प्रशांत भाई बस थोड़ा अडचन है वो विचार विमर्श से दूर हो जाएगी।

सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

भाईसाहब आप बांसगांव में रहते हैं लेकिन कभी वहां से बाहर भी निकलिये कूपमंडूक की तरह से बातों से पता चलता है कि आपने अपने कुंए से बाहर नहीं देखा और बस दो रुपए का अखबार खरीद कर जीवन का नजरिया बना लिया है। आप आतंकवाद को क्या सजझते हैं? क्या नक्सलवादी आतंक का रास्ता नहीं अपनाए हैं या खालिस्तानी समर्थक खाड़कू या माओवादी अतिरेकी या कम्युनिटों का माले ग्रुप या बोडो उग्रवादी या लिट्टॆ के टाईगर्स क्या इन सबको आपने कलमा पढ़्वा कर मुसलमान बनवा दिया है??? आपने आज तक आतंकवाद के पीछे के उसके उपजने के मूलभूत कारणों को समझा ही नहीं बस एक ही शाब्द "तुष्टीकरण" का प्रलाप सा लगाए रहते हैं। जाइये उन जगहों पर जहां आतंकवाद पनपता है कि क्या कारण है कि दस-बारह साल के बच्चे-बच्चियों के हाथ में पुस्तकों की जगह बंदूक हैं क्यों कोई नक्सलवादी बन जाता है क्योंकि मौजूदा राष्ट्रवाद इतना सबल नहीं है कि ग्रासरूट तक पोषण कर सके इस लिये ये असंतोष और देश के राष्ट्र बनने की लंबी प्रक्रिया का दुष्परिणाम हमारे सामने है। इस्लाम,इसाईयत,हिंदुत्त्व,बुद्धत्त्व या जैनिज़्म का आतंक से क्या लेना देना??? जो बौद्ध या जैन धर्म के मूल तत्त्वों के नहीं मानता उसे आप बौद्ध या जैन कहते हैं? नहीं कहेंगे लेकिन जो इस्लाम की शिक्षाओं को माने या न माने बस दाढ़ी हो टोपी हो खतना कराए हो उसे आप मुस्लिम कहते हैं तो ये आपका दुराग्रह ही है इससे ज्यादा और कुछ नहीं कह सकता। नाम सलीम या सुलेमान हो जाने से कोई मुस्लिम नहीं हो जाता। दाढ़ी तो सिख भी रखते हैं टोपी तो पारसी भी लगाते हैं और खतना तो फिमोसिस नामक बीमारी में लाखों लोग कराते हैं ही ये आपको डा.रूपेश श्रीवास्तव बेहतर बता सकते हैं। आशा है कि आप इन बातों पर विचार विमर्श करेंगे तब आगे बढेंगे यदि साहस कर पाएं तो दूसरे धर्मों की पुस्तकें पढ़िये उन्हें समझने का प्रयत्न करिये और उन पुस्तकों में जो मानव जीवन को उन्नति और प्रगति की ओर ले जाने वाले तत्व हैं उन्हें अपने धर्म से तुलना करके देखिये। सबसे पहली बात तो ये कि अगर आप किसी की निंदा या प्रशंसा करना चाहते हैं तो उसके बारे में जानिये बिना जाने समझे कुछ पूर्वाग्रहों के आधार पर समीक्षा या आलोचना करना कहां तक उचित है खुद ही सोचिये। आपको भाई चंदन श्रीवास्तव ने भी यही सलाह दी है वो एक मीडिया के क्रान्तिकारी किस्म के व्यक्तित्त्व हैं जो आजकल के लालाछाप जर्नलिज़्म से बहुत दूर हैं एकदम बेबाक और बेलौस। आप यदि अपने किन्हीं पूर्वाग्रहों के कारण ऐसी धारणा बना चुके हैं तो अब बदलाव होगा क्योंकि अब आप एक अंतर्राष्ट्रीय मंच पर आ गये हैं आप खुद देखते होंगे कि हम सब इस मंच पर जो भी विमर्श करते हैं उसे यू.के. से लेकर यू.एस. तक में देखा जाता है पुर्तगाल और मारीशस में भड़ास के अनेकों प्रेमी हैं यदि हम यहां कोई गैरजिम्मेदाराना शब्द भी इस्तेमाल करते हैं तो उसका प्रभाव अत्यंत दूरगामी होता है। क्या आपको लगता है कि माडरेटर्स आपकी तत्काल सदस्यता समाप्त नहीं कर सकते थे जैसा कि मुर्दा हो चुकी पंखों वाली भड़ास पर यशवंत नाम का एक धूर्त मुखौटेबाज तानाशाही में करता रहता जैसे अभी हाल ही में उसने कनिष्का की सदस्यता समाप्त कर दी है जिस पर भाई मुनेन्द्र ने लिखा है ? लेकिन आप देखिये कि इस मंच पर माडरेटर्स ने आपको बिना किसी हस्तक्षेप के मौका दिया है कि आप दिल खोल कर भड़ास निकाल लें ताकि इस विष वमन से जो जहर आपके अंदर अतीत में एकत्र हो गया हो निकल जाए और आप निर्मल हो सकें। आप भी हमारे ही जैसे हैं जो राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं बस थोड़ा अडचन है तो वो विचार विमर्श से दूर हो जाएगी।
जय जय भड़ास

4 टिप्पणियाँ:

मनोज द्विवेदी ने कहा…

SARGARBHITE LEKH KE LIYE BADHAI....
DHOOP MEIN JIS COLOR KA CHASMA LAGAKAR HUM NIKLATE HAIN. AKASH KA ABHAMANDAL BHI USI RANG KA DIKHANE LAGTA HAI. AUR JAISE HI HUM CHSME KO UTARATE HAI. CHARON TARAF BAS EK HI RANG DIKHNE LAGATA HAI..UJJWAL, PRAKASHMAN SURYA KA ASALI TEJ....APNE SAHI KAHA VICHARON KE ADAN PRADAN SE SARI ADCHANE DUR HO SAKTI HAIN..

फ़रहीन नाज़ ने कहा…

एकदम झक्कास लिखेला है मामू...
अपुन तो इत्ता भेजा लगाइच नहीं सकती...
खाली फुकट में काय कूं इसे तुम लोग खुद का माफ़िक बनाना चाह रएले? अरे जीने दो उसे जैसे उन्नो पसंद है न....
@मनोज भाई क्या बात है तस्वीर में कुछ बीमार से दिख रएले:)शायद अपुन की इच नजरां बिगड़ गएली
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

भाई अजय,
इतनी गहरी समझ नही है इनमे, सो कहना समझाना बेकार है.
बस ये जिन बच्चों को पढाते हैं उन में वैमनष्यता के बीज ना डालें.
चिंता तो बस यहाँ है.
भड़ास चिंतित है.
जय जय भड़ास

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