लो क सं घ र्ष !: अमेरिकी साम्राज्यवाद-1

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

अमेरिका के राजनीतिक कलैंडर में राष्ट्पतियों द्वारा स्टेट आँफ यूनियन का संबोधन परंपरागत रूप से बड़े पैमाने पर उत्साह के साथ सुना जाता है। टेलीविजन एवं अन्य माध्यमों से इसका व्यापक प्रचार किया जाता है। इस सम्बोधन में राष्ट्पति अपनी प्राथमिकताएं घोषित करते है। इसमें अन्तराष्ट्रीय मुद्दे प्रधान होते है। इस बार राष्ट्पति बराक ओबामा ने जब 27 जनवरी 2010 को स्टेट्स आँफ यूनियन को संबोधित किया तो वे काफी उत्तेजित दिखें। उन्होने अन्तराष्ट्रीय मुद्दो की चर्चा तक नहीं की। उन्होने अपना जोशीला भाषण घरेलू मुद्दों तक सीमित रखाः
’’मैं अमेरिका के लिये दूसरा स्थान स्वीकार नहीं कर सकता। चाहे जितनी मेहनत करनी पड़ें। चाहे यह जितना भी असुविधाजनक हो, यह समय उन समस्याओं के हल के लियें गंभीर होने का है, जो हमारे विकास में बाधा पैदा करते है।’’
उन्होने भारत, चीन और जर्मनी का नाम लेते हुए कहा कि ये देश किसी का इंतजार किये बगैर आगे बढ़ रहे हैं। इसलिये
अमरिका को भी दूनिया में अपना शिखर स्थान कायम रखने के लिये इंतजार किये बगैर आगे बढ़ना होगा।
ओबामा अपने संबोधन में नौकरियों की आउटसोर्सिग करने वाली अमेरिकी कंपनियों को चेताया कि टैक्सों में की गयी उनकी रियायतें खत्म कर दी जायेंगीं। उन्ही कंपनियों को रियायतें दी जायेंगी जो अमेरिका में ही नौकरियों का सृजन करती हैं।
अमेरिका दुनिया में दूसरा स्थान स्वीकार नहीं कर सकता। अमेरिका दुनिया में अपना शिखर स्थान कायम रखने के लिये कुछ भी कर सकता है। राष्ट्पति बराक ओबामा ने जिस भाव-भंगिमा के साथ भाषण दिया उससे जान फिस्के (1842-1901) की याद एकबार फिर ताजा हो गयी। जान ओजस्वी भाषणकर्ता और तेजस्वी लेखक थे। जिसने अमेरिकी इतिहास में प्रकट नियति (Manitest Destiny) का सिधांत निरूपित किया। उसने कहा संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये केवल पश्चिमी गोलार्द्ध में ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व में प्रभुत्वपूर्ण नेतृत्व एवं शासन करने की नियति है। फिस्के अपने भाषण के प्रारम्भ में किसी भोज के मौके पर प्रस्तावित किये गये टोस्ट का यह किस्सा सुनाता था-यह टोस्ट संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये है, जो उत्तर में उत्तरी ध्रुव से, दक्षिणी ध्रुव से, पूर्व में उदय होते सूर्य में और पश्चिम में अस्त होते सूर्य से अपनी सीमायें बनाता हैं। श्रोताओं द्वारा इस महत्वाकांक्षा की जोर दार तालियों से स्वागत होता था। यह जान फिस्के था, जिसने सर्वप्रथम आंग्ल-सैक्शन सर्वश्रेष्ठता का सिद्वांत विकसित किया।
यह ध्यान देने की बात है कि जार्ज वाशिंगटन से लेकर थियोडोर रूजबेल्ट तक जो राष्ट्पति हुए, उनमें आठ फौजी जनरल थे। जार्ज वाशिंगटन स्वाधीनता संग्राम में अमेरिकी सेना के प्रधान सेनापति थे। वे अमेरिका के प्रथम राष्ट्पति बने और लगातार देा बार पद पर रहे। बाद के दिनो में ऐंड्यू जैक्सन, टेलर, फैंकलिन, रूजबेल्ट, आर्थर, बैंजालिमि, काकिनली, आइजनआवर आदि बड़े सैनिक अफसर थे, जो राष्ट्पति बनें। इन लोगों ने बड़े-बडे़ सैनिक अभियानों का नेतृत्व किया था।
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा दूसरे देशों की भूमि दखल करना और उनके घरेलू मामले में हस्तक्षेप करने की लंबी परम्परा है। सन् 1776 में जब संयुक्ता राज्य अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा हुई थी तो अतलांतिक महासागर के तट पर 133 उपनिवेशों का क्षेत्रफल केवल 386,000 वर्ग मील थां। सैनिक कार्रवाई के बाद वार्सेल्स संधि (1783) और लूईसियाना पर कब्जा कर लेने के बाद 1803 में क्षेत्रफल दुना हो गया। फलोरिडा को 1818 में, टेक्सास को 1836 में एकतरफा संयुक्त राज्य में मिला लिया गया। टेक्सास मैक्सिको का अंग था। अमेरिका ने इस देश की आधी भूमि अर्थात 558,400 वर्ग मील की विशाल भूमि हथिया ली। 1847 में ओरगान के विशाल भू-भाग 285,000 पर कब्जा कर लिया। 1867 में अलास्का को खरीदने की संधि हुई जिसके जरिये 577,400 वर्ग मील का विशाल भूखंड अमेरिका को मात्र 72 लाख डालर में मिल गया। इस तरह 1776 के मुकाबले 1880 में संयुक्त राज्य अमेरिका की जमीन दस गुना बढ़ गयी थी।
यही नहीं औद्योगिक क्षेत्र में भयंकर विकास हुआ। 1870 के मुकाबले शताब्दी के अन्तिम दशक आते-आते लोहे का उत्पादन आठ गुना, इस्पात का उत्पादन 150 गुना और कोयले का उत्पादन आठ गुना बढ़ गया। हर प्रकार के औद्योगिक उत्पादन का स्तर चार गुना उचां हो गया । 1,40,000 मील रेलवे लाइन बिछायी गयी। इसी भांति खेती का भी तेज विकास हुआ। दो मूल अनाजों गेहूँ और मक्का की उपज दूनी हो गयी। अमेरिका अनाज और माँस की आपूर्ति करने वाला दूनिया का प्रथम देश बन गया। 1870 से 1900 इस्वी की बीच विज्ञान और औद्योगिक तकनीकी अविष्कार के 6,76,000फरमूले निबंधित किये गये थे। यूरोप की विशाल पूंजी संयुक्त राज्य अमेरिका में जमा हो रही थी।
1882 में अधिक उत्पादन का संकट पैदा हुआ है। इससे 30 लाख मजदूर बेकार हो गए। पुरुष मजदूरों को कार्यदिवस 15 घंटे प्रतिदिन था। महिलाओं के लिए यह 10 से 12 घंटे प्रतिदिन था। किन्तु पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की मजदूरी आधी थी। मजदूरों की औसत आयु मात्र 30 वर्ष थी एक मजदूर की वार्षिक आय मात्र 559 डॉलर था, जबकि जीव-निर्वाह व्यय उन दिनों 735 डॉलर था। पूंजीपतियों के विशाल मुनाफे के सामने मजदूरों की यह दर्दनाक स्तिथि थी।
इस प्रकार अमेरिका को विशाल भूखंड और अपार अतिरिक्त पूँजी प्राप्त हुई। इस अतिरिक्त पूँजी और उन्नत तकनीक ने साम्राज्यवादी मंसूबे को जन्म दिया। थियोडोर रूजवेल्ट ने कहा: "हम अपनी सीमाओं के अंतर्गत एक बड़ी भीड़ के रूप में बैठे नहीं रह सकते और अपने को केवल धनी कबाडियों की भीड़ नहीं बना सकते, जो इस बात की परवाह नहीं करते कि बहार क्या हो रहा है ?" (शिकागो हैमिल्टन क्लब में १० अप्रैल १८९९ को दिया गया भाषण )
यह अतिरिक्त पूँजी के निर्यात का उछाल का समाये था। इसके साथ ही समुद्री शक्ति (SEA POWER) का सिधांत का चला। नौसेना + मालवाहक जहाज + सैनिक अड्डा=समुद्र्शक्ति (N+MM+NB=SP) Navy+Merchant Marine+ Naval Bases= Sea Power

-सत्य नारायण ठाकुर

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