लोकसंघर्ष: आग का समंदर है नाव मोम वाली है ...

शनिवार, 23 मई 2009


पार जा सकेंगे हम ,सोच ही निराली है ।
आग का समंदर है नाव मोम वाली है ।

हर तरफ़ अंधेरो की क्या करें शिकायत हम -
लौ
दिये की गिरवी है कहने को दिवाली है ।

खून कैसे बिखरा है माँ के श्वेत आँचल पर-
बापू की अहिंसा आज तक सवाली है।

घी घडो में लिपटा है और पेट खाली है-
हक़ की बात करता ,कौन ये मवाली है।

कितने घर अंधेरो में सरहदों ने कर डाले-
हुक्मरां के कोठो पर आज भी दिवाली है ।

वो जवाँ से कहते है कोख सूनी होती है-
इस में तो गोवा है कुल्लू है मनाली है ।

जिंदगी गजल जैसी, जवानी तो यू समझें
आंसुओ की दौलत तो 'राही'ने सम्हाली है।

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

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