लो क सं घ र्ष !: बुरा मनो या भला क्या कर लोगे होली है : खूने जिगर भी बहाओ तो जानूँ

रविवार, 28 फ़रवरी 2010

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रंगो की होली तो सब खेलते हैं।
खून जिगर भी बहाओं तो जानूँ।।
प्रेम के रंग में मन भी रंग जाए बन्धू।
कोई ऐसी होली मनाओं तो जानूँ।।
दो बदन मिलना केाई जरूरी नहीं।
दिल से दिल को मिलाओं तो जानूँ।।
ठुमरी वो फगुआ तो गाते सभी हैं।
प्रेम का गीत कोई सुनाओ तो जानूँ।।
मुहब्बत बढ़े और मिट जाए नफरत।
कोई रीति ऐसी चला तो जानूँ।।
रूला देना हँसते को है रस्में दुनिया।
रोते हुए की हँसाओ तो जानूँ।।
है आसान गुलशन को वीरान करना।
उजड़े चमन को बसाओ तो जानूँ
अपना चमन प्यारे अपना चमन है।
दिलोजान इस पर लुटाओं तो जानूँ।।
मिट जाए जिससे दिलो का अँधेरा।
कोई शम्मा ऐसी जलाओं तो जानूँ।।
ऐशो इशरत में तो साथ देती है दुनिया।
मुसीबत में भी काम आओ तो जानूँ।।
मुस्कराना तो आता है सबको खुशी में।
अश्कें गम पीके भी मुस्कराओ तो जानूँ।।
अपनों वो गैरों की खुशियों के खातिर।?
जमील अपनी हस्ती मिटाओं तो जानूँ

-मोहम्मद जमील शास्त्री

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। सभी चिट्ठाकार बंधुओं को परिवार सहित होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

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