लो क सं घ र्ष !: इस देश का क्या होगा ?
बुधवार, 13 जनवरी 2010
'न्यायिक स्वतंत्रता किसी न्यायधीश का विसेशाधिकार नहीं बल्कि वह कानून और साक्ष्य के आधार पर इमानदारी और निष्पक्षता से निर्णय करने के लिए प्रत्येक न्यायधीश पर डाली गयी जिम्मेदारी है। '
-माननीय दिल्ली हाई कोर्ट
माननीय उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश ए.पी शाह की अध्यक्षता वाली पूर्ण पीठ ने माननीय उच्चतम न्यायलय की याचिका को ख़ारिज कर दिया। सवाल यह था कि सूचना अधिकार अधिनियम के तहत सूचनाएं प्राप्त करने का अधिकार जनता को न्यायपालिका से है या नहीं, यह विवाद काफी दिन से चल रहा था। चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया का कहना था कि उनका पद सूचना अधिकार अधिनियम के तहत नहीं आता है । जिसको लेकर माननीय उच्चतम न्यायलय ने दिल्ली उच्च न्यायलय में एक याचिका दाखिल की थी । दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसपर माननीय उच्चतम न्यायलय ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने का निश्चय किया है ।
जब माननीय उच्चतम न्यायलय इस तरह के कार्य करेगा तो उसकी गरिमा निश्चित रूप से गिरेगी जनता को न्यायधीशों को उनके पद पे रहते हुए उनके द्वारा अर्जित संपत्ति का ब्यौरा जानने का अधिकार है क्योंकि चाहे कर्नाटक के मुख्य न्यायधीश दिनकरण का मामला हो या अन्य न्यायधीशों के भ्रष्टाचार का सवाल हो आज न्यायमुर्तियो के आचरण के सम्बन्ध में अंगुलियाँ उठ रही हैं ऐसे समय में माननीय उच्चतम न्यायलय का व्यवहार समझ में नहीं आता है। संविधानिक पदों पर बैठे हुए लोग अगर आपस में मुक़दमेबाजी करते रहेंगे तो इस देश का क्या होगा लेकिन दिल्ली उच्च न्यायलय ने अपना एतिहासिक फैसला देकर उम्मीद की नयी किरण भी जगाई है।
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
1 टिप्पणियाँ:
ऐसे ही ऐतिहासिक फैसले उम्मीदों की किरण जगाते रहते हैं और कभी सूरज नहीं निकलता बस एक दो किरणों का छोर देख कर भारत की आवाम खुश हो जाती है। इससे बड़ा मज़ाक और क्या हो सकता है कि उच्चतम न्यायालय को उच्च न्यायालय में अपील करनी पड़े लेकिन क्या करा जाए विधि ही ऐसी है और उसका शासन भी ऐसा ही है।
जय जय भड़ास
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