लो क सं घ र्ष !: इर्ष्या से अधर सजाये....

शनिवार, 22 अगस्त 2009


यह स्वार्थ सिन्धु का गौरव
अति पारावार प्रबल है
सर्वश्व समाहित इसमें,
आतप मार्तंड सबल है

मृदुभाषा का मुख मंडल,
है अंहकार की दारा
सिंदूर -मोह-मद-चूनर,
भुजपाश क्रोध की करा

आश्वाशन आभा मंडित,
इर्ष्या से अधर सजाये
पर द्रोही कंचन काया,
सुख शान्ति जलाती जाए

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

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