बलात्कार एक अपराध या मनोवृत्ति ?
बुधवार, 7 जनवरी 2009
नोएडा में एक प्रबंधन की छात्रा से सामूहिक बलात्कार का मामला प्रकाश में आया, ख़बरों की माने तो दस युवकों ने इस घृणित कार्य को अंजाम दिया जबकि छात्रा अपने मित्र के साथ कॉलेज और उसके पश्चात् खरीदारी कर के वापस आ रही थी। ये तो हुआ काण्ड।
बलात्कार जैसे मुद्दे को बिना दिखाए या लिखे मीडिया कैसे रह सकती है सो एक पीडित छात्रा की संवेदना को भरपूर बेचा हमारे देश के कर्णधार खबरिया लोगों ने ! आख़िर बेचे भी क्योँ ना लोगों की संवेदना और भावना को आहत करने का ठेका जो ले रखा है इन्होने।
दिल्ली में लोग बढ़ गए, आबादी के हिसाब से दिल्ली सिमटती जा रही है, जगह कम लोग ज्यादा। बस कम चढ़ने वाला ज्यादा सब कुछ का आंकडा बिगड़ता जा रहा है और बिगड़ता जा रहा है इंसानियत का माहौल, विद्रूपता, दुष्कर्म और भी कई शब्द जिसकी व्याख्या में नही जाऊंगा।
जरा एक नजर इस तस्वीर पर मारिये कहानी समझ में आ जायेगी, एक मुस्कान और दूसरा यातना भरा चेहरा। ये तस्वीर है दिल्ली की शान डीटीसी की और ये एकदिनी नही अपितु रोजमर्रा की है। एक बलात्कार होता है मामला थाने और डाक्टरी परिक्षण के बाद न्यायालय तक पहुँचता है तो मीडिया अपने अपने मार्केटिंग प्रतिनिधी को माइक लेकर ख़बरों की तफ्तीश में लगा देती है कि हम कैसे इसे बेच सकें मगर इन्हीं मीडिया संस्थानों की सैकडों महिलायें कमोबेश इसी स्थिति से गुजरती हैं मगर अपने साथ हुए इस मानसिक बलात्कार का जिक्र तक नहीं करती।
ये रोजमर्रा की हालत है, रोज ही महिलायें बसों में सभी प्रकार के (बुद्धिजीवी, अल्पजीवी, शिक्षित, अशिक्षित) पुरुषों से दैहिक और मानसिक बलात्कार का शिकार होतीं है, कौन है इसका जिम्मेदार ?
दूषित वातावरण ?
मीडिया का दुष्प्रचार ?
रोजमर्रा से व्यथित विचार या फ़िर कुछ और ?
कारण जो भी हो मगर हमारी मानवीयता दिन प्रति दिन कैसे खंडित होती ये सब जगह देखने को मिलता है। इस बहस में शामिल होने वाले, इस पर बाकायदा चिंतन करने वाले भी मानवीयता को तार-तार करने वालों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं?
इंसानियत, मानवता और लोगों को सम्मान के साथ देखने वाली भावना क्या हमारे अंदर से समाप्त हो गयी है।
निरुत्तर हूँ, शायद आप उत्तर दें ?
फोटो साभार :- जयश्री कोहली
दिल्ली में लोग बढ़ गए, आबादी के हिसाब से दिल्ली सिमटती जा रही है, जगह कम लोग ज्यादा। बस कम चढ़ने वाला ज्यादा सब कुछ का आंकडा बिगड़ता जा रहा है और बिगड़ता जा रहा है इंसानियत का माहौल, विद्रूपता, दुष्कर्म और भी कई शब्द जिसकी व्याख्या में नही जाऊंगा।
जरा एक नजर इस तस्वीर पर मारिये कहानी समझ में आ जायेगी, एक मुस्कान और दूसरा यातना भरा चेहरा। ये तस्वीर है दिल्ली की शान डीटीसी की और ये एकदिनी नही अपितु रोजमर्रा की है। एक बलात्कार होता है मामला थाने और डाक्टरी परिक्षण के बाद न्यायालय तक पहुँचता है तो मीडिया अपने अपने मार्केटिंग प्रतिनिधी को माइक लेकर ख़बरों की तफ्तीश में लगा देती है कि हम कैसे इसे बेच सकें मगर इन्हीं मीडिया संस्थानों की सैकडों महिलायें कमोबेश इसी स्थिति से गुजरती हैं मगर अपने साथ हुए इस मानसिक बलात्कार का जिक्र तक नहीं करती।
ये रोजमर्रा की हालत है, रोज ही महिलायें बसों में सभी प्रकार के (बुद्धिजीवी, अल्पजीवी, शिक्षित, अशिक्षित) पुरुषों से दैहिक और मानसिक बलात्कार का शिकार होतीं है, कौन है इसका जिम्मेदार ?
दूषित वातावरण ?
मीडिया का दुष्प्रचार ?
रोजमर्रा से व्यथित विचार या फ़िर कुछ और ?
कारण जो भी हो मगर हमारी मानवीयता दिन प्रति दिन कैसे खंडित होती ये सब जगह देखने को मिलता है। इस बहस में शामिल होने वाले, इस पर बाकायदा चिंतन करने वाले भी मानवीयता को तार-तार करने वालों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं?
इंसानियत, मानवता और लोगों को सम्मान के साथ देखने वाली भावना क्या हमारे अंदर से समाप्त हो गयी है।
निरुत्तर हूँ, शायद आप उत्तर दें ?
फोटो साभार :- जयश्री कोहली
3 टिप्पणियाँ:
झा साहब आप नए जो तस्वीर दिखाये है
वो उस महिला के मन की वेदना को जाहिर
करने के लिए काफी है ,
/ लकिन समाज मे मनोवर्ती क्यो बन रही है /
अगर इन साहब की बहन के साथ इस तरह से वयवहार कोई और करे तो ............./ शायद इन का खून खोल उठे /
लगता है हम सभी लोग २ -२ mukate ओअढ कर चलते है ,
और अपने मन की मस्ती के अनुरूप उस मखुते को ओढ़ लेते है....
अमित भाई हो सकता है कि पीछे किसी बस में इन की बहन के साथ भी यही हो रहा होगा ये जानते हैं बखूबी लेकिन ये समय का प्रभाव है कि लज्जा मर चुकी है.... बहन जी को भी सिमट कर नही रहना चाहिये एक थप्पड़ अगर जड़ कर शुरूआत कर दें तो बहती गंगा में लोग इतना हाथ पैर धोएंगे कि शोहदे की सारी चर्बी उतर जाएगी~
जय जय भड़ास
बेवकूफ़ लड़की....मैंने खुद ही ऐसे पता नही कितने चिरकुटों को रिपेयर करा है...फैसला तत्काल...
जय जय भड़ास
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