– काँच की बरनी और दो कप चाय –

गुरुवार, 7 मई 2009


जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सबकुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन केचौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दोकप चाय " हमें याद आती है ।

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहाकि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा औरउसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमेंएक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्याबरनी पूरी भर गई ? हाँ ... आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटेकंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारेकंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा ,क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा अबप्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरुकिया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानीपर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गईना ? हाँ ॥ अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर नेटेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चायभी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ...

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –

इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....

टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे, मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,

छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और

रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ॥

अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिसकी गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तोगेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ...

ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछेपडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातोंके लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है येतुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो ,सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकालफ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ... टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब तोरेत है ॥

छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे ॥ अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यहनहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे ,लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।

साभार :- अर्चना गंगवार

शुक्रिया अर्चना

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