हिंदी फिल्म "हल्ला बोल" जैसा लग रहा है शाहरुख खान-ठाकरे विवाद

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010


पिछले कुछ दिनों से मुंबई में शिवसेना और शाहरुख खान का लगातार चल रहा विवाद देख रही थी। भाईसाहब डा.रूपेश श्रीवास्तव जी ने इस विवाद के शुरू होते ही एक घोषणा कर दी थी कि इस मामले के कारण शिवसेना खुद ही अपने ताबूत में कील ठोक रही है। शाहरुख ने इस मामले में विनम्रता बनाए रखते हुए राष्ट्रीय वैचारिकता का उत्तम परिचय दिया साथ ही अपनी उस स्थिति को भी परख लिया कि वे कितने मजबूत हैं। इस पूरे प्रकरण में अभी कुछ समय पहले आयी एक हिंदी फिल "हल्ला बोल" याद आ गयी जिसमें समीर खान( अजय देवगन) एक नामचीन अभिनेता हैं और परिस्थिति वश एक इसी तरह के राजनेता से भिड़ जाते हैं। यकीन मानिये कि शाहरुख ने जो रुख अपनाया वह काफ़ी हद तक अपनी लोकप्रियता और रीढ़ की हड्डी की मजबूती के चलते सही था और उस फिल्म से प्रेरित था क्योंकि शाहरुख जानते हैं कि बालठाकरे जैसे लोग उनकी लोकप्रियता के आगे कीड़े हैं। शिवसेना के संजय राउत ने धमकी दी के शाहरुख का घर "मन्नत" मुंबई में है, माय नेम इज़ खान नामक फिल्म को रिलीज नहीं होने देंगे, उन्हें मुंबई आने पर देख लेंगे वगैरह......। इन सियारों ने इकट्ठा होकर शाहरुख के घर पर पथराव करा, उसके पोस्टर फाड़े ऐसे में आप सोचिए कि शाहरुख के पत्नी बच्चों पर क्या बीती होगी, ये बिल्कुल फिल्म के सीन का हकीकत में होने जैसा था।
आज देखा कि सामना के एडिटर संजय राउत ने थूक कर चाट लिया, कल उद्धव ठाकरे ने भी थूका और चाटा ये कह कर कि शाहरुख से उनके अच्छे संबंध हैं लेकिन वो लोग जो कर रहे हैं मुंबई के लिये कर रहे हैं। हल्ला बोल फिल्म में फिल्म का नायक राजनेता के घर जाकर उसके यहां पेशाब करके नेता को उसकी औकात बता देता है। ठाकरे और उसके लोमड़-सियारों को आज राहुल गांधी ने भी आकर इनकी सही औकात बताई है, पहले बहुत बकबक जारी थी फिर बोले काले झंडे दिखायेंगे। ये बेवकूफ़ मरते हुए लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि फासीवाद की एक उम्र होती है और वह पूरी हो चुकी है इस जर्जर सोच को लेकर ये अब ज्यादा समय तक राज्य नहीं कर सकते ये धीरे धीरे मर रहे हैं। इसी सोच से पैदा हुआ राज ठाकरे नाम का छोटा सियार भी बहुत भन भन करता है लेकिन उसे भी भारत की राष्ट्रीय सोच एक दिन मार ही देगी और ये लोग देश छोड़ कर या तो भाग जाएंगे या फिर यहीं कहीं ठेकेदारी दलाली करते नजर आएंगे। राहुल गांधी को काले झंडे दिखाओ या पीले उससे क्या फर्क पड़ने वाला है। पुलिस ने कुछ सियार पकड़ कर पिंजरे में कर दिये हैं बाद में छोड़ दिये जाएंगे कि जाओ और हुआ हुआ करो
शिवसेना का मुंह पूरी तरह से काला हो गया है, मैं भले ही कांग्रेस से सहमत नहीं पर फासीवादी शक्तियों को परास्त होते देख कर अच्छा लगा। मैंने मुंबई में इन दुष्टों का आतंक देखा है लेकिन आज इनका पराभव भी देख रही हूं।
जय जय भड़ास

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