संवेदना है की मर गई ?
बुधवार, 29 अप्रैल 2009
35 साल पुरानी फिल्म 'दीवार' का दृश्य यहां के एक स्कूल में दोहरा दिया गया है।
फर्क बस इतना है कि वहां लड़के के हाथ पर लिखा गया था 'मेरा बाप चोर है'। लड़का पूरे जीवन इस अभिशाप को ढोता है। यहां एक मासूम के गाल पर 'मैं पागल हूं' लिखकर पूरे स्कूल में घुमाया गया। उसका कसूर इतना था कि वह अपने सहपाठी के साथ बात कर रहा था।
मासूमों से मारपीट, असंवेदनशील व्यवहार की बढ़ती घटनाएं किस ओर संकेत कर रही? शिक्षा प्रणाली का कसूर है ये या शिक्षक संवेदनाएं खो रहे हैं?
कहा जाता है कि गुरु का ओहदा भगवान से भी बड़ा है। लेकिन दिल्ली, हिंडौनसिटी (राजस्थान) और इंदौर की घटना को देखें तो मन में यह सवाल उठता है कि क्या अब वाकई ऐसे शिक्षकों को भी भगवान का दर्जा दिया जाना चाहिए। ताजा मामला इंदौर शहर का है, जहां कक्षा में सहपाठी छात्र से बात करने पर शिक्षक ने छात्र के गाल पर लिख दिया 'मैं पागल हूं'
हम बात कर रहे हैं दिल्ली की शन्नो और आकृति की जिन्हें स्कूल और शिक्षक के अमानवीय रवैये का शिकार होना पड़ा। इन दोनों ही लड़कियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। एमसीडी स्कूल की दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा शन्नो (11) को सिर्फ इसलिए धूप में खड़ा किया गया, क्योंकि वह अपनी शिक्षिका को ए बी सी डी नहीं सुना पाई थी। नतीजतन शन्नो की तबीयत बिगड़ गई और वह कोमा में चली गई। अंतत: उसकी मौत हो गई।
ऐसा ही एक मामला मॉडर्न स्कूल का भी है, जहां 12वीं कक्षा की एक छात्रा को स्कूल की लापरवाही के चलते अपनी जान से हाथा धोना पड़ा।
शन्नो की तरह का एक और हादसा राजस्थान के हिंडौनसिटी में भी हुआ, जहां अंग्रेजी के एक शब्द का सही अर्थ न बता पाने के कारण रुपसिंह नाम के एक छात्र को ऐसी सजा दी गई कि उसके पैरों की नसें फट गईं।
अपने दिल से पूछिए, क्या ऐसी खबर आपको बेचैन नहीं कर देती है। मासूमों के साथ हो रही ऐसी घटनाएं क्या ठीक ?
बच्चों के साथ हो रही ऐसी घटनाएं कहां तक ठीक हैं?
1 टिप्पणियाँ:
नैतिकता का समाप्त हो जाना मात्र शिक्षा के क्षेत्र से ही नहीं सभी आयामों में देखने में आ रहा है।
जय जय भड़ास
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