दिल
रविवार, 22 फ़रवरी 2009
बेवक्त बेहोस पागल ये दील है
हालात का मारा घायल ये दील है
इन्सा के दस्तूर को ना ये समझे
सीयासत के पेन्चो से घायल ये दील है
कभी खूबसुरत बाजो ने झपटा
धोगी रस्मो रीवाजो ने झपटा
पन्डीत की पोथी से मतलब नही है
बस मेरी गजलो का कायल ये दील है
सहरा के जन्गल मे सावन का एहसाश
बुझ ना पायेगी सदीयो की ये प्यास
नजरे लगेगी न इसको दुनीया
मेरे प्रीय की आन्खो का काजल ये दील है
ये धरती अम्बर ये तारे और मौसम
ये दौलत इज्जत सोहरत औ दमखम
सबको रौन्दे चला जा रहा है
अल्हण जवनी का बादल ये दील है
3 टिप्पणियाँ:
बेवक्त बेहोश पागल ये दिल है.....
बढ़ती मंहगाई और बिजली का बिल है.....
आप लोगों के साथ हम भी तुकबंदी भिड़ा कर कविता जैसा कुछ लिखने का दुस्साहस कर रहे हैं मेहरबानी करके प्रोत्साहन दीजिये :)
जय जय भड़ास
क्यो डाक्टर साहब , तुकबन्दी कवीता नही होती क्या .तुकबन्दी नई कवीता
के हीसाब से ज्यादा सम्प्रेसणीय होती है , मै समझता हू ब्लोग
के लीये तुकबन्दी ज्यादा हीतकर साबीत होगी.
ये दिल है इस को सभाले रखना ,
न जाने अभी कितने गम है ज़माने मे ओर , जिन्हें तुम ने है दिल मे सजाना..........amitjain
एक टिप्पणी भेजें