आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा शास्त्र

शनिवार, 7 नवंबर 2009

ये मूर्ख आयुर्वेद के हजारों साल के इतिहास को नहीं जानते कि इस शास्त्र की एक-एक औषधि सैकड़ों वर्षों के परीक्षण के बाद प्रयोग में आयी है। आयुर्वेद शास्त्र इतना प्राचीन और प्रामाणिक है कि आधुनिक चिकित्सा शास्त्र के पैमाने इसे नाप पाने के लिये बौने पड़ जाते हैं। इन मूर्खों को रेखापूरित और वारितर(पानी पर तैरने वाली) भस्मों के बारे में क्या पता है? क्या जानते हैं ये शतपुटी और सहत्रपुटी भस्मों के बारे में कि क्यों किसी धातु को वनस्पतियों के संयोग के साथ करके अग्नि के सौ या हजार तक पुट दिये जाते हैं, कैसे कोई धातु निरुत्थ भस्म के रूप में आ जाती है कि फिर उसे किसी भी प्रकार से पुनः उसके धातु रूप में नहीं लाया जा सकता? आयुर्वेद के प्राचीनतम त्रिदोष के सिद्धांत के बारे में किस प्रकार की जानकारी है इन आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की वकालत करने वालों को? सत्य तो ये है कि जब हम उत्पत्ति के पंचमहाभूतों के सिद्धांत को ही नहीं स्वीकारते हैं तो फिर कफ-पित्त-वात के बारे में कैसे समझ सकते हैं। आयुर्वेद को चटनी-चूरन वाली दवाओं की चिकित्सा पद्धति समझने वाले कोट-पैंट पहनने वाले उन जड़बुद्धियों से एक बात ही कहनी है कि क्या कभी आयुर्वेद में "पदार्थ विज्ञान" को पढ़ा है या बस ऐसे ही रोना शुरू कर दिया कि हेवी मैटल्स से इंसान मर जाएगा? क्या ये लोग रस, वीर्य, विपाक, प्रभाव आदि को समझते हैं? हमारे ही देश में हमारी हजारों वर्षों की परंपरा से परीक्षण करा गया जीवन का विज्ञान आज विदेशी चमकीले पैकिंग में बंद रंग-बिरंगी गोली, कैप्सूलों और मंहगे इंजेक्शनों के बीच अपना अस्तित्व तलाश रहा है। जब रोगी सब जगह से निराश और परेशान हो जाता है तब आयुर्वेद की शरण में आता है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि तब तक अक्सर बहुत देर हो चुकी होती है साथ ही अनेक जटिलताएं उत्पंन हो चुकी होती हैं। ऐसे में यदि आयुर्वेद के निदान से अंशांश कल्पना को जान कर रोग का निर्णय किया जाए और उपचार करा जाए तो कोई संदेह नहीं है कि शत-प्रतिशत सफलता मिलेगी ही।
जय जय भड़ास

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