सेक्स स्टोरी यानी टी आर पी में बढोतरी (अतीत के पन्ने से .......)

मंगलवार, 12 मई 2009

कल शाम घर पहुंचा तो बड़ा थका हुआ था खानावाना खाने के बाद सोच चलो थोड़ा सा न्यूज़ देख लेते हैं। चैनल के चक्कर में पड़ा तो कहीं ख़बर ही नही सब जगह उट पटांग कार्यक्रम चालू था आते आते एन।डी।टी.वी. । पर अटका बरखा का कार्यक्रम आनेवाला था सोचा बहुत दिन हो गए हैं देख लिया जाए। कार्यक्रम का विषय देखा तो लगा की यार ये शायद जाना पहचाना सा ही है बहस था "सेक्स वर्कर के कार्य की मान्यता पर" खाना खाते खाते देखने लगा और मानस पटल पर चलचित्र की भाँती कुछ याद आने लगी की भैये ये तो हम पहले ही देख चुके हैं।



कार्यक्रम देखता रहा और सोचता रहा की ये है हमारी पत्रकारिता, और ये है देश का बेहतरीन चैनल (ऐसा मैं नही कहता बहुत से लोग दावा करते हैं।) ख़बर ना हो तो सेक्स को पडोसना आज के पत्रकारिता का पहला मूल मंत्र सा हो गया है। मैं ये नही कहता की ये मुद्दा बहस का नही था मगर एक ही मुद्दे पर कई बार बहस समझ में आती है पर एक ही बहस को बार बार दिखाना समझ के परे लगा। ओरतों की समस्या ओरत के लिए ही नही पत्रकारों के लिए भी एक विषय रहा पुरूष की समस्या किसी ने देखी ही नही परन्तु जब विषय और तथ्य परक विषय की बात हो तो लोगों की अपेक्षा के अनुरूप सेक्स परोस दो चाहे वो अखबार हो या टी वी चैनल।



सेक्स वर्कर के नाम पर जिस तरह से इस कार्यक्रम में सिर्फ़ सेक्स को पडोसा गया समस्या को नही उसके लिए मैं बरखा को धन्यवाद दूँगा। अपने संस्थान का नंबर यानी की टी आर पी जो बढानी है सब जायज है। समस्या और समाधान से परे समाज के सबसे अछूत कहे जाने वाले कौमऔर इसी सेक्स वर्क से जुड़े समाज का एक अहम् हिस्सा मगर समाज का नही यानी की "लैंगिक विकलांग" के बारे में हमारे पत्रकार समाज को कुछ नही सूझता क्यूंकि इन से जुड़ी हुई ख़बर तो बिकाऊ हो सकती है मगर इनकी समस्या, इनका दर्द,इनका सामाजिक विस्थापन इन कुपत्रकार और कुपत्रकारिता के लिए विषय तो हो सकता है मगर बिकाऊ नही। कोई भी अखबार हो या समाचार चैनल, व्यावसायिकता के होड़ और दोड़ में सेक्स को कभी भी दरकिनार नही करता अपितु विशष आदेश के अनुसार कोई भी खबर इस से जुडी हो तो उसे प्रमुखता से जगह देना का चलन।



एक बार मैं पहले भी लानत मलानत दे चुका हूँ और एक बार फिर से ऐसी घटिया और संवेदनहीन पत्रकारिता और पत्रकार को लानत मलानत जो पत्रकारिता के मूल मंत्र से हट कर व्यवसाय करने वाले बनिए के दलाल बनते जा रहे हैं।



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