शिरीष खरे को लाडली मीडिया सम्मान
गुरुवार, 10 दिसंबर 2009
मुंबई । बच्चों के हकों को लेकर सक्रिय संस्था चाईल्ड राईटस एण्ड यू में संचार विभाग के शिरीष खरे को इस साल (2009-10) पश्चिमी राज्यों में सर्वश्रेष्ठ वेब लेखन के लिए लाडली मीडिया अवार्ड से सम्मानित किया गया है। उन्हें यह अवार्ड यूनाइटेट नेशन पापुलेशन फण्ड और भारत में जनसंख्या स्वास्थ्य सुधार के लिए सक्रिय संस्था पापुलेशन फर्स्ट की तरफ से दिया गया है। एनसीपीए के टाटा थेटर, नेरीमन प्वाइंट में पापुलेशन फर्स्ट के ट्रस्टी एस सिस्टा के हाथों यह अवार्ड पाने के बाद चाईल्ड राईटस एण्ड यू के दोस्तों ने शिरीष के लिए खास पार्टी का आयोजन किया। उल्लेखनीय है कि यह अवार्ड लिंग आधारित समानता से संबंधित विषयों पर बार-बार रौशनी डालने वाले पत्रकारों और मीडिया की विभिन्न संस्थाओं को दिया जाता है। इस अवार्ड के निर्णायक मंडल में कई मशहूर शख्सियत मौजूद रहीं जैसे- गोविन्द नेहलानी, नंदनी सरदेसाई, चित्रा पालेकर, राजेश थवानी (संपादक और प्रकाशक, गुजरात मिड डे), रमेश नारायण (फाउण्डर, कानको एडवरटाइजिंग), प्रोफेसर सफल खान आदि।
बातचीत में शिरीष खरे ने कहा कि "इस तरह के सम्मान के बाद अपने भीतर से और ज्यादा जागरूक, और ज्यादा जवाबदार बनने का एहसास होता है। औरतों की पहचान न उभर पाने में उनकी कमजोरी नहीं, समाज में मौजूद धारणाएं जिम्मेदार हैं। लड़की के जन्म के बाद ही उसे बहिन, पत्नी और मां के दायरों से बांध दिया जाता हैं। उसे शुरूआत से ही समझौते की शिक्षा दी जाने लगती है। लड़की है तो उसे ऐसा ही होना चाहिए- इस तरीके की बातें उनकी तरक्की के रास्ते में बाधा बनती हैं। ऐसी बाधाओं को तोड़ना ही हमारा काम हैं।" शिरीष पिछले काफी समय से वेब मीडिया के लिए बच्चों, महिलाओं और मानवीय हकों से जुड़े विषयों पर लगातार लिख रहे हैं। उन्होंने 2002 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता में मास कम्यूनिकेशन में ड्रिगी लेने के बाद मुख्यधारा कही जाने वाली पत्रकारिता में कभी काम नहीं किया। करियर की शुरुआत के चार साल तक दिल्ली के विभिन्न डाक्यूमेंट्री फिल्म संस्थाओं से जुड़कर शोध और लेखन करते रहे। इसके बाद मध्यप्रदेश पहुंचकर दो साल तक कई जनसंगठनों और आंदोलन से जुड़ाव रखा। दिल्ली और मध्यप्रदेश आने के बीच (2005-06) सराय-सेंटर स्टडी आफ डेवेलपमेंट सोसाइटी ने उन्हें लिटिल बेले ट्रूप, भोपाल और चाऊ नित्य परम्परा पर फेलोशिप भी दी, मगर खुद शिरीष के मुताबिक इस विषय पर उम्मीद के हिसाब से शोध और लेखन न कर पाने का अफ़सोस उन्हें हमेशा रहेगा, वैसे इस दौरान उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला। बीते एक साल से शिरीष चाईल्ड राईटस एण्ड यू के संचार विभाग से जुड़कर सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। उनके लेखन की एक झलक उनके ब्लॉग पर भी देखी जा सकती है।
बातचीत में शिरीष खरे ने कहा कि "इस तरह के सम्मान के बाद अपने भीतर से और ज्यादा जागरूक, और ज्यादा जवाबदार बनने का एहसास होता है। औरतों की पहचान न उभर पाने में उनकी कमजोरी नहीं, समाज में मौजूद धारणाएं जिम्मेदार हैं। लड़की के जन्म के बाद ही उसे बहिन, पत्नी और मां के दायरों से बांध दिया जाता हैं। उसे शुरूआत से ही समझौते की शिक्षा दी जाने लगती है। लड़की है तो उसे ऐसा ही होना चाहिए- इस तरीके की बातें उनकी तरक्की के रास्ते में बाधा बनती हैं। ऐसी बाधाओं को तोड़ना ही हमारा काम हैं।" शिरीष पिछले काफी समय से वेब मीडिया के लिए बच्चों, महिलाओं और मानवीय हकों से जुड़े विषयों पर लगातार लिख रहे हैं। उन्होंने 2002 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता में मास कम्यूनिकेशन में ड्रिगी लेने के बाद मुख्यधारा कही जाने वाली पत्रकारिता में कभी काम नहीं किया। करियर की शुरुआत के चार साल तक दिल्ली के विभिन्न डाक्यूमेंट्री फिल्म संस्थाओं से जुड़कर शोध और लेखन करते रहे। इसके बाद मध्यप्रदेश पहुंचकर दो साल तक कई जनसंगठनों और आंदोलन से जुड़ाव रखा। दिल्ली और मध्यप्रदेश आने के बीच (2005-06) सराय-सेंटर स्टडी आफ डेवेलपमेंट सोसाइटी ने उन्हें लिटिल बेले ट्रूप, भोपाल और चाऊ नित्य परम्परा पर फेलोशिप भी दी, मगर खुद शिरीष के मुताबिक इस विषय पर उम्मीद के हिसाब से शोध और लेखन न कर पाने का अफ़सोस उन्हें हमेशा रहेगा, वैसे इस दौरान उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला। बीते एक साल से शिरीष चाईल्ड राईटस एण्ड यू के संचार विभाग से जुड़कर सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। उनके लेखन की एक झलक उनके ब्लॉग पर भी देखी जा सकती है।
कुछ और लिनक्स :
http://www.hindimedia.in/
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Shirish Khare
C/0- Child Rights and You
189/A, Anand Estate
Sane Guruji Marg
(Near Chinchpokli Station)
Mumbai-400011
2 टिप्पणियाँ:
Yeh jaan kar bahot achchha lagta hai ke aaj ke samaj mein, jahan garib bachcho ko ek sasta majdoori vikalp samjha jata hai, aise log bhi hain jo hamare desh ke bhawishya ki raksha karna chahte hain..
छाया बहन जी,विदेशी पूंजी और सरकारी घी में मालपुए छानने वाले ग़ैर सरकारी संगठन जिस तरह काम करते हैं उससे दिखायी देता है कि देश के हालात सरकार और उनके भागीदार गैर सरकारी संगठनों ने कैसे बना दिये हैं। जो कोई भी कुछ कर रहा है सिर्फ़ पैसे के लिये चाहे वह बच्चों के लिये हो, दलितों के लिये हो, अल्पसंख्यकों के लिये हो या फिर...... घूम फिर कर सब अपने लिये कर रहे हैं। महानगरों में मुख्यालय बना कर नोट छापने वाले ये संगठन औपचारिकता के लिये भी गांव में नहीं जाते और जाएंगे भी तो महज मीडिया कवरेज के लिये ताकि माल बटोरा जा सके
जय जय भड़ास
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