प्राथमिक शिक्षा पर अपेक्षा से कम आंवटित हुआ है

गुरुवार, 4 मार्च 2010



शिरीष खरे
 बजट-2010 में प्राथमिक शिक्षा पर अपेक्षा से बहुत कम आंवटित हुआ है। अपेक्षा यह की जा रही थी कि इस बार कम से कम 71,000 करोड़ रूपए आंवटित होंगे, मगर प्राथमिक शिक्षा में 26,800 करोड़ रूपए से 31,300 करोड़ रूपए की ही बढ़ोतरी हुई है। चाईल्ड राईटस एण्ड यू द्वारा देश के सभी बच्चों के लिए निशुल्क और बेहतर गुणवत्ता वाली शिक्षा की मांग की जाती रही है, संस्था यह मानती है कि अभी तक बच्चों के लिए जो धन खर्च किया जाता रहा है वह जरूरत के हिसाब से बहुत कम है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि संस्था का 6700 समुदायों में काम करने का तर्जुबा यह कहता है कि देश में गरीबी का आंकलन वास्तविकता से बहुत कम हुआ है। बहुत से बच्चे ऐसे हैं जो गरीबी रेखा के ऊपर होते हुए भी हाशिए पर हैं। यानि एक तो हम गरीबी को वास्तविकता से बहुत कम आंक रहे हैं और उसके ऊपर आंकी गई गरीबी के हिसाब से भी धन खर्च नहीं कर रहे हैं, ऐसे में स्थितियां सुधरने की बजाय बिगड़ेगी ही।
 
हालांकि चाईल्ड राईटस एण्ड यू ने बजट 2010 में महिला और बाल विकास की योजनाओं के आंवटन में बढ़ोतरी करने और 1,000 करोड़ रूपए के राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा कोष बनाए जाने का स्वागत किया है। मगर संस्था के मुताबिक सरकार को बच्चों की गरीबी दूर करने के लिए और अधिक निवेश करने की जरूरत थी। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकारी आकड़ों के लिहाज से देश की 37.2% आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। जो दर्शाती है कि देश में गरीबी बहुत तेजी से बढ़ रही है। यानि जितना हम सोचते हैं उससे कहीं ज्यादा बच्चे गरीबी में जीने को मजबूर हैं। चाईल्ड राईटस एण्ड यू की सीईओ पूजा मारवाह यह मानती है कि ``बच्चों की गरीबी उनका आज ही खराब नहीं करती है बल्कि ऐसे बच्चे बड़े होकर भी वंचित के वंचित रह जाते हैं।´´ इसलिए सरकार को अपने बजट में बच्चों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए उनके खर्च में उचित बढ़ोतरी करनी चाहिए थी। मगर भारत सरकार जीडीपी का तकरीबन 3% शिक्षा और तकरीबन 1% स्वास्थ्य पर खर्च करती है, जबकि विकसित देश जैसे अमेरिका, बिट्रेन और फ्रांस अपने राष्ट्रीय  बजट का 6-7% सार्वजनिक शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं।
 
 
हमारे देश में शिक्षा के अधिकार का कानून है जो देश के सारे बच्चों को निशुल्क और बेहतर गुणवत्ता वाली शिक्षा पहुंचाने के मकसद से तैयार हुआ है। मगर सार्वजतिक शिक्षा की बिगड़ती स्थितियों को देखते हुए, बहुत से गरीब बच्चे स्कूल से दूर हैं। ऐसे में अगर बजट में शिक्षा पर अपेक्षा से बहुत कम खर्च किया जाएगा तो शिक्षा के अधिकार का कानून बेअसर ही रहेगा। आज देश के बच्चों ही हालत यह है कि लगभग 40% बस्तियों में प्राथमिक स्कूल नहीं हैं। 48% बच्चे प्राथमिक स्कूलों से दूर हैं। 1.7 करोड़ बाल मजदूर हैं। 5 साल से कम उम्र के आधे बच्चे सामान्य से कमजोर हैं। 77% लोग एक दिन में 20 रूपए भी नहीं कमा पाते हैं। ऐसे में अगर सरकार बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर उचित खर्च नहीं करेगी तो एक शिक्षित और स्वस्थ्य भारत के भविष्य से जुड़ी उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा।
 
- - - -

शिरीष खरे ‘चाईल्ड राईटस एण्ड यू’ के ‘संचार-विभाग’ से जुड़े हैं। 
संपर्क : shirish2410@gmail.com 
ब्लॉग : crykedost.tk


--

Shirish Khare
C/0- Child Rights and You
189/A, Anand Estate
Sane Guruji Marg
(Near Chinchpokli Station)

Mumbai-400011

www.crykedost.blogspot.com

        I believe that every Indian child must be guaranteed equal rights to survival, protection, development and participation.
As a part of CRY, I dedicate myself to mobilising all sections of society to ensure justice for children.

1 टिप्पणियाँ:

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान ने कहा…

shiksha me peiso ki bhumika adhik nahi hai,hume samaj me shiksha ke liye anukultaon ka srijan karna chahiye.

प्रकाशित सभी सामग्री के विषय में किसी भी कार्यवाही हेतु संचालक का सीधा उत्तरदायित्त्व नही है अपितु लेखक उत्तरदायी है। आलेख की विषयवस्तु से संचालक की सहमति/सम्मति अनिवार्य नहीं है। कोई भी अश्लील, अनैतिक, असामाजिक,राष्ट्रविरोधी तथा असंवैधानिक सामग्री यदि प्रकाशित करी जाती है तो वह प्रकाशन के 24 घंटे के भीतर हटा दी जाएगी व लेखक सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी। यदि आगंतुक कोई आपत्तिजनक सामग्री पाते हैं तो तत्काल संचालक को सूचित करें - rajneesh.newmedia@gmail.com अथवा आप हमें ऊपर दिए गये ब्लॉग के पते bharhaas.bhadas@blogger.com पर भी ई-मेल कर सकते हैं।
eXTReMe Tracker

  © भड़ास भड़ासीजन के द्वारा जय जय भड़ास२००८

Back to TOP