हम ऐसे ही थे और ऐसे ही रहेंगे.......

बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

मातृभूमि से प्यार और लगाव बड़ा वाजिब है, मैं, आप, और हम सब करते हैं और रहेंगे.......

सुबह के साढ़े छः बजे पटना स्टेशन पर उतरा एक मुस्कुराहट के साथ....... लोगों से सुन रहा था अच्छे कामों के वाहवाही और मन मैं भी था की काश मैं भी शाबाशी देने वालों की कतार मैं लग जाऊं..... ससुर जी महाराज गाड़ी से लेने आए थे सो पैदल अपने गंतव्य तक पहुँचने की लालसा मन मैं ही दबी रही।
विज्ञापन के बड़े बड़े बोर्ड्स पुरे पटना मैं इस कदर छाये मिले जैसे की हिन्दुस्तान की व्यवसायिक राजधानी मुंबई नही पटना बन गई है......आप सोच सकते हैं की मार्केटिंग (विज्ञापन) मैं नौकरी करने वाला इंसान जब अपने राज्य के राजधानी का नया स्वरुप देखे तो उसकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया कितनी सुखद रही होगी......

दिल्ली की तरह पटना भी अपने विस्तार और विकास की तरफ़ आगे चल रहा है.....इसलिए पहली वाहवाही तो मुझे देनी पड़ेगी और दे भी रहा हूँ...फ़्लाइओवेर्स (भले ही गलियों सी संकरी), माल्स, काम करती हुई लाल बत्ती कम से कम इतना तो बता रहा था की अब शासक मैं थोडी शर्म तो है...(आख़िर टीवी वाले आते रहते हैं बिहार के नाम पर इसी शहर मैं)

मध्यान्ह के तीन बजे तक मुझे इस शहर से आगे भी बढ़ना था इसीलिए जिज्ञासा और कौतूहलता अपने जगह पर थी कि राजधानी से आगे क्या....और कैसा ....क्या एक और वाहवाही मेरी ओर से.......

यात्रा जारी रहेगी .......कृपया आप भी बताएं कि आपकी तरफ़ से कितनी वाहवाही मिली आपके मातृभूमि के प्रशाशक को (प्रदेश कोई भी हो , राय महत्वपूर्ण अहमियत रखेगा।) बात भडास से आगे निकल कर कर्म कि ओर आगे बढ़ने का वक्त आ गया है......

क्रमशः

1 टिप्पणियाँ:

मनोज द्विवेदी ने कहा…

Randhir ji swagat hai..age badhiye sabko sath lekar chaliye hamari subhkamnaye apke sath hain

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