टाइम्स ग्रुप के अखबारों की पत्रकारिता पैमाने
सोमवार, 29 जून 2009
मुंबई में हिंदुस्तान टाइम्स(अंग्रेजी), नवभारत टाइम्स(हिंदी),उर्दू टाइम्स(उर्दू) अखबार देखा करता हूं। इनके संपादक समाचार छापते हैं इस बात को देख कर कि किस तबके के लोगों को किस तरफ मोड़ा जा सकता है। अंग्रेजी वाला गे और लेस्बियन लोगों की कुत्तई को इतना महत्त्व दे रहा है जैसे कि देश में उससे ज्यादा महत्त्व पूर्ण कुछ नहीं बचा है। हिंदी वाला राजनैतिक कोल्हू से निकला तेल इसको-उसको लगाते नहीं थकता और उर्दू वाले ने तो लगता है कि कसम खा रखी है कि वो बस ऐसी ही बातें देगा जिससे कि मुस्लिमों के असुरक्षा की भावना जागी रहे; जैसे कि बजरंग दल के लोग कर रहे हैं शस्त्राभ्यास या बजरंग दल के लोगों ने करा हाजी मलंग की दरगाह पर हमला या आर.एस.एस. करा रही है देश में मुसलमानों पर हमले और साध्वी ठाकुर जो कि मालेगांव आदि के बम धमाकों की आरोपी है वो इनकी फ़ेवरेट है उसकी बड़ी तस्वीरें प्रकाशित करी जाती हैं ताकि मुस्लिम जन आतंकित बने रहें और असुरक्षित महसूस करते रहें। लेकिन यही खबर हिंदी और अंग्रेजी वाले सूंघते तक नहीं वहीं उर्दू वाला समलैंगिकता के मुद्दे पर नहीं छापेगा वरना हो सकता है लोग अखबार ही पढ़ना बंद कर दें।
पता नहीं साली निष्पक्ष पत्रकारिता का चेहरा इन मुखौटों के पीछे किधर गुम हो गया है?
जय जय भड़ास
4 टिप्पणियाँ:
पत्रकारिता और निष्पक्षता ये दोनों ही शब्द विरोधाभासी हैं। आज का पत्रकार तो ब्लेकमेलर से अधिक कुछ नहीं है। अब तो शायद ब्लोग पर ही इनकी असलियत उजागर हो सकेगी। आपने हिम्मत के साथ लिखा बहुत बधाई।
lagta hai marathee ka maharashtr times naheen dekha aapne . kareeb kareeb raj thakre ka bhonpoo hai . anargal aur apmanjanak bhasha me sirf bhaiya logon ke peechhe laga hai .
ye sab dhandha hai . mal mile to kuch bhee chhapo .
"अंग्रेजी वाला गे और लेस्बियन लोगों की कुत्तई को इतना महत्त्व दे रहा है जैसे कि देश में उससे ज्यादा महत्त्व पूर्ण कुछ नहीं बचा है।"
अगले व्यंग्य में इन सभ्य लोगों के भगन्दर का इलाज इलाज किया जा रहा है ।
Guruji apne bilkul sahi kaha hai. ye log hi desh ko dubo denge
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