अनर्गल आरोपों का जवाब क्या होगा अमित जैन??????

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009

जब विचारो को झेलना नही हो सका तो अनर्गल आरोप लगाने आरम्भ कर दिए। आप अपने गिरेहबान मे झांके मर। अमित जैन। आपके लिंक मैंने देखे और अब मै इसे पाठको के लिए छोड़ता हूँ की ख़ुद देख कर आसलियात जांचे। हाँ एक पोस्ट "मै और मेरी जिंदगी" मुझे दो जगहों पर मिली, पर ये तो मै अपने ऑरकुट प्रोफाइल मे आज से दो साल पहले से लगा रखा है। आज पहली बार मर जैन के बताये पता चला की यह कही और भी है. भाई तब तो दुनिया मे मात्र एक आप ही मूल रचनाकार है बाकि तो सब चोरी का है, है ना। आपकी रचनाये भी देख ली है मैंने। इसे ही देख कर लोग ब्लॉग पर कूड़ा होने की शिकायत कर रहे है।
ये भी दिख गया की जब विचारों का ताप नही झेला जाता तो आरोप प्रत्यारोप की बौछार कर दो, भलामानुष होगा तो ख़ुद भाग जाएगा।

3 टिप्पणियाँ:

दीनबन्धु ने कहा…

क्या खूब कहा आपने अभिषेक भाई कि जो भला मानुष होगा वह खुद ही भाग जाएगा यानि कि जो विमर्श से उठ कर हम सबको गालियां देता भाग गया वह भलामानुष था आपकी परिभाषा के अनुसार? आप किन विचारों के ताप की बात कर रहे हैं जो आपने डा.रूपेश पर कमेंट माडरेशन का आरोप लगा कर गालियों भरा पेज प्रदर्शित करने पर मजबूर कर दिया या फिर हिंदू-हिंदू-मुस्लिम-मुस्लिम वाले खेल को आप बहुत ताप वाला विचार बता रहे हैं? आपको भ्रम हो गया है कि जो एक सुर में बोलें बस वही यहां रहता है तो ये गलतफ़हमी तो आपने आते ही पाल ली है जो कि आपकी गलत बात का विरोध करके फ़रहीन बहन व ज़ैनब आपा ने जता दिया कि यहां कोई गलत बात भला क्यों सहन करेगा। लोकतंत्र ही है कि माडरेटर और पूरे भड़ास मंच को वो जड़बुद्धि प्रशांत गालिंयां देता रहा लेकिन किसी ने विमर्श समाप्त नहीं करा और जब डा.रूपेश ने स्वयं आपसे करीब दस-पंद्रह मिनट बात करी तब पर भी आपके मन में शंका रही कि आपकी टिप्पणियां उनकी तानाशाही के चलते प्रकाशन के लिये माडरेटर का मुंह ताक रही हैं। फ़रहीन या ज़ैनब आपा ने जो लिखा वह क्षणिक आवेश में इसलिए स्वीकारा जा सकता है क्योंकि आप बात करके भी संतुष्ट नही हैं और पोस्ट लिख कर उन्हें तानाशाह घोषित कर रहे हैं लेकिन आपकी बातों को क्षणिक आवेश कैसे स्वीकारा जाए जबकि आपने अब तक कोई स्पष्टीकरण दिया ही नहीं। कोई आपसे नहीं कहता है कि आप चले जाइये ये तो आपने ही शुरू करा है कि भलमनसाहत इसी में है कि चले जाएं। तब तो सबसे पहले डा.रूपेश को ही इस मंच से चले जाना चाहिये। पहले अपने आरोपों का तर्कपूर्ण उत्तर दीजिये फिर मौलिकता आदि के मुद्दे पर चर्चा करेंगे कि कौन कितना मौलिक है दूसरी बात कि ये साहित्यिक मंच तो हरगिज नहीं है ये "भड़ास" है अगर अंदर उगलने के लिये कुछ तेजाबी नहीं है तो बात अलग है।
जय जय भड़ास

24कैरेट सोना ने कहा…

आप दोनो लोग एक दूसरे पर मौलिकता के होने या न होने के आरो्प बाद में लगाइयेगा पहले जिस बात को दीनू भाई ने कहा है उस पर चर्चा कर लीजिये
जय जय भड़ास

अजय मोहन ने कहा…

विचारों का ताप इतना ज्यादा है कि भड़ास पर लावा बहने लगा है पहले डा.रूपेश पर लगाए तानाशाही के आरोप का स्पष्टीकरण दीजिये फिर आगे लिखिये चाहे रिश्तों की विवेचना करिये या जवानी के जलवों की......
जय जय भड़ास

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