ब्लाग को हटा देना ब्लागर की सांकेतिक आत्महत्या.....लालागिरी का राक्षस जीने नहीं देता
शुक्रवार, 30 जनवरी 2009
ब्लाग्स क्यों मर जाते हैं और उस ब्लाग का जन्मदाता ब्लागर बिना ब्लाग के कैसे जीवित रहता होगा ये कई बार सोचा क्योंकि मैंने अपने ब्लाग जीवन में कई बहुत बेहतरीन लोगों को ब्लाग बना कर लिखते देखा है। मुझे कभी नहीं भूलती कई बातें जो कि मेरे ही नहीं बल्कि अपने ब्लाग बेहया के द्वारा सभी के प्रिय बन गये थे हरदिल अजीज श्री जे.पी.नारायण; कई बातें जैसे ..."खबर खबर खबराते बंदर कूद पड़े लंका के अंदर" या फिर "खबर सुनाते संता बंता हरि अनंत हरिकथा अनंता"........। इसी तरह "हमारा देश तुम्हारा देश" नाम से ब्लाग बनाया हमारे प्रिय और एक जमाने में पंखों वाली भड़ास के मुख्य संरक्षक(ये बात दीगर है कि ब्लागिंग में संरक्षक,आरक्षक,परिरक्षक जैसे पदों का कोई महत्त्व नहीं रहता ये मात्र माडरेटर द्वारा दिया लालीपाप होता है जिसे लेखक किस्म के लोग पाकर बहुत खुश रहते हैं) श्री हरे प्रकाश उपाध्याय, जिनकी कविता "बुराई के पक्ष में" अब तक हम सबको याद है। ऐसे ही न जाने कितने ब्लाग और ब्लागर पैदा होते हैं और बस चुपचाप मर जाते हैं सायबर संसार में। वजह है एक मात्र कि जब एक लेखक या पत्रकार ब्लाग के क्षेत्र में विचारों की जुताई-बोवाई करने लगता है उसे पता चल जाता है कि ये तो मेरा ही खेत है मैं यहां जो चाहे बो सकता हूं कोई रोक-टोक नहीं है तो बेचारा कभी तुलसी का पौधा रोपता है कभी पीपल और बरगद लगाता है लेकिन फिर एक दिन जब बाजार के राक्षस यानि वणिक लालाजी को ये पता चलता है कि उसका कर्मचारी ब्लागिंग करके स्वतंत्र विचारों को अभिव्यक्त कर रहा है तो राक्षस को लगता है कि कहीं ये अपनी पीड़ाएं न बताने लगे और शोषण की पोल न खोलने लगे........ बस इसी के चलते बाध्य कर दिया जाता है कलम को और इस कदर सता लिया जाता है कि बेचारा ब्लागर अपनी पारिवारिक-सामाजिक मजबूरियों और रोजीरोटी की समस्या के चलते बलात ही ब्लागिंग से मन मार कर हट जाता है और अपने ब्लाग को डिलीट करके एक सांकेतिक आत्महत्या कर लेता है जो कि शायद उसके स्वतंत्र जीवन का प्रतीक रहा होगा। ऐसे ही अगर ये बाजार का राक्षस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बलि लेता रहेगा तो फिर हो चुकी सत्य की अभिव्यक्ति क्योंकि लाला गर्दन पर लात रखे जो खड़ा रहता है।
जय जय भड़ास
2 टिप्पणियाँ:
आप बिलकुल सत्य कह रहे हैं डा.साहब यह एक सांकेतिक आत्महत्या ही है मुझे अफ़सोस है कि मैं इन लोगों को नहीं पढ़ सका, यदि कुछ इनका लिखा हो तो प्रकाशित करियेगा।
जय जय भड़ास
हरभूषण भाई,
अच्छा किया जो नही पढ़ा, रणछोर हमारे लिए कभी भी आदर्श नही हो सकते. और हाँ जिनको ये मुगालता की वोह जयचंद का रास्ता अपना कर पृथ्वीराज चौहान को शहीद कर सकते हैं तो ऐसे जयचंदों को बस चाणक्य को याद कर लेना चाहिए, कि नन्द का सर्वनाश कैसे हुआ था.
चलिए भड़ास भड़ास कीजिये.
जय जय भड़ास
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