धर्म का एक रूप ये भी !
सोमवार, 14 सितंबर 2009
सुबह का समय नहाकर तैयार हो रहा था ऑफिस की जल्दी थी, की अचानक कालबेल बजी आधे अधूरे कपड़े में गेट खोला तो सामने कुछ भगवा वस्त्र में महिला थी।
दरवाजा खोलते ही महिलायें शुरू हो गयी की हम हरिद्वार से आयें हैं, हरि के सादना उपासना पूजा के लिए आप दान दीजिये आपका लोक परलोक सुधर जाएगा और पता नही क्या क्या, ह्रदय से मैं घोर आस्तिक हूँ मगरईश्वरीय दिखावेपन से कोसो दूर नास्तिक बनना पसंद करता हूँ ।
इन महिलाओं का ढीठपन देखिये की दान भी स्वेक्षा से नही अपितु इनके मुताबिक ही इन्हें चाहिए।
मैं इस तरह के दान भीख चंदे में विश्वास नही रखता मगर मेरा सहकर्मी ने एक दस का नोट इन्हे पकडाया और चलता किया।
ऑफिस के रास्ते में था तो एक मन्दिर के प्रांगन में इन महिलाओं का झुंड भोजन कर सुस्ता रही थी, स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चला कि ये लोग यहीं पास में रहती हैं और सालोभर बस हरिद्वार के नाम पर घर घर चंदा वसूलती हैं।
सोचता रहा कि यहाँ तो क्या ये धार्मिक वस्त्र और जबरन माँगना यहाँ तो क्या पुरे देश में होता है और धार्मिक अंध भक्ति कि किसी मजबूर बेसहारा लाचार या जरूरतमंद को लोग कुछ भी देने से दुत्कारते हैं मगर जब धर्म का नाम आता है तो अपनी अपनी श्रद्धा ( दिखावे की ) के लिए पता नही क्या क्या दान कर देते हैं।
मानव के मानवता के प्रति क्षद्म रूप का अपने आप से अंतर्द्वंद जारी है।
दरवाजा खोलते ही महिलायें शुरू हो गयी की हम हरिद्वार से आयें हैं, हरि के सादना उपासना पूजा के लिए आप दान दीजिये आपका लोक परलोक सुधर जाएगा और पता नही क्या क्या, ह्रदय से मैं घोर आस्तिक हूँ मगरईश्वरीय दिखावेपन से कोसो दूर नास्तिक बनना पसंद करता हूँ ।
इन महिलाओं का ढीठपन देखिये की दान भी स्वेक्षा से नही अपितु इनके मुताबिक ही इन्हें चाहिए।
मैं इस तरह के दान भीख चंदे में विश्वास नही रखता मगर मेरा सहकर्मी ने एक दस का नोट इन्हे पकडाया और चलता किया।
ऑफिस के रास्ते में था तो एक मन्दिर के प्रांगन में इन महिलाओं का झुंड भोजन कर सुस्ता रही थी, स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चला कि ये लोग यहीं पास में रहती हैं और सालोभर बस हरिद्वार के नाम पर घर घर चंदा वसूलती हैं।
सोचता रहा कि यहाँ तो क्या ये धार्मिक वस्त्र और जबरन माँगना यहाँ तो क्या पुरे देश में होता है और धार्मिक अंध भक्ति कि किसी मजबूर बेसहारा लाचार या जरूरतमंद को लोग कुछ भी देने से दुत्कारते हैं मगर जब धर्म का नाम आता है तो अपनी अपनी श्रद्धा ( दिखावे की ) के लिए पता नही क्या क्या दान कर देते हैं।
मानव के मानवता के प्रति क्षद्म रूप का अपने आप से अंतर्द्वंद जारी है।
4 टिप्पणियाँ:
न जाने क्यों हम असली बेह्सरा को कभी पहचान ही नहीं पाते और इन ढोगियो को दान देते है
Bhai sahab ye to sirf ek rup hai. lagbhag har dharm me aise log roz mil jate hai..
रजनीश भाई धर्म को बनिया किस्म के लोगों ने एक कारोबार बना दिया है और उसे एक बेहद कार्पोरेट तरीके संचालित करते हैं। आप देख सकते हैं कि भगवा लेकर चलने वाले धर्म के ठेकेदारों के पीछे सिंधल आदि जैसे जैन हैं हो सकता है आपको ये बात न पचे लेकिन सत्य यही है कि ये राक्षस ही एक दूसरे से लड़ाने का काम करते हैं और फिर घायलों को दवाएं तथा मरे हुए लोगों के लिये मैय्यत का सामान और चिता की लकड़ी से लेकर ताबूत बनाने के धंधे में लग जाते हैं
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास
भाई हम तो टार्ज़न और मोगली के जैसे हैं हमें भगवा, सफ़ेद और हरे क्या बल्कि दिखने वाले सभी रंगों के कपड़े पहने लोग एक जैसे ही दिखते हैं। जब कपड़ॊं से निकल कर उनकी फ़ितरत सामने आती है तब पता चलता है कि वो क्या हैं
जय जय भड़ास
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