.........वो दिन जो चले गए

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009


याद नही वो दिन जो चले गए
शायद देखा एक सपना
सपने में दिखा उजाला
सपना टूट गया
अन्धेरें रह गए
याद नही वो पल जो चले गए
चाँद सितारों की बातें
अब नही कहना
मर मर के अब
नही जीना
अबतक तो
मर मर के ही जीते रहे
याद नही वो दिन जो चले गए
आशा की किरणों से
मेरा नाता टूट गया
आगे मै बढ़ चला
कुछ पीछे छुट गया
अबतक तो
ऐसे ही चलते रहे
याद नही वो दिन जो चले गए

2 टिप्पणियाँ:

रम्भा हसन ने कहा…

मार्कण्डेय भाई आपका स्वागत है आशा है कि भड़ास के मूल दर्शन को समझ रहे हैं कि भड़ास किस लिये अस्तित्त्व में है। यहां भीड़ नहीं भड़ासी चाहिये इसलिये रचनात्मक ऊर्जा को आकार देते रहिये
जय जय भड़ास

mark rai ने कहा…

aapake sujhaaw ka dhyan rakhuga...

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