लो क सं घ र्ष !: डी.आई.जी पुलिस की जवाँमर्दगी
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
राजधानी लखनऊ में प्रदेश के राज्य कर्मचारी व शिक्षक अपनी मांगो के लिए प्रदर्शन कर रहे थे जिसपर लखनऊ पुलिस ने बर्बरतापूर्वक लाठियां व गोलियां चलायीं, सरकारी कार्यालयों में घुसकर लोगों को पीटा गया । डी.आई.जी लखनऊ को जवाँमर्दगी दिखाने के लिए नहीं मिला तो वह निहत्थी महिलाओं के ऊपर लाठियां चलाने लगे पुलिस ने अनावश्यक रूप से राज्य कर्मचारियों व शिक्षकों पर लाठीचार्ज किया आंसू गैस के गोले छोड़े हवाई फायरिंग की । जवाहर भवन इंदिरा भवन सहित दर्जनों सरकारी कार्यालयों में घुसकर लाठी चार्ज किया ।
शांतिपूर्ण कर्मचारी व शिक्षकों के ऊपर प्रशासन द्वारा लाठीचार्ज उनके बब्बर चरित्र को दर्शाता है । राजधानी में निहत्थी महिलाओं के ऊपर बेशर्मी के साथ लाठीचार्ज करना यह बताता है कि पुलिस का माननीय उच्चतम न्यालय के दिशानिर्देश कानून संविधान में कोई यकीन नहीं है । यह सब ब्रिटिश युग के गुलाम मानसिकता वाले सरकारी तंत्र हैं। ऊँचे ओहदों पर बैठे हुए लोग अपने को सर्वशक्तिमान समझते हैं वह यह समझते हैं कि उनका कोई कुछ नहीं कर सकता है इसीलिए डी.आई.जी पुलिस लखनऊ को जब पीटने के लिए कोई नहीं दिखा तो वह औरतों पर अपने हाथ में लाठी लेकर मार पीट करने लगे। प्रशासन ने समझदारी से कार्य लिया होता तो राज्य कर्मचारियों व शिक्षकों के ऊपर लाठी चार्ज करने की कोई आवश्यकता नहीं थी । आज जरूरत इस बात की है कि प्रशासन के ऊपर ऊँचे ओहदे पर नियुक्त बीमार मानसिकता वाले लोगो की छँटनी की जाए ।
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
2 टिप्पणियाँ:
भाईसाहब दरअसल बात ये हिअ कि ऊंचा ओहदा ही मानसिकता को रुग्ण कर देता है जो कि ये सोचने के लिये मजबूर कर देता है कि वो राजा है। इस बात का कारण नीचे के मतलबपरस्त लोगों की चाटुकारिता रहती है जो कि साहब साहब करते हुए उनकी तौला करते हैं अपने काम निकलवाने के लिये यहां तक कि अपनी पत्नी को तक उनके संग भेजने में नहीं चूकते तो फिर भला ऐसे पद का व्यक्ति ऐसा व्यवहार क्यों न करेगा पद के मद में चूर होकर। उनकी छंटनी हरगिज न होगी क्योंकि सभी राजनैतिक पार्टियों को ऐसे लोगों की जरूरत होती है यदि नहीं तो जांच का नाटक करे बिना "सुओ मोटो" लेकर साले को जेल क्यों नहीं भेज दिया जाता
जय जय भड़ास
ये इनलोगों कि जवान मारदी नहीं अपितु माया बहन ( पता नहीं किसकी बहन है ये ) का करिश्मा है.
निरंकुशता कि पराकाष्ठा.
जय जय भड़ास
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