लो क सं घ र्ष !: अनगिनत नाम बंधन के

गुरुवार, 20 अगस्त 2009


नियति ,कर्म या भाग्य ईश,
अनगिनत नाम बंधन के।
अनचाहे ही अनुबंधित,
है सारे जीव जगत के ॥

यह धरा स्वर्ग हो जाए,
क्या मानव जी पायेगा ।
पतझड़ में कलिका फूले ,
क्या सम्भव हो पायेगा ॥

पुष्पों को तोड़ पुजारी ,
साधना सफल करता है।
पाषाण ह्रदय का मन भी,
क्या उसे ग्रहण करता है॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

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