हे मुनिश्रेष्ठ नारद.....

शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

कुछ लोग यथा नाम तथा गुण होते हैं और कुछ लोग आंख के अंधे और नाम नैनसुख। पिछली पोस्ट के टिप्पणीकार नारदमुनि नाम से टीका-टिप्पणी करते हैं,वे यकीनन ही यथा नाम तथा गुण हैं वरना जिधर भड़ास के नाम पर किस्से-कहानी,कविता और अपने कामों की एडवर्टाइज करने वालों का जमावड़ा रखा है वहीं तक सीमित रहते लेकिन चूंकि नारदमुनि हैं तो वैसे भी तीनो लोक का पासपोर्ट-वीज़ा इनके पास है तो आ गये अपने स्वभाव के अनुसार....
अरे मुनिवर कभी हमारे जैसे लोगों के बारे में कुछ तो बोलो चाहे भला या बुरा......मिठाई या मिर्ची....
लगेगा कि आपने अपने विचार अंतरिक्ष में हम जैसों को भी स्थान दिया लेकिन राजनेताओं की तरह चुप्पी न साध जाना भगवन... मुनिश्रेष्ठ....
जय भड़ास

1 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

दीदी,
मुनिवर नाम के अनुरूप हैं, आग लगाने वाली क्रिया के अतिरिक्त कुछ जानते ही नहीं, आपकी सच्चाई का सामना करने का सामर्थ्य नही है इनमे.

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