कुसुम जी की भड़ास

रविवार, 15 नवंबर 2009

कुसुम जी ब्लोगर हैं, एक साथ पाँच ब्लॉग पर अपने विभीन्न रचना को रचती हैं, लेखनी में विभिन्नता रखने वाली सुश्री कुसुम जी ने अपने ब्लॉग पर पिछले दिनों भड़ास शीर्षक से ही कविता रच डाली। कविता का भाव ऐसा की मैं भड़ास पर डालने का लोभ संवरण नही कर पाया सो भड़ासी के लिए एक स्तरीय कविता।


"भड़ास "


राज बाल की हिम्मत को

दिया चुनौती कईयों ने

पत्रकार तो पत्रकार

चिट्ठाकार भी कम नहीं

पत्रकारों ने बिक्री बढ़ाई

अखबार और पत्रिकाओं की

दूरदर्शन ने टी आर पी बढ़ाई

नेताओं के झूठे मंतव्यों से

फिर चिट्ठाकार क्यों पीछे रहें

हमने अपने चिट्ठों से

राज बाल के मंतव्यों के

बिना जड़ों को दिखाए हुए ही

सुशोभित किया अपने ब्लोगों को

कुछ चिट्ठाकार न रच पाए तो

उन्हें भी अफ़सोस नहीं

निकाल दिया अपनी भडास को

प्रतिक्रिया देकर चिट्ठों पर ।।


- कुसुम ठाकुर -


इस एक कविता ने नेता से लेकर सत्ता के गलियारे में प्रसाशन और पत्रकारिता की काली भी खोली है, सही मायने में ये ही तो भड़ास है।

जय जय भड़ास



3 टिप्पणियाँ:

Tulsibhai ने कहा…

" behatarin bahut hi acchi rachana ..sacchai se bhari "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

रजनीश भाई कुसुम जी की भड़ास को यहां तक लाने के लिये साधुवाद। बिलकुल सही मायने में भड़ास है
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

गुरुदेव,
बस कुछ भड़ास सा लगा सो हम चुरा लाये,
वैसे भी चुराने में भड़ासी बड़े माहिर हैं ;-)
आत्मा ही चुरा लाते हैं.
जय जय भड़ास

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