राजनीति में षंढ,शिखंडी,नपुंसक,किन्नर,छक्के और बृहन्नलाएं
शनिवार, 15 नवंबर 2008
एक बार फिर से शबनम(मौसी) के बाद मध्यप्रदेश की राजनीति में एक "किन्नर" ने शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल करा है । लालीबाई पुकारे जाने वाले किन्नर के समर्थन में अनपढ़ और जाहिल बना कर रखे गये लैंगिक विकलांग बच्चों की एक बड़ी फौज खंडवा, भोपाल, ग्वालियर, कोलारस,सतनवाड़ा,जबलपुर,इंदौर,रीवा,सतना आदि स्थानों से एकत्र करके शिवपुरी पहुंचा दी गई है। बेचारे बच्चे अपना भला-बुरा तो समझते नहीं हैं इसलिये उन्हें उनके गुरू और नायक धर्म व परंपरा आदि के नाम पर जो समझा कर भेज देते हैं वो सब उसी को ब्रह्मवाक्य मान कर कभी बाहर निकलने की खुशी में तो कभी मजबूरी में करने लगते हैं। ये बच्चे लालीबाई को जिताने की कवायद में पैसा भी एकत्र करेंगे।मेरी ओर से बस इतना कि शबनम(मौसी) ने चुनाव जीत कर लैंगिक विकलांगों के लिये क्या कर सकती थीं और क्या नहीं करा ये तो मैं आपको बताती चलूंगी लेकिन उस क्षेत्र के गुरूघंटालों के मुंह मेंराजनीति का खून लग गया है। जीतने के बाद जब उनसे पूछा जाता है कि आपने अपने समाज के उत्थान के लिये क्या करा तो उत्तर रटा हुआ है कि मैं हिजड़ों की नहीं "जनता" की नेता हूं इसलिये समाज या समुदाय विशेष की संकीर्ण बातें मुझसे मत करिये। राजनीति में हर तरह के लोग यानि षंढ, शिखंडी, नपुंसक,किन्नर, छक्के और बृहन्नलाएं आ जाएंगे पर लैंगिक विकलांगों को इस रेलम-पेल में हाशिये से भी अलग धकेला जा रहा है और कथित बुद्धिजीवी बस सहानुभूति के मालपुए छान कर मलाई चाटेंगे जिससे कि ’बिल गेट्स फाउंडेशन’ से सामाजिक मुद्दों पर शोध के लिये पैसा झटका जा सके। मैं इस बात की प्रबल संभावना जता रही हूं कि लालीबाई जीतेगी। आप क्या कहते हैं जरूर बताइये।
5 टिप्पणियाँ:
दीदी!इस विषय पर डा.रूपेश और रजनीश भाई तो आपके सुर में ही गाते हैं लेकिन अब मैं भी आपके साथ हूं। चंदन भाई क्या कहते हैं उनसे अपेक्षा है कि वो इस विषय पर एक फाड़ू(इस शब्द का प्रयोग करने पर मैं जानती हूं कि हलकेपन से लिया जाएगा कि निहायत ही घटिया शब्द प्रयोग करा लेकिन बाध्यता है विषय ही ऐसा है विश्वास है कि समझेंगे) पोस्ट लिखेंगे जिससे कि मठाधीशों और गुरुधंटालों की हवा तंग हो जाए...
जय जय भड़ास
accha likha
regards
सुल्ताना जी यकीन मानिये मैं अभी मनीषा और ऐसी तमाम बहनों को समझने की process से गुजर रहा हूँ, २-४ दिनों के अन्दर कुछ बोलूँगा सिर्फ बोलूँगा नहीं करूँगा. ये वादा है.
सुल्ताना जी यकीन मानिये मैं अभी मनीषा और ऐसी तमाम बहनों को समझने की process से गुजर रहा हूँ, २-४ दिनों के अन्दर कुछ बोलूँगा सिर्फ बोलूँगा नहीं करूँगा. ये वादा है.
दीदी,
राजनीति को दोजख बनाने में इन्हीं लिजलिजे प्राणियों का तो योगदान है, जितने की कवायद किन्नर बन कर, मगर किन्नर का दर्द एक किन्नर गद्दी पर जा कर समझने से मना कर दे तो ये दुख्निया नही है क्यौंकी, मठाधीश सिर्फ़ मठ का धीश हो सकता है, मालपुआ खाने वाला ना की किसी का हमदर्द,
मगर सोचनीय है की हमारी लड़ाई में विभीषण और जयचंद कब तक आते रहेंगे.
जय जय भड़ास
एक टिप्पणी भेजें