कविता झेलो
सोमवार, 23 फ़रवरी 2009
आकांक्षाओं का विशाल समुद्र ,किनारों से अठखेलियां करता हुआ मैं
आज मै भी कवि बन गया ,
उगती शायरी की जमी बन गया ,
बस एक दुआ और है उप्पर वाले तुजसे ,
भेज कुछ ऐसे फ़रिश्ते ,
जो झेल सके मुझे ,
क्योकि क्योकि क्योकि मै भी एक कवि बन गया...amitjain
1 टिप्पणियाँ:
आप नए नए हथियार निकाल रहे हैं चलिये हम इस अटैक के लिये भी तैयार हैं :)
जय जय भड़ास
एक टिप्पणी भेजें