एक दृश्य

रविवार, 22 फ़रवरी 2009

हृदेश अग्रवाल

धूप के खूबसूरत टुकड़े पिघलने के लिए

कोई भी जगह हो सकती है

उसके तन पर एक जगह है

जहाँ रखे जा सकते हैं ओंठ

जहाँ रखे जा सकते हैं कुछ लफ्ज

एक सुंदर तस्वीर की तरह

सूरज डूब रहा है-गहरे सुनहरे हो रहे हैं मन के रंगकिरणें रंग रही हैं हर

तस्वीर में एक लड़की बैठी है

अकेली निरंतर किसी तेज सफर में

शांति और गति का संगम है

उसका चेहरा दुनिया का अकेला सूर्यमुखी है

विशाल पलकें फूल खिलने की तरह उठती हैं

जीवन के सूर्योदय जैसी गतिविधियाँ

उसके ओंठ धरती के रसों को सम्हाले

उसकी लालिमा जैसे शताब्दियों के सूर्योदय

मेरी धरती का दृश्य

और मैं चल रहा हूँ।

साभार : रविन्द्र स्वप्निल प्रजापति

1 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

भाई बड़ा ही गरिष्ठ साहित्य है :)
जय जय भड़ास

प्रकाशित सभी सामग्री के विषय में किसी भी कार्यवाही हेतु संचालक का सीधा उत्तरदायित्त्व नही है अपितु लेखक उत्तरदायी है। आलेख की विषयवस्तु से संचालक की सहमति/सम्मति अनिवार्य नहीं है। कोई भी अश्लील, अनैतिक, असामाजिक,राष्ट्रविरोधी तथा असंवैधानिक सामग्री यदि प्रकाशित करी जाती है तो वह प्रकाशन के 24 घंटे के भीतर हटा दी जाएगी व लेखक सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी। यदि आगंतुक कोई आपत्तिजनक सामग्री पाते हैं तो तत्काल संचालक को सूचित करें - rajneesh.newmedia@gmail.com अथवा आप हमें ऊपर दिए गये ब्लॉग के पते bharhaas.bhadas@blogger.com पर भी ई-मेल कर सकते हैं।
eXTReMe Tracker

  © भड़ास भड़ासीजन के द्वारा जय जय भड़ास२००८

Back to TOP