आज मैंने बहुत ठंडे दिमाग से सोचा कि कोई भी व्यक्ति इतना अधीर, दुराग्रही और चिड़चिड़ा किन कारणों से हो सकता है। मैं आज हमारे भाई डा.रूपेश के घर पर रुकी हूं तो समय निकाल कर प्रशांत जी के बारे में जानना चाहा। जो निकल कर सामने आया वह शायद किसी भी महत्त्वाकांक्षी युवक को इस हाल में ला सकता है कि वह बाग़ी हो जाए उसे अगर आप राम-राम भी कर लें तो आपसे लड़ पड़े।
प्रशांत अपने प्रोफ़ाइल में खुद को छात्र बताते हैं यह उन्होंने ब्लाग बनाते समय लिखा होगा। आजकल खुद को गणित का टीचर लिख रहे हैं शायद गणित की ट्यूशन पढ़ाते होंगे; मैं ट्यूटर और टीचर को एक जैसा ही आदरणीय स्वीकारती हूं। जब छात्र थे तब ही शायद शादी हो गयी और पिता भी बन गये। आय का कोई स्थायी स्रोत न होना उस पर शादी और बच्चे का दायित्त्व जाहिर से तौर पर चिड़चिड़ा बना ही देता है। एक विशेष बात कि प्रशांत भाई भी हमारे भाई डा.रूपेश की तरह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से प्रभावित हैं(भाई अब नहीं हैं), प्रशांत भाई को जानकारी दे दूं कि भाई डा.रूपेश श्रीवास्तव अपने छात्र जीवन में उत्तर प्रदेश के झांसी शहर के सीपरी बाजार की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की "अभिमन्यु सायं शाखा" के लंबे समय तक मुख्य शिक्षक रहे हैं। प्रशांत अपने बच्चे से बहुत प्यार करते हैं इसलिये एक ब्लाग उसकी तस्वीर लगा कर बनाया है। ब्लाग्स में ज्यादा पोस्ट्स नहीं हैं। कदाचित निर्धारित नहीं कर पा रहे होंगे कि ब्लागिंग में क्या कंटेंट कारगर होगा। अब जो लिख रहे हैं उससे प्रसिद्धि तो हासिल हो रही है लेकिन निजी तौर पर मानती हूं कि इनका तरीका सही नहीं है कि किसी के ऊपर निजी प्रहारों पर उतर आया जाए जैसा कि वे भाई डा.रूपेश श्रीवास्तव और सारे भड़ास परिवार के साथ कर रहे हैं शेष उनका अपना विवेक है।
ब्लागिंग के प्रारंभ में तो इस अनंत साइबर स्पेस में कहां कोई किसी को जानता है फिर जब आप मजबूत विचारों को सही तकनीक के साथ प्रस्तुत करना सीख जाते हैं तो ब्लागिंग वैचारिक अभिव्यक्ति के अलावा अतिरिक्त आय का भी एक स्रोत बन सकती है यह बात प्रशांत को पता चली होगी तो उन्होंने भी चार ब्लाग बना लिये हंसियेगा मत कि हमारे भाई ने भी इस बात को समझने के लिये एक बार एक सौ चवालीस हिंदी के ब्लाग बना डाले थे कि आखिर ये ब्लागिंग है क्या बला......। अंग्रेजी ब्लागिंग में आय के स्रोत स्पष्ट हैं लेकिन अभी भी भारतीय भाषाओं में ब्लागिंग में गूगल के एडसेंस का ही सहारा है जो कि हिंदी तक का वातावरण तकनीक के सहारे से लाता है सीधे आप इसे अपने ब्लाग पर लागू नहीं कर सकते तुरंत मना कर देता है कि हिंदी भाषा उपलब्ध नहीं है। प्रशांत भी आय के निश्चित स्रोत की अनुप्लब्धि से जूझ रहे होंगे और इसी में संघ परिवार द्वारा दी जा रही देश प्रेम की दलीलें जिसमें कि हिंदुओं के इतर समस्त अन्य धर्मों जैसे इस्लाम व ईसाइयत आदि से दुराव भी एक प्रमुख घटक है। इस पर मेरा विचार कि यदि इंद्रधनुष में एक ही रंग हो जिसके शेड्स उपलब्ध हों तो वह मोनोलिथिक हो जाता है उसे आप इंद्रधनुष स्वीकार ही नहीं सकते। सोच और आग्रह बदलने की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है चाहे वह निजी स्तर पर हो या सार्वभोमिक स्तर पर तो प्रशांत के संदर्भ में भी समय तो लगेगा ही। सारे भड़ासी प्रशांत को समझाने और उनकी बीमारी को दूर करने के हर स्तर पर प्रयासों में जुट गये हर दवा प्रयोग करी जा रही है मीठी कड़वी तीखी लेकिन असर होता नहीं दिख रहा क्योंकि समस्या गहरी है। अब वे धीरे-धीरे अपने ब्लाग्स के बारे में लिखना शुरू कर रहे हैं ताकि लोग उनको जान सकें अन्यथा क्रोध और आक्रोश से भरी पोस्ट के अंत में अपने ब्लाग का जिक्र तो विचित्र ही है। ये उनके प्रयास सराहनीय हैं लेकिन बस पोस्ट का कंटेंट सार्थक हो तो लोग उन पर उनकी अपेक्षानुसार ध्यान दे पाते लेकिन उन्होंने या तो किसी के बहकावे में आ कर या फिर अपनी निजी भटकी हुई सोच के कारण ऐसा करा कि आपत्तिजनक विषय चुना जो कि उपेक्षा और चिढ़ का शिकार बन गये। उन्हें समझाने के प्रयास में वे भड़ास के मंच के सारे सदस्यों से नाराज हो गये हैं भड़ास मंच को गालियां और निराधार आरोपों का निशाना बनाने लगे इसके लिये मैं उनकी मानसिकता को समझ सकती हूं, कुछ ऊर्जावान लोग ऐसे ही होते हैं जो कि ऊर्जा की सही दिशा न मिल पाने के कारण उनकी ऊर्जा सेल्फ़-डिस्ट्रक्टिव हो कर उन्हें ही समाप्त करने लगती है जिस तरह प्रशांत के साथ हो रहा है। सबको याद है कि जब उन्होंने पहले पहल एक पोस्ट में लिखा था कि आतंकवादियों को क्रेडिट कार्ड आदि आसानी से मिल जाते हैं और हमें नहीं तो सभी ने एक सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी क्योंकि बात सही थी लेकिन विचार की दिशा मुड़ती गयी और जाकर एक विवाद पर रुक गयी। समवैचारिक मित्रों का जो समूह एक आवाज होकर हमकदम होकर प्रगति के मार्ग प्रशस्त कर सकता है उनसे बिना किसी उचित कारण के विरोध जताना मात्र अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिये सफ़ल लीडर के लक्षण नहीं हैं हमेशा वही सफ़ल हुआ है जोकि "एकला चलो रे ....." की बात करके भी अपने साथ करोड़ॊं लोगों को जोड़ सका।
प्रशांत ध्यान दें कि न तो भाई दीनबंधु न ही भाई चंदन न ही भाई अजय मोहन या भाई हरभूषण या भाई अमित जैन या बहन फ़रहीन कोई उनका शत्रु नहीं है न ही उनका विरोधी है ये मात्र सैद्धांतिक मतभेद है इसे विमर्श से ही समाप्त करा जा सकता है आरोपों से तो हरगिज नहीं।जय जय भड़ास
4 टिप्पणियाँ:
दीदी बड़ा धैर्य है आपमें कि इस सनकी पगलाए से आदमी जैसे लगने वाले जानवर में सुधार की उम्मीद रख रही हैं ये कैसे बेवकूफ़ाना काम कर रहा है आप लोग देख ही रहे हैं। लेकिन अगर आपको उम्मीद है तो शायद बदलाव हो जाए जो इसके लिये ही लाभदायक होगा
जय जय भड़ास
Manisha di namskar. Apke dharya ka jabab nahi. aaj man bahut khush hai ek to AGNI BAN ki khabar se dusari apjaise logon se sanidhya pakar ...
मनोज भाई पहली बात कि अब आप पहले से अध्क तेजस्वी दिखाई दे रहे हैं, दूसरी बात कि मनीषा ही नहीं शायद हम सबके मन में एक बात है कि प्रशांत की सोच को सही मार्ग मिल जाए तीसरी बात कि हमारे बच्चे अग्नि ने जो लिखा है वह खुशी की बात तो है लेकिन हमारा भड़ास किसी चूहादौड़ में शामिल नहीं है। जिस एग्रीगेटर को दिखाना हो दिखाए किसे परवाह है.....
मनीषा दीदी इस लेख के लिये आप साधुवाद स्वीकारिये और प्रशांत आप कुछ विचार करिये
जय जय भड़ास
दीदी,
सत्य कहा है आपने और ये उम्मीद मैंने भी लगा रखी है,
परिवर्तन करने में भड़ास सक्षम भी है. सो बस जय भड़ास का नाद कीजिये.
जरुर बदलाव आएगा.
जय जय भड़ास
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