जूता! कुत्ता किस....किसने क्यों?
मंगलवार, 16 दिसंबर 2008
हिंदुस्तान में एक बहुत पुरानी कहावत है- लोग आड़ में तो राजा को भी गाली देते हैं। लेकिन ये कहावत सिर्फ़ हिंदुस्तान की है इराक की नहीं। बगदाद में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान दुनिया के सबसे शक्तिशाली नेता व् राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को एक पत्रकार ने जूता फेंक मारा। आड़ में नही पुरी दुनिया की मीडिया के सामने, सैकड़ों कैमरों की चमचमाती रोशनी के बीच, दुनिया की बेहतरीन सुरक्षा इंतजामों के बीच में जूता मारने का साहस किया है इराकी पत्रकार ने। ये कुछ इस तरह इतिहास में दर्ज हो गया जिसे जॉर्ज बुश कभी नही पढ़ना चाहेंगे। लेकिन जो होना था वो तो हो ही गया। शायद बुश को जाते-जाते इसी दिन का इंतजार था, या यूँ कहे की बगदाद में इस दिन को बुश का इंतजार था। अब दुनिया भर के इतिहासकार इस घटना को अपने-अपने तरीके से पेश करेंगे। कोई बुश के सम्मान वाला चस्मा पहनकर विश्लेषण करेगा और कोई पत्रकार के पॉइंट ऑफ़ व्यू से । लेकिन जो सत्य है वेह सत्य ही रहेगा। बुश की इराक विरोधी नीतियों का खुला विरोध, इसके आलावा और कुछ नहीं। हालाँकि इस पुरे घटनाक्रम को मीडिया अभी से घुमाने-फिरने लगी है। लेकिन जो कैमरे में कैद हो गया वो हो गया......घटना के बाद बुश ने मुस्कुराते हुए कहा- पुरे प्रकरण में सिर्फ़ एक ही तथ्य था और वो था की जूता १० नम्बर का था। लेकिन बयां देते समय बुश के चेहरे की झुर्रियां उनके द्वारा बोले गए शब्दों का साथ नही दे रही थी। मन के गहरे किसी कोने में जो पीडा हो रही थी उसे कोई भी कैमरा कैद नही कर पाया। अचानक बुश तथ्यों की बात करने लगे थे..शायद जूता फेंकने वाले पत्रकार का भी येही मकसद था की बुश को तथ्यों की अहमियत समझाई जाए। क्योंकि ये बुश ही तो हैं जिन्होंने बिना सही तथ्यों के ही इराक में मानव विनाशक हथियार होने की बात कही थी और उसके बाद जो हुआ वो भी एक इतिहास बन चुका है। लेकिन ये बात मैं जोर देकर कहना चाहूँगा की इराक में जूतों का बड़ा महत्व होता है। सद्दाम हुसैन को फँसी मिलने के बाद भी हुसैन के बुतों पर इराकियों ने खूब जूते बरसाए थे। अब ये ही जूता बुश पर भी बरसाए गए है। मतलब दोनों ग़लत है? दोनों की नीतियाँ ग़लत थी! हुसैन पर जूते खुशी में बरसाए गए थे। क्योंकि वह जनता पर अत्याचार करता था। बुश पर जूते गुस्से में और दुःख के साथ बरसाए हैं, क्योंकि ये जबरजस्ती करता था॥ पत्रकार की भाषा थी- तो ये है कुत्ते को जुटे का किस्स .................................
4 टिप्पणियाँ:
शानदार लिखा है मनोज भाई...इधर नीचे की पोस्ट्स पर नजर मारिये क्या चल रहा है हम सब क्षुद्र आत्माएं यहीं पर मंडरा रहे हैं अच्छा करा कि आपने हम सबको कुछ नया पढ़ने उपलब्ध कराया:)
किस्स्स किस्स्स जरा ज्यादा अच्छा लगा:)
जय जय भड़ास
भाई अब देर मत करिये मौका है तत्काल एक जूता-पुराण नाम की मोटी सी किताब लिख मारिये पर्याप्त मसाला हो गया है,जूते के साथ में थोड़ा सा बस दुर्गंध युक्त मोजों की भी चर्चा करें तो मजा आ जाएगा।
जय जय भड़ास
शानदार है मनोज भाई....
जय जय भड़ास
मनोज भाई,
पीडा इसी बात की तो है, हमारा देश में लालजी के दल्ले बने व्यावसायिकता के आंच पर लोकतंत्र को बेचते हमारा देश के पत्रकार कब पत्रकारिता का जज्बा दिखाएँगे,
जय जय भड़ास
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