एक प्यार भरी चिठ्ठी महबूबा के नाम
शनिवार, 13 फ़रवरी 2010
तुम्हारी इस अदा का क्या जवाब दू,
अपने दोस्त को क्या उपहार दू,
कोई अच्छा सा फूल होता तो माली से मँगवाते,
जो खुद गुलाब है उसको क्या गुलाब दू…
रब ने जब तुझे बनाया होगा
एक सुरूर उसके दिल में आया होगा,
सोचता होगा क्या दूँगा तोहफे में तुझे,
तब उसने मुझे बनाया होगा.
काश हम sms होते,
एक क्लिक में तुम्हारे पास होते,
भले तुम हमे डिलीट कर देते,
पर कुछ पल के लिए हम तुम्हारा एहसास तो होते…!
तन्हाईओं मे उनको ही याद करते हैं,
वो सलामत रहे यही फरियाद करते है,
हम उनके ही मोहब्बत का इंतज़ार करते है,
उनको क्या पता हम उनसे कितना प्यार करते है.
एक दिन हमारे आसू हमसे पूछ बैठे,
हमे रोज़ -रोज़ क्यों बुलाते हो,
हमे कहा हम याद तो उन्हे करते हैं
तुम क्यों चले आते हो.
हर फूल की अजब कहानी है,
चुप रहना भी प्यार की निशानी है,
कहीं कोई ज़ख़्म नहीं फिर भी क्यूँ दर्द का एहसास है,
लगता है दिल का एक टुकड़ा आज भी उसके पास है
किस्मत पर ऐतबार किसको है,
मिल जाए खुशी इनकार किसको है,
कुछ मजबूरियाँ हैं मेरे दोस्त,
वरना जुदाई से प्यार किसको है
कल मिला वक़्त तो जूलफें तेरी सुलझा दूँगा,
आज उलझा हूँ ज़रा वक़्त को सुलझाने में,
यूँ तो सुलझ जाती हैं उलझी ज़ूलफें,
उमर काट जाती है वक़्त को सुलझाने में.
डरते है आग से कही जल ना जाए
डरते है ख्वाब से कहीं टूट ना जाए
लेकिन सबसे ज़ियादा डरते है आपसे
कहीं आप हमे भूल ना जाए
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें