तिरस्कार और बहिष्कार सहने का साहस होना चाहिए... हरकीरत हकीर का मामला भी ऐसा ही है

रविवार, 3 मई 2009

किन्हीं सम्मू जी ने डा.रूपेश श्रीवास्तव जी की पोस्ट जो उन्होंने हरकीरत हकीर के विषय में लिखी है उस पर एक टिप्पणी लिखी है कि डा.साहब ऐसा है और वैसा है मैं आपकी क़द्र करता हूं आदि आदि। ये सब तो मात्र शब्दों से कबड्डी खेलना है कुल मिला कर इतना कि अब बाई जी को रगेदना बंद करा जाए। लीजिये इनकी टिप्पणी के साथ ही उत्तर प्रस्तुत है
jo baat khatm maan lee gayee use kyon jinda karte rehate hain rupesh jee ? kaheen aap koyee khunnas to naheen pale jo nikal rahe hain ? paisa chahna kya galat hee hota hai ? aap bhee kuch na kuch karte hee honge paise ke liye ? pata naheen aap kee dal rotee kaise chaltee hai ? main manta hoon ham sab me koyee bhadas hotee hai aur nikalnee bhee chahiye . lekin panga lena aur uske tahat meen mekh nikalte rahna vaqt aur energy kee barbadee hai . aapke bade achche uddesh dikhte hain . aap bahut sara sarthak kar bhee rahe hain , jinka min bhee samarthak hoon par bekar kee baaton aur bahas dono se bachen to rachnatmakta aur aapkee pratibaddhata dono ko naye aayam milenge aur aap jyada kargar honge . ummeed hai aap ise anyatha naheen lenge . vaise aap kee himmat sahas aur aapkee agragamikta ka main kayal raha hoon . aapne samay samay par jo mudde uthaye vo misal hain .sasneh -raj
भाईजी!आप या आप जैसे लोग बातों को खत्म करके ही देश को यहां तक ले आए हैं तभी तो लोग बाबरी मस्जिद तोड़ने को एकजुट हो जाते हैं, साबरमती एक्सप्रेस जलाने को जुट जाते हैं लेकिन सच्चे मामलों पर एक नहीं हो पाते हैं। आप डा.रूपेश को कभी नहीं समझ सकते क्योंकि आपने बात की शुरूआत ही बड़े नपेतुले अंदाज में करी है,जाहिर है कि आप जानते हैं कि ये मामला क्या है फिर भी हरकीरत बाई की वकालत कर रहे हैं वो पहले तो दर्द और पीड़ा दिल चीरना न जाने क्या क्या बता रही थी अब बनियागिरी की बात कर रही है अचानक डा.रूपेश और मुनव्वर आपा की बातें सच होने लगीं कि पैसा मिल जाए तो दर्द-वर्द सब बिकाऊ हो जाता है बाई को मूल कष्ट ये था कि कहीं उसकी कविता से मुनव्वर आपा कुछ मालपानी न बना लें या प्रसिद्ध न हो जाएं। रही बात डा.रूपेश की कि पैसे के लिए वो भी कुछ करते होंगे तो खुद आकर देख लीजिये कि वो किस तरह के इंसान हैं और पैसा किस लिये चाहिए होता है,रोटी कपड़े और मकान के लिये न? तो उनके पास घर है ही वो भी तीन-तीन और बहुत सारी जमीन है जिसपर वे जड़ीबूटियां उगाते हैं और रोटी की बात तो उनके मरीजों को मैंने खुद अपनी आंखों से देखा है कि मरीज डाक्टर साहब दवाओं के बदले पैसे देने की बजाए चावल की भाकरी और भाजी वगैरह लाते हैं जो अपने लिये उसी में से वे एक दो निवाले खा लेते हैं जो आदमी चौबीस घंटे में एक बार ही खा रहा हो उसे क्या रोटी आड़े आएगी। उद्देश्यों के बारे में या पंगे लेने के बारे में भी आप नहीं समझ पाएंगे,उनके बारे में यदि समझना हो तो खुद डा.रूपेश बन कर ही समझा जा सकता है उनकी रचनात्मकता और प्रतिबद्धता को नए आयाम की आवश्यकता तो हरगिज नहीं है बस जहां है वहीं सर्वश्रेष्ठ हैं। यदि यशवंत सिंह,हरकीरत बाई या इनके जैसे किसी को इनके सही चेहरे तक न रगेदा जाए तो ये लोग भ्रम और गलत आदर्श पैदा करते रहते हैं और सच को सच कहने के साथ गलत को गलत कहने का साहस तो है ही रीढ़विहीन नहीं हैं वो कि बात को आधे में छोड़ दें। बात तो ये हैं कि या तो हरकीरत बाई ये स्वीकारें कि वे मात्र एक बिकाऊ कविताकार हैं जिसका भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं है या फिर अपनी रचनाओं का मूल्य बताएं क्योंकि मुनव्वर आपा ने उनकी(? संदिग्ध है) रचना का अनुवाद कर दुनिया के सामने तो अनजाने में रखा था जिसे मुफ़लिस से लेकर बाईजी तक ने और उनके प्रकाश बादल सरीखे हिमायती वकीलों ने चोरनी कह कर सरेआम अपमानित करा लेकिन बाईजी जो कर रही हैं वो तो सोच विचार कर ही कर रही हैं, अब रचनाओं में टैग रहा करेंगे.. दर्द,प्यार,मोहब्बत,ग़म और न जाने क्या क्या... क्योंकि इनकी कीमत गूगल का गू गल कर मिलेगी अब इस गू से दुर्गंध न आएगी क्योंकि पैसा जो मिलेगा। गलत आदमी से लोग डरते हैं पंगा लेने का साहस होना चाहिए,तिरस्कार और बहिष्कार सहने का साहस होना चाहिए जो कि डा.रूपेश में है और उनसे ये ऊर्जाधारा हम सब भड़ासियों में बहती है। ऐसे लोगों को इनके अंत तक पेला जाएगा जब तक ये भाग न जाएंगे ये पाखंडी और मुखौटाधारी लोग भावुकता का आवरण चढ़ा कर भावनाओं को ही दुह रहे हैं जैसा कि हिंदुस्तान का बवासीर का दर्द संजय सेन सागर और भड़ास का हत्यारा यशवंत सिंह जो भड़ास4मीडिया चला रहा है।
जय जय भड़ास

1 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

अजय भाई कुछ ज्यादा कड़ा है लेकिन क्या करें ये भड़ासियों की मजबूरी है कि नरम करने के लिये सच में संशोधन नहीं करते और फिर सबसे बुरे बन जाते हैं। आपने मेरे बारे में बहुत ज्यादा लिखा है मैं कीचड़ में लोटते हुए एक सुअर से अधिक कुछ नहीं हूं
जय जय भड़ास

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