भारत की न्याय प्रणाली पर अमेरिका ने भी टिप्पणी की !

सोमवार, 25 मई 2009

एक अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत आतंकवाद से मुकाबला करने को कटिबद्ध है परन्तु यहाँ के पुराने क़ानून और काम को निबटाने में देरी से काज के बोझ से दबी न्याय प्रणाली इसके रास्ते की रूकावट है और मुंबई आतंकी हमले के बात तो ये स्पष्ट हो चला है।

अमेरिकी विदेश विभाग की जारी कि गयी २००८ वैश्विक आतंकवाद की रिपोर्ट में ये बातें कही गयी है।

रिपोर्ट के अनुसार " आतंकवाद से लड़ने के लिए भारत के सभी प्रयास पुराने और अत्यधिक काम का बोझ झेल रहे न्यायतंत्र की वजह से प्रभावित हुए हैं। "

मुम्बई आतंकी हमले को उद्धृत करते हुए कहा गया है की हमले के दौरान स्थानीय पुलिस के कमजोर प्रशिक्षण और उपकरण की बात साबित हो गयी। इस दौरान हमले का प्रभावी जवाब देने के क्रम में आपसी समन्वय का भी आभाव दिखा। ज्ञात हो की मुम्बई आतंकी हमले में १७५ लोग मारे गए थे।

रिपोर्ट में इस बात को विशेष तौर पर उद्धृत किया गया है कि मुम्बई हमले में शामिल अब तक किसी भी षड्यंत्रकारी को सजा नही दिलाई जा सकी है।
इस हमले के बाद ही भारत ने अपने कानून में संशोधन किया और सुरक्षा एजेंसी को मजबूत करने का फैसला किया।
अमेरिकी सरकार के विदेश विभाग कि इस रिपोर्ट से साफ़ जाहिर होता है कि हमारे देश के क़ानून में आमूल चूल सुधार कि जरूरत है। आतंकी सजा नही पाते, अगर सजा मिलने कि बारी आती है तो राजनेताओं का समूह आपस में लड़ कर देश के कानून को ही धत्ता बताते हैं।
जस्टिस आनंद सिंह का मामला आज भी अदालत कि गलियारों में घूम रहा है कि इमानदार जज इन्साफ के लिए ख़ुद लड़े क्यूँकी यहाँ के नियम कानून और कायदा तो चंद लोगों की सुविधा का जामा मात्र है।
अनकही का यक्ष प्रश्न जारी है.......

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