Loksangharsha: यह युद्घ पूँजीवाद के ख़िलाफ़ है....

रविवार, 10 मई 2009


''......हम यह कहना चाहते है की युद्घ छिडा हुआ है और यह युद्घ तब तक चलता रहेगा ,जब तक की शक्तिशालीव्यक्ति भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार जमाये रखेंगेचाहे ऐसे व्यक्तिअंग्रेज पूंजीपति,अंग्रेज शासक या सर्वथा भारतीय ही हो उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी कर राखी है । यदि शुद्ध भारतीय पूंजीपतियों के द्वारा ही निर्धनों का खून चूसा जा रहा तब इस स्तिथि में कोई अन्तर नही पड़ता । यदि आप की सरकार कुछ नेताओं या भारतीय समाज के कुछ मुखियों पर प्रभाव ज़माने में सफल हो जायें ,कुछ सुविधाएं मिल जायें या समझौता हो जायें ,उससे स्तिथि नही बदल सकती। जनता पर इन सब बातो का प्रभाव बहुत कम पड़ता है ।
इस बात की भी हमे चिंता नही है कि एक बार फिर युवको को धोखा दिया गया है और इस बात का भी भय नही है कि हमारे राजनितिक नेता पथभ्रष्ट हो गए है और वे समझौते कि बात चीत में इन निरपराध ,बेघर और निराश्रित बलिदानियों को भूल गए है जिन्हें क्रन्तिकारी पार्टी का सदस्य समझा जाता है। हमारे राजनीतिक नेता उन्हें अपना शत्रु समझते है ,क्योंकि उनके विचार से वे हिंसा में विश्वाश रखते है । उन्होंने बलिवेदी पर अपने पतियों को भेट किया,उन्होंने अपने आप को न्योछावर कर दिया ,परन्तु आप कि सरकार उन्हें विद्रोही समझतीं है । आपके एजेंट भले ही झूठी कहानिया गढ़कर उन्हें बदनाम कर दे और पार्टी की ख्याति को हानि पहुचने का प्रयास करें किंतु यह युद्घ चलता रहेगा। हो सकता है कि यह युद्घ भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न स्वरूप ग्रहण करे । कभी यह युद्घ प्रकट रूप धारण कर ले, कभी गुप्त दिशा में चलता रहे ,कभी भयानक रूप धारण कर ले ,कभी किसान के स्तर पर जारी रहे और कभी यह युद्घ इतना भयानक हो जाए कि जीवन और मरण कि बाजी लग जाए। चाहे कोई भी परिस्तिथि हो,इसका प्रभाव आप पर पड़ेगा।
यह आपकी इच्छा है कि आप जिस परिस्तिथि को चाहे चुन ले। परन्तु यह युद्घ चलता रहेगा। इसमे छोटी-छोटी बातो पर ध्यान नही दिया जाएगा। बहुत सम्भव है कि यह युद्घ भयानक स्वरूप धारण कर ले । यह उस समय तक समाप्त नही होगा जब तक कि समाज कर वर्तमान ढांचा समाप्त नही हो जाता,प्रत्येक व्यवस्था में परिवर्तन या क्रांति नही हो जाती और सृष्टि में एक नवीन युग कर सूत्रपात नही हो जाता।
निकट भविष्य में यह युद्घ अन्तिम रूप में लड़ा जाएगा और तब यह निर्णायक युद्घ होगा। साम्राज्यवाद और पूँजीवाद कुछ समय के मेहमान है। यही वह युद्घ है जिसमे हमने प्रत्यक्ष रूप में भाग लिया है। हम इसके लिए अपने पर गर्व करते है कि इस युद्घ को न तो हमने प्रारम्भ ही किया है, न यह हमारे जीवन के साथ समाप्त ही होगा। हमारी सेवाए इतिहास में उस अध्याय के लिए मणि जाएँगी,जिसे यतीन्द्र नाथ दास और भगवती चरण के बलिदानों ने विशेष रूप से प्रकाश मान कर दिया है ।

(
फांसी के तीन दिन पूर्व भगत सिंह,राजगुरु,सुखदेव द्वारा फांसी के बजे गोली से उडाये जाने कि मांग करते हुए पुनजब के गवर्नर को लिखे पात्र कर एक अंश)

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