अनूप मंडल किर्पया अहिंसा को अहिंसा ही रहने दे

शुक्रवार, 5 जून 2009

अनूप मंडल के सभी दोस्तों ,
आप सब ने जो भी आरोप लगाय है ,
किर्पया उन आरोपों की पुष्टि भी कीजिये ,
सिर्फ आरोप लगा देना ही काफी नहीं है ,
आप जैन को और जैनियो को राक्षस सब्द से संभोदन कर रहे है ,
कोई बात नहीं,
जानकारी का आभाव
और मन की कुटिलता से कही हुई कोई भी बात का ,
जैन धर्म का कोई भी अनुयायी कभी भी बुरा नहीं मानता है ,
/ रही बात की मेरे द्वारा जैन धर्म का विक्पिदिया रख देने की ,
तो भी ये भी आप सभी की जानकारी के लिए ही था ,
आप यद्दी कोई बात तथ्य पर आधारित कहना कहते है तो किर्पया उसे बताये , वर्ना अनर्गल पर्लाप करने से सूर्य की चमक तो कम नहीं हो जाती ,
हा कभी कभार कोई अफवाहों का कोई बादल जरूर कभी कभी कुछ देर के लिए सूर्य को कुछ दायरे मे ढक लेता है आप सब लोगो ने जो भी अध्यन किया है ,
जिस किसी भी धार्मिक पुस्तक से किया है , किर्पया उस पुस्तक का नाम ,
उस पेज का नंबर ,
और उस मे उलखित विषय वास्तु को अवश्य बताये , ,
किर्पया ये भी बताने का कष्ट करे वो धार्मिक पुस्तक
जैन धर्म के दिगम्बर ,
स्वेताम्बर ,
के किस पंथ को मानने वाले अनुययो की है

4 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

मित्र अमित,
माफ़ी मगर धार्मिक विरोधाभास के बजाय अगर हां सामाजिक एकता और चेतना की बात करें तो देश हित में हो.

जय जय भड़ास

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

मैं आज तक न समझ पाया इस बात को कि जब हर धार्मिक(तथाकथित) व्यक्ति ये कहता है कि वो जिस धर्म को मान रहा है सर्वश्रेष्ठ है। सभी मानवता की बातें कहते हैं लेकिन फिर भी अलग-अलग हैं और एक दूसरे का खून बहाने के लिये एक टांग पर खड़े रहते हैं क्यों चाहते हैं कि जो उन्हें सत्य प्रतीत होता है दूसरा भी उसी सत्य को माने? सबका अपना-अपना परमात्मा रहे तो बेहतर होगा कम से कम धर्मान्धता के चलते युद्ध तो न होंगे
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

सही कहा आपने गुरुवर,
धर्म के बजाय मानवीयता अगर हो तो सभी से परें.
समस्या रहेगी ही नहीं.

dr amit jain ने कहा…

दोस्तो ये बात धर्मिक विरोधाभाश की नही है , सभी धर्म एक रूप है /
लेकिन किसी धर्म पर आरोप लगा कर अपनी मान्याताओ को थोपना मनजूर नहि किया जा सकता है

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