लो क सं घ र्ष !: मानव मानवता चाहे...

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009



निर्झर सरिता ओ सागर,
का महामिलन अति उत्तम।
मानव मानवता चाहे,
अति कोमल स्पर्श लघुत्तम ॥

समरसता अविरल धारा,
चेतनता स्वयं विलसती।
अति पाप, ताप, हर लेती ,
जीवन्त राग में ढलती ॥

मैं-मेरा औ तू-तेरा,
होवे हम और हमारा ।
आनंद स्वस्तिमय सुंदर,
समरस लघु जीवन सारा ॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

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