बेगुसराय एस पी पी. कन्नन:दूध की रखवाली में बिल्ली

सोमवार, 30 मार्च 2009


'' बोलूंगा तो बोलेगा कि बोलता है''

मगर चुप रहा भी नहीं जाता है जी ...जब ऊँचे ओहदे पर बैठे व्यक्ति की मनोदशा को देखता हूँ तो उबाल आ जाता है। मगर क्या करूँ सिस्टम को तो बदल नहीं सकता हूँ हाँ थोडी भडास निकल जाती है तो मन को सुकून मिल जाता है. ये तस्वीर जो आप देख रहे हैं यह बेगुसराय जिला के आरक्षी अधीक्षक पी कन्नन कि है जो नीतिश कि सुशासन कि सरकार को दिन दहारे शर्मिन्दा कर रहे हैं मगर न तो यह सरकार को दिख रही है और न ही जिला के उन पत्रकारों को जिन्होंने चमचागिरी को ही अपना पेशा मान लिया है. खैर बात काम कि करते हुए यह बता देना चाहता हूँ जनाब जब जिला में पदस्थापित हुए तो ''नया जोगी के गांड में जट्टा'' कि तरह आनन् फानन में प्रेस विज्ञप्ति जारी करवा दिया कि बेगुसराय रेलवे स्टेशन में रात में उतरने वाले यात्री को कहीं चोर छीन न ले इसलिए जिला प्रशासन एक बस और पांच गार्ड की तैनाती कि जायेगी. अखबार वाले भाई लोगों ने इसे जम कर छापा और उनकी तारीफ़ के पुल बाँध दिये कि देखो नए आरक्षी अधीक्षक कितने बेहतर हैं कि आते के साथ ही जनता कि सुध लेने लगे. मगर परिणाम जानते हैं मुश्किल से दस दिन भी यह कवायद नहीं चली और आज यात्री जैसे पहले असुरक्षित थे आज और भी हो गए हैं. खैर यह तो एक छोटा नमूना था अब आगे सुनिए पिछले आरक्षी अधीक्षक अमित लोधा ने जिला में भ्रमण करने वाली और नियमित पेट्रोलिंग करने वाली आरक्षियों कि एक टीम गठित कि थी जिसे टाइगर मोबाइल नाम देकर अपराध नियंत्रण में काफी हद तक सफल भी हुए थे और शहरी क्षेत्र कि जनता को काफी राहत भी मिला था क्यूंकि जब भी कोई घटना होती या नियमित पेट्रोलिंग कि बात आती तो यह दल पूर्ण रुपें सक्षम था मगर इस साहब का दिमाग देखिये इन्होने इस दल को हटा कर शहर वासी को असुरक्षा के माहौल में दाल दिया. चलिए इसे भी छोटी सी बात ही समझिये ॥अधिकाँश ब्लोगर को पता होगा कि बेगुसराय पुलिस का अपना ब्लोग्साईट पूर्ववर्ती एस पी ने बनवाया था जिसके अपेक्षित परिणाम भी मिलने लगे थे मगर जब से यह जनाब आये हैं अपडेट के बिना ब्लॉग इंटरनेट पर सड रहा है जिस कि प्रतिक्रया लोगों ने जम कर देना शुरू कर दिया है. इतना ही नहीं ये साहब दक्षिण भारत के हैं जो एक सिपाही से लेकर दरोगा तक के साथ अंग्रेजी में ही बात करते हैं क्यूंकि हिंदी इन्हें समझ में आता ही नहीं है. आम लोग जब गुहार लगाने जाते हैं तो हिंदी नहीं जानने के कारण काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. यहाँ तक कि प्रेस कोंफेरेंस में भी साहब जम कर अंग्रेजी बोलते हैं और हमारे भाई लोग मुंह ताकते रह जाते हैं. इसे भी आप छोटा नमूना समझिये अब देखिये जब ये साहब आये तो तुंरत सभी थाने का निरिक्षण कर के दरोगा को निर्देश दे दिया कि अपने अपने थाना परिसर में घेरा बना कर एक बंदूकधारी को तैनात कर दो जो पहरेदारी करेगा लेकिन यह भी मुश्किल से एक सप्ताह चला थानेदार ने तो घेरा बना दिया पहरेदार को भी तैनात कर दिया मगर आज आ कर देखिये अब न तो वह घेरा है और न ही वह पहरेदार. अब ज़रा अन्दर कि तरफ चलते हैं ...एस पी कार्यालय चाहे वह बिहार का कोई भी जिला हो आप को दावे के साथ बता दूँ कि हर क्राइम मीटिंग में सभी थानेदार एकमुश्त रकम एस पी कार्यालय के बाबुओं को देते हैं ताकि वहां से यह जानकारी मिले कि साहब का औचक निरिक्षण कब है और उनके फाइल के प्रति नरमी बरती जाए भले ही अदालत डायरी मांग-मांग कर थक क्यूँ न जाए. तो इस स्थिति को आप क्या कहेंगे ..एक तरफ नीतिश सरकार सुशासन का भ्रम दे रही है दूसरी तरफ उनके ऐसे अधिकारी आम जनता के साथ खुले आं मजाक कर रहे हैं. खैर ज्यादा क्या बताऊँ...क्या यह काफी नहीं है?

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