाओं को 12 घंटे तक थाने में बंधक बनाए रखने के मामले में दोषी  पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर आवश्यक कार्यवाही करने हेतु
श्रीमान जी,
मैं  यशवंत सिंह पुत्र श्री लालजी सिंह निवासी ग्राम  अलीपुर बनगांवा थाना  नंदगंज, जनपद  गाजीपुर, उत्तर प्रदेश (हाल पता- ए-1107, जीडी कालोनी, मयूर  विहार फेज-3, दिल्ली-96) हूँ. मैं वर्तमान में दिल्ली स्थित एक वेब मीडिया  कंपनी भड़ास4मीडिया में कार्यरत हूं. इस कंपनी के पोर्टल का वेब पता  www.bhadas4media.com  है. मैं इस पोर्टल में सीईओ & एडिटर के पद पर हूं. इससे पहले मैं  दैनिक जागरण, अमर उजाला एवं अन्य अखबारों में कार्यरत रहा हूँ. पिछले दिनों  दिनांक  12-10-2010 को समय लगभग 10 बजे रात को मुझे गाजीपुर जिले के  नंदगंज थाने के अपने गाँव अलीपुर बनगांवा से मेरे मोबाइल नंबर 9999330099  पर मेरे परिवार के कई लोगों के फोन आए. फोन पर बताया गया कि स्थानीय थाना  नंदगंज की पुलिस ने मेरी मां श्रीमती यमुना सिंह, मेरी चाची श्रीमती रीता  सिंह पत्नी श्री रामजी सिंह और मेरे चचेरे भाई की पत्नी श्रीमती सीमा सिंह  पत्नी श्री रविकांत सिंह को घर से जबरन उठा लिया. मुझे बताई गयी सूचना के  अनुसार यह बात लगभग साढ़े आठ से साढ़े नौ बजे रात  की होगी. फ़ोन करने वाले  ने यह भी बताया कि पूछने पर पुलिस वालों ने कहा कि ऐसा गाजीपुर के पुलिस  अधीक्षक श्री रवि कुमार लोकू    तथा पुलिस के अन्य उच्चाधिकारियों यथा  बृजलाल आदि के निर्देश पर हो रहा है और गाँव में ही दिनांक 12-10-2010 को  हुयी श्री शमशेर सिंह की हत्या में नामजद अभियुक्तों श्री राजेश दुबे उर्फ  टुन्नू तथा रविकांत सिंह की गिरफ्तारी नहीं हो सकने के कारण इन्हीं महिलाओं  को इस मामले में दवाब बनाने के लिए थाने ले जाना पड़ रहा है. फ़ोन करने  वाले ने यह भी बताया कि ये लोग उनके साथ भी काफी बदतमीजी से पेश आये थे.  उसके बाद नंदगंज की पुलिस ने रात भर इन तीनों महिलाओं को थाने में बंधक  बनाए रखा. मैंने इस सम्बन्ध में तुरंत लखनऊ व गाजीपुर के मीडिया के अपने  वरिष्ठ साथियों से संपर्क किया और उनसे अनुरोध किया कि वे थाने जा कर या  किसी को भेजकर महिलाओं को थाने में बंधक बनाकर रखे जाने के प्रकरण का सुबूत  के लिए वीडियो बना लें और फोटो भी खींच लें या खिंचवा लें ताकि इस मामले  में कल के लिए सबूत रहे. उस रात तो नहीं, लेकिन अगले दिन दोपहर से पहले कुछ  रिपोर्टरों ने नंदगंज थाने में जाकर बंधक बनाई गई महिलाओं से बातचीत करते  हुए वीडयो टेप बना लिया और तस्वीरें भी ले लीं. उनमें से कुछ तस्वीरों व  वीडियो को इस शिकायती पत्र के साथ संलग्न कर रहा हूं.
इसके बाद मैंने यथासंभव हर जगह संपर्क किया जिसमे इन लोगों ने निम्न अधिकारियों से वार्ता की-
1. गाजीपुर के पुलिस अधीक्षक रवि कुमार लोकू
2. वाराणसी परिक्षेत्र के आईजी आरबी सिंह या बीआर सिंह
3. नंदगंज थाने के थानेदार राय
लखनऊ  के कुछ मित्रों ने लखनऊ में पदस्थ पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों, जो पूरे  प्रदेश में कानून व्यवस्था व पुलिस महकमे का काम देखते हैं, से बातचीत की.  सभी जगहों से एक ही जवाब मिला कि हत्या का मामला है, हत्यारोपी का सरेंडर  कराओ, महिलाएं छोड़ दी जाएंगी वरना थाने में ही बंधक बनाकर रखी जाएंगी.  गाजीपुर व वाराणसी परिक्षेत्र के पुलिस अधिकारियों ने यह भी कहा कि यह  प्रकरण ऊपर से देखा जा रहा है, शासन का बहुत दवाब है और स्वयं पुलिस  महानिदेशक कर्मवीर सिंह इस मामले को देख रहे हैं इसीलिए उनके स्तर से कोई  भी मदद संभव नहीं है.
फिर मैंने अपने पुराने मित्र श्री शलभ मणि तिवारी,  ब्यूरो प्रमुख, आईबीएन ७, लखनऊ से संपर्क किया और पूरा माजरा बताया.  उन्होंने स्वयं श्री बृज लाल, जो इस समय अपर पुलिस महानिदेशक क़ानून और  व्यवस्था, उत्तर प्रदेश हैं, से दिनांक 12-1-2010 को संपर्क किया किन्तु  उन्होंने भी आपराधिक और गंभीर घटना बताने हुए और यह कहते हुए कि जब तक  मुख्य मुलजिम गिरफ्तार नहीं हो जायेंगे, तब तक मदद संभव नहीं है, बात को  वहीँ रहने दिया.
अंत में दिनांक 13-10-2010 को दोपहर बाद करीब एक या 2  बजे मेरी माँ और बाकी दोनों महिलाओं को तभी छोड़ा गया जब मेरे चचेरे भाई  श्री  रविकांत सिंह ने अचानक थाने पहुंचकर सरेंडर कर दिया. यहां मैं साफ कर  देना चाहता हूं कि मेरा व मेरे चाचा का परिवार पिछले कई दशक से अलग रहता  है और सबके चूल्हा चौके व दरो-दीवार अलग-अलग हैं.
महिलाओं से संबंधित  कानून साफ़-साफ़ यह बात कहते हैं कि महिलाओं को किसी भी कीमत में थाने पर  अकारण नहीं लाया जा सकता है. उनकी गिरफ्तारी के समय और थाने में रहने के  दौरान महिला पुलिसकर्मियों का रहना अनिवार्य है. दंड प्रक्रिया संहिता की  धारा 160 के अनुसार उन्हें पूछताछ तक के लिए थाने नहीं ला सकते, बल्कि उनके  घर पुलिस को जाना पड़ता है. इसी संहिता की धारा 50 के अनुसार यहाँ तक उन  स्थानों के सर्च के लिए भी जहां महिलायें हो, महिला पुलिस का रहना अनिवार्य  है. इन सबके बावजूद इन तीन महिलाओं को थाने में शाम से लेकर अगले दिन  दोपहर तक बिठाये रखना न केवल शर्मनाक है बल्कि साफ़ तौर पर क़ानून का खुला  उल्लंघन है. इसके साथ यह मामला माननीय उच्चतम न्यायालय की भी सीधी अवमानना  है क्योंकि डीके बासु बनाम पश्चिम बंगाल सरकार के प्रकरण में माननीय  न्यायालय ने जितने तमाम गिरफ्तारी सम्बन्धी निर्देश दिए हैं, उन सबों का  साफ़ उल्लंघन किया गया है. वह भी तब जब कि माननीय सर्वोच्चा न्यायालय के  आदेश पर डीके बासु का यह निर्णय हर थाने पर लगा होता है, नंदगंज में भी  होगा.
मैं इस सम्बन्ध में हर तरह के मौखिक और अभिलेखीय साक्ष्य भी  प्रस्तुत कर सकता हूँ जिसके अनुसार नेरी मां व अन्य महिलाओं को थाने में  बिठाए जाने के बाद थाने में बैठी महिलाओं की तस्वीरें व वीडियो मेरे पास  सप्रमाण हैं. यह सब बंधक बनाए जाने के घटनाक्रम के सुबूत हैं. कुछ तस्वीरों  व वीडियो को प्रमाण के रूप में यहां सलग्न कर रहा हूं.
साथ ही अगले दिन  पुनः स्पेशल आपरेशन ग्रुप (एसओजी) के लोग बिना किसी नोटिस, चेतावनी और  आग्रह के सादी वर्दी में सीधे मेरे गांव के पैतृक घर में घुसकर छोटे भाई के  बेडरूम तक में चले गए और वहां से छोटे भाई की पत्नी से छीनाझपटी कर मोबाइल  व अन्य सामान छीनने की कोशिश की. छोटे भाई व अन्य कई निर्दोष युवकों को  थाने में देर रात तक रखा गया. इस सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के ही एक आईपीएस  अधिकारी श्री अमिताभ ठाकुर से जब मैंने वार्ता की और उन्होंने  उच्चाधिकारियों से वार्ता की तब जाकर रात में मेरे भाई भगवंत सिंह और अन्य  लोगों को छोड़ा गया. इन सभी कारणों से मेरे परिवार के सभी सदस्यों को पुलिस  से जानमाल का खतरा उत्पन्न हो गया है और जिस तरह की हरकत स्थानीय अधिकारी व  पुलिस के लोग कर रहे हैं, उससे लग रहा है कि उनका लोकतंत्र व मानवीय  मूल्यों में कोई भरोसा नहीं है.
मेरी जानकारी के अनुसार इस पूरे मामले  में निम्न पुलिस वाले दोषी है और उनकी स्पष्ट संलिप्तता है- डीजीपी करमवीर,  एडीजी बृजलाल, आईजी आरबी सिंह या आरपी सिंह, एसपी रवि कुमार लोकू, थानेदार  राय. अतः इन समस्त तथ्यों के आधार पर आपसे अनुरोध है कि कृपया इस प्रकरण  में समस्त दोषी व्यक्तियों के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर अग्रिम  कार्यवाही करने का कष्ट करें.
ऐसा नहीं होने की दशा में मैं न्याय हेतु अन्य संभव दरवाज़े खटखटाउंगा.
यहां  यह भी बता दूं कि मैंने यूपी पुलिस के सभी बड़े अफसरों के यहां महिलाओं को  बंधक बनाए जाने की घटना से संबंधित शिकायत व प्रमाण मेल के जरिए भेज दिए  थे. उस पर बताया गया कि जांच के आदेश दिए गए हैं. जांच के लिए गाजीपुर में  ही पदस्थ कुछ अधिकारी गांव गए व महिलाओं के बयान लिए. लेकिन अभी तक कोई  नतीजा सामने नहीं आया है जिससे मैं मान सकूं कि दोषियों के खिलाफ कोई  कार्रवाई की गई है. इसी कारण मजबूर होकर मुझे मानवाधिकार आयोग की शरण में  जाना पड़ रहा है.
महिलाओं को बंधक बनाए जाने के तीन वीडियो यूट्यूब पर  अपलोड कर दिए गए हैं जिसका यूआरएल / लिंक इस प्रकार है... इन लिंक पर क्लिक  करने पर या इंटरनेट पर डालकर क्लिक करने पर वीडियो देखा जा सकता है.... 
http://www.youtube.com/watch?v=rQMYVV3Iq3M&feature=player_embedded
http://www.youtube.com/watch?v=ky_XFR9uLdE&feature=player_embedded
http://www.youtube.com/watch?v=7yXsEgpEXQw&feature=player_embedded
महिलाओं को बंधक बनाए जाने की एक तस्वीर इस मेल के साथ अटैच हैं, जिसे आप डाउनलोड कर सकते हैं. इसी तस्वीर का लिंक / यूआरएल दे रहे हैं, जिस पर क्लिक करने से वो तस्वीर सामने आ जाएगी...
http://www.bhadas4media.com/images/img/maathaana.jpg
इस प्रकरण से संबंधित सुबूतों के आधार पर कई अखबारों और न्यूज चैनलों ने यूपी पुलिस की हरकत के खिलाफ खबरें प्रकाशित प्रसारित कीं. इनमें से एक अखबार में प्रकाशित खबर की कटिंग को अटैच कर रहे हैं और एक न्यूज चैनल पर दिखाई गई खबर का लिंक यहां दे रहे हैं...
http://www.youtube.com/watch?v=CvmzdlDlLb8&feature=player_embedded
भवदीय,
यशवंत सिंह
पुत्र श्री लालजी सिंह,
निवासी
अलीपुर बनगांवा
थाना नंदगंज
जिला गाजीपुर
उत्तर प्रदेश
फ़ोन नंबर-09999330099 
सुमन
लो क सं घ र्ष !

6 टिप्पणियाँ:
इसके विरोध में सबको खड़ा होना ही चाहिये.
गुजरात होता तो अब तक पता नहीं कौन कौन रोने चिल्लाने लगते..
उम्मीद है कि इस प्रकरण में यदि यशवंत सिंह दोषियों को दंडित कराने में कामयाब हो जाएंगे तो हम सबको कम से कम एक कैमरा रखना होगा ताकि घटना के तत्काल वीडियो बनाकर यू-ट्यूब पर अपलोड करे जा सकें और कुछेक वेबसाइट मालिकों से मधुर संबंध रखने होंगे ताकि वे प्रकरण के बारे में अपनी वेबसाइट पर लिख सकें। ये एक नज़ीर बन जाएगा पत्रकारों के लिये।
माताजी के धन्यभाग कि ऐसा सुपुत्र है जो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के बारे में जानता है वरना कितने तो......
काश जो जानते हैं उन्होंने दूसरों को भी बताया होता और जब ऐसी हजारों मांए-बहनें प्रताड़ित होती थीं तब कदम उठाया होता। यशवंत सिंह पहले पीड़ित नहीं है लेकिन जब अपनी फटी तब चिल्लाए यही है आधुनिक पत्रकारिता।
जय जय भड़ास
जब अपनी फटी तब चिल्लाए यही है आधुनिक पत्रकारिता.nice
nice...
कम से कम हस्तक्षेप डॉट कॉम और लोकसंघर्ष ब्लॉग के कर्ताधर्ताओं से तो अच्छे संबंध बना कर ही रखना होंगे :)
जय जय भड़ास
बहुत ही बढिया तरीका , लगे रहो
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