"सूचना" और "समाचार" के बीच भ्रमित होकर रह गये पत्रकारिता के पुरोधा

बुधवार, 2 सितंबर 2009

अभी पिछले माह की २८-२९ तारीख को बान्द्रा,मुंबई में हुई एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में भड़ास के संचालक को भी पत्रवाचन के लिये बुलाया गया सो हम जा धमके। वहां मौजूद सभी लोगों ने समाचार के बदलते स्वरूप पर गहरी चिन्ता जतायी। मीडिया के कार्य करने की पद्धति पर कड़वे-मीठे स्वरों में कमोबेश सभी ने आक्रोश व्यक्त करा। हिन्दी समाचार जगत के कई एक स्वनामधन्य पुरोधा मौजूद थे। एक शोचनीय पक्ष जो उभर कर सामने आया था वह कि वे सारे लोग पत्रकारिता की नवीनतम तकनीकों से सर्वथा अनजान प्रतीत हुए। वाराणसी से आमंत्रित श्री राममोहन पाठक एवं भोपाल से आए श्री अच्युतानंद मिश्र जी जो कि हिन्दी पत्रकारिता के पितामह माने जाते हैं सूचना संचार की तकनीकों की क्रान्ति से पत्रकारिता के चेहरे में आए बदलाव के बारे में या तो सचमुच ही अनजान रहे या फिर कुछ कह पाने का साहस ही न जुटा सके। इन पुरोधाओं की पत्रकारिता की परिभाषा कागज़ी अखबारों अथवा बुद्धू बक्से टीवी के इर्दगिर्द मंडराती रही। विश्वव्यापी इंटरनेट की वेबपत्रकारिता के बारे में किसी ने जिक्र करना तक जरूरी न समझा। इन मंचासीन रहे बुजुर्गों के बीच "स्टार माझा(मराठी चैनल) के युवा अधिकारी मिलिंद खांडेकर अधिक समय तक स्टार चैनलों की वकालत में ही उलझे रहे। मिलिंद की बातों पर घोर आश्चर्य तब हुआ जब वे "सूचना" और "समाचार" के बीच भ्रमित होकर रह गये। मिलिंद ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सूचना तकनीक के विकास ने परंपरागत पत्रकारिता को हाशिए पर ठेलना शुरू कर दिया है इनके अनुसार ये सारी उपलब्धियां तो बाजारवाद की ही देन हैं। इन्होंने मधुर स्वर में खुद लालाओं की गोद में बैठे होने के कारण मौजूद छात्रों को भी लाला-लोरी सुनाई। मिलिंद ने कहा कि अब बाजार की दी तकनीक के चलते पाठक-श्रोता तथा पत्रकार-संपादक की मध्यस्थता अनावश्यक है। आप जानना चाहते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति क्या कर रहे हैं , क्या सोच रहे हैं या क्या कहना चाहते हैं तो इसके लिये बस आप उन्हें ट्विटर नाम की वेबसाइट पर फालो करें, इसके लिये भला किसी पत्रकार द्वारा लिखे या संपादक द्वारा छाने किसी समाचार की क्या जरूरत? मिलिंद जी का पत्रकारिता जैसे विशाल और विवेकपूर्ण परिप्रेक्ष्य में ट्विटर की १४० शब्दों की सीमा में बंधी माइक्रोब्लागिंग को ठूंसना या संदर्भित करना उनकी पत्रकारिता के प्रति अपरिपक्वता जैसा कुछ प्रतीत हुआ। मेरा निजी विचार है कि लालाओं के लाड़ले बने लोग ही पत्रकार एवं संपादक जैसी संस्था के विवेक को भोंथरा कर क्लर्क और मैनेजर बनाने पर तुले हैं। कम्प्यूटर को परग्रहीय एलियन तकनीक जैसा माने बैठे हिंदी पत्रकारिता के पुरोधा अच्युतानंद मिश्र जी तथा श्री राममोहन पाठक जी ने मिलिंद की इन अपरिपक्व(हो सकता है कि बेहद चालाक) बातों पर कोई आपत्ति न दर्शायी। संभव है कि अध्यक्षता की मजबूरी के चलते उन्हें ऐसा करना पड़ा हो। ब्लागिंग को अपूर्ण और गैरजिम्मेदार सा मानते हुए मिलिंद के पास शायद इस बात का उत्तर होगा कि क्या कारण रहा कि मुंबई के टीवी संवाददाताओं के सामुदायिक ब्लाग पर ही सबसे पहले उनको आतंकी अजमल कसाब की पुलिस मुख्यालय वाली तस्वीर डालनी पड़ी। जिसे कि बाद में सभी चैनलों व अखबारों ने प्रयोग करा है। इनमें से सभी मुझे ब्लागिंग के पैनेपन से सकपकाए से दिखे। पुरोधा चुप्पी साधे रहे......................
पिक्चर अभी बाकी मेरे दोस्त आगे भी इनको आइना दिखाने की भड़-भड़-भड़ास जारी रहेगी
जय जय भड़ास

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