शांति का नोबेल बनाम बुधई की लाठी

शनिवार, 12 दिसंबर 2009










हमारे बुधई काका वास्तव में शांति के प्रतीक हैं जब भी हमारी बस्ती में या आस पास कोई झगडा लड़ाई होती है तो शांति प्रेमी बुधई काका को बुलावा भेज देते हैं और बुधई काका अपनी तेल पिलाई लट्ठ के साथ जैसे ही मौके पर पहुँचते हैं वहां शांति अपने आप हो जाती है अब हो भी क्यों न भाई शांति नहीं होती तो बुधई काका अपने लट्ठ बाजों समेत पिल पड़ते हैं भीड़ पर और कुछ ही देर में लोग भागते नज़र आते है और देखते ही देखते वहां शांति छा जाती है और ऐसा करते बुधई काका को ३० बरस हो चुके लेकिन बुधई काका को याद भी नहीं है की आज तक कितने लोग उनके लट्ठ का शिकार हुए हाँ इतना ज़रूर कहते हैं की बस्ती और आस पास जितने भी टूटे फूटे दिखें समझ लीजिये हमारी लट्ठ के आशीर्वाद से हैं ऐसे ही नत्थू भाई हैं जिनका एक हाथ काका की लट्ठ की भेंट चढ़ गया जब हमने जानना चाह तो बोले की झगडा हो रहा था बुधई काका अपने लट्ठ बाजों के साथ आ गए उन्होंने पहले सब को शांत होने के लिए बोला लेकिन जब शांति नहीं हुई तो अपने लट्ठ बाजों समेत पिल पड़े अब झगडा करने वाले तो भाग लिए बचे झगडा देखने वाले तो वो बेचारे पिटते रहे उन्ही में से हमहू रहेन हम जैसे ही बुधई काका का इ बताये का प्रयास करें की झगडा करे वाले तो भाग गए बुधई काका लट्ठ लिए पिल पड़े हमरे उप्पर और हमार एक हाथ तोड़ कर ही दम लिहिन अब अगर ओबामा को शांति का नोबेल मिल सकता है तो हमारे बुधई काका ये काम ३० बरसों से कर रहे हैं उनका तो हक बनता है....

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