भड़ास का आतंक ( अतीत के पन्ने से.......)
मंगलवार, 12 मई 2009
भड़ास के भडासी अंदाज ने बड़े बड़े मीडिया हाउस की नींद उदा दी है, पत्रकारों के शोषण का केन्द्र बना ये बड़े बड़े लाला जी की दूकान का पोल पट्टी भड़ास पर आने के बाद से ही तमाम समूंह में हल चल का वातावरण सा आ गया था, अखबारनवीस के सूचनाओं का भण्डार भड़ास पर होता है जिस से पत्रकारों के सामने विभिन्न रास्ते सामने आते हैं, मगर ये अखबार चलाने वाले लालाओं के के लिए खुली चुनोती सी हो गयी है।भड़ास का डर अख़बारों में ऐसा समां गया है की अखबार के मालिकान के साथ मालिकों के पिछलग्गू बड़े बड़े पत्रकार व सम्पादकों के आदेश पर कार्यालय से भड़ास प्रतिबंधित करा जा रहा है। पहले हिन्दुस्तान और अब अमर उजाला के पत्रकारों से भडास का अधिकार छीन लिया गया है, अब यहाँ के लोग अपने अपने कम्पूटर पर भड़ास नही देख सकते हैं। पत्रकार और पत्रकारिता का हित और पत्रकारिता के इनदुर्योधन लाला जी से लड़ने वाला भड़ास धंधेबाजों के लिए एक खतरा सा बनता जा रहा है क्यूंकि इनकी काली कारिस्तानी भड़ास के माध्यम से सामने आ रही है।और इसी तरह आती रहेगी भले ही ये दूकान चलाने वाले लोग और इनके तेल लागोऊ पत्रकार को ये रास ना आए क्यूंकि बड़े मियां ये आपके लाला और अखबार का मोहताज नही है, अधिकार और कर्तव्य के साथ भड़ास पोल पट्टी को सामने लाता रहेगा।
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