आचार्य रंजन जी के नाम प्रेम पत्र
शुक्रवार, 8 मई 2009
आत्मन रंजन जी,संसार की लघुकथाओं में सबसे छोटी लघुकथा आपकी नज़र कर रहा हूं जो कि भड़ास के दर्शन के मूल में हैएक आदमी था एक दिन वह मर गयाउम्मीद है कि मुझ "पवित्र"आत्मा के बनाए हुए फर्ज़ी प्रोफ़ाइल के आधार पर आपने जो आग्रह निर्मित कर लिया है उससे मुक्त हो जाएंगे। एक बात पल्ले पड़ती है बस आनंद आमार जाति उत्सव आमार गोत्र,जीवन को सर्च न कर पाया तो ज्योतिष जैसी गूढ़ विद्या में रिसर्च का साहस कैसे कर पाता जैसे तैसे टूटा-फूटा चिकित्सा शास्त्र समझने का जतन करा है और खूब अच्छी तरह पता है कि एक दिन उन्हीं बीमारियों से जिनका मैं इलाज कर पाने का भ्रम पाले बैठा हूं पीड़ित हो कर निकल लूंगा और आप सब भड़ास के इसी मंच पर शोक संदेश की औपचारिकता पूरी कर रहे होंगे।अब तक बस इतना समझ पाया हूं किमैं कुछ नहीं समझ सकाक्षमा किस अपराध की मांगते हैं भाई क्या आपको लगता है कि आपने कोई अपराध कर ही डाला है, भड़ास को यदि जीवन में उतार पाए हम सब तो अतिरिक्त गाम्भीर्य से मुक्त होकर रह पाएंगे। रही बात आपका मार्ग प्रशस्त करने की तो हम तो चौराहे पर आकर बैठ गए हैं और उंगली करते(दिखाते)हैं सिर्फ़ उस तरफ़ जिस तरफ़ से हम आए हैं सो ये अपेक्षा त्याग दें थोड़ा सा भी अगर मुस्करा सके तो समझ जाउंगा कि मेरा उंगली दिखाना सफल रहा।
जय जय भड़ास
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