लो क सं घ र्ष !: रसधार नही जीवन में...

मंगलवार, 9 जून 2009

रसधार नही जीवन में ,
है निर्बल वाणी कहती।
अनुरक्ति यहाँ छलना है
मन आहात करती रहती॥

मृदुला में कटुता भर दी,
कटुता में भर दी ज्वाला।
वेदना विहंस बाहों की
दे डाल गले में माला॥

है बीच भंवर में चक्रित,
नैया कातर मांझी है।
काल अन्त निर्मम वियोग
वेदना विकल आंधी है॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

1 टिप्पणियाँ:

shama ने कहा…

बेहद सशक्त अभिव्यक्ति है !
शमा

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