भडासी

सोमवार, 15 जून 2009

लो राज़ की बात आज एक बताते हैं
हम हसकर अपने गम छुपाते हैं ,

तनहा होते हैं तो रो लेते जी भर कर
सर -ऐ -महफ़िल आदतन मुस्कुराते हैं .

कोई और होंगे रुतबे के आगे झुकने वाले
हम सर बस उस के दर पर झुकाते हैं

माँ आज फिर तेरे आँचल में मुझे सोना है
आजा बड़ी हसरत से देख तुझे बुलाते हैं .

इसे जिद समझो या हमारा शोक -ओ -हुनर
चिराग हम तेज़ हवायों में ही जलाते है

तुमने महल - 0 -मीनार ,दौलत कमाई हो बेशक
पर गैर भी प्यार से मुझको गले लगाते हैं

शराफत हमेशा नज़र झुका कर चलती हैं
हम निगाह मिलाते हैं नज़रे नही मिलाते हैं

ये मुझ पर ऊपर वाले की इनायत हैं
वो ख़ुद मिट जाते जो मुझ पे नज़र उठाते हैं

0 टिप्पणियाँ:

प्रकाशित सभी सामग्री के विषय में किसी भी कार्यवाही हेतु संचालक का सीधा उत्तरदायित्त्व नही है अपितु लेखक उत्तरदायी है। आलेख की विषयवस्तु से संचालक की सहमति/सम्मति अनिवार्य नहीं है। कोई भी अश्लील, अनैतिक, असामाजिक,राष्ट्रविरोधी तथा असंवैधानिक सामग्री यदि प्रकाशित करी जाती है तो वह प्रकाशन के 24 घंटे के भीतर हटा दी जाएगी व लेखक सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी। यदि आगंतुक कोई आपत्तिजनक सामग्री पाते हैं तो तत्काल संचालक को सूचित करें - rajneesh.newmedia@gmail.com अथवा आप हमें ऊपर दिए गये ब्लॉग के पते bharhaas.bhadas@blogger.com पर भी ई-मेल कर सकते हैं।
eXTReMe Tracker

  © भड़ास भड़ासीजन के द्वारा जय जय भड़ास२००८

Back to TOP