नोटों की माला/ बार डाँसर बनाम मायावती

गुरुवार, 18 मार्च 2010

वैसे इसे दुर्भाग्य कहिये या कि सौभाग्य लेकिन अब तक कभी किसी बीअर बार में जाना नहीं हुआ है। एकाधा बार कभी किसी दोस्त की पत्नी के कहने पर कि भाई जाकर अपने दोस्त को तलाश लाइये, इस पुनीत उद्देश्य से गए भी तो दोस्त महाराज बाहर ही औंधे पड़े मिल गये यानि कि कुल मिला कर अंदर तब भी न जाना हुआ। हिंदी फिल्मों में दारूखाने पर फिल्माए गानों में कूल्हे और सीना मटका-मटका कर बेवड़े ग्राहकों के इर्दगिर्द नाचती नचनियों पर नोट उछालने के दृश्य तो कई बार देखे हैं, इन दृश्यों में जब ग्राहक कोई माफ़िया डॉन वगैरह बताया जाता है जिसके पास दूसरों का लूटा हुआ खूब पैसा होता है तो दिखाया जाता है कि वह नचनिया को नोटों की माला पहना देता है। इस गहन गम्भीर विषय पर जब अपने बेवड़े मित्र से जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि भाई आप तो नादान हो बार-संस्कृति के बारे में कुछ नहीं जानते, वहाँ पर नचनियों को आप छू नहीं सकते उन पर दूर से पैसा लुटाना होता है। मैंने कहा भाई कौन रोक लेगा दारू में तर्राट होने के बाद जब जेब भरी हो तो नचनिया को छूने से तो उन्होने मुझ अज्ञानी का ज्ञानवर्धन करा कि वहाँ संस्कृति रक्षक के तौर पर पहलवान नियुक्त रहते हैं जिन्हें "बाउंसर" कहा जाता है वो आपको इस कोशिश के फलस्वरूप बाहर बाइज्जत फेंक देते हैं यानि अगर बाई जी को थोड़ा सा टच करना है तो माला का बहाना चाहिये और ये भी कि मालाएं बनी बनाई रेडीमेड मिल जाती हैं पचास, सौ, पाँच सौ और हजार के नोटों की वहीं काउंटर से। जब आप नचनिया को माला पहना देते हैं तो बाउंसर आपको संस्कृति में शामिल मान कर जीजा जी मान लेते हैं। वहीं नचनियाँ भी आप पर झुक जाया करती है छू-छुआ लिया करती है, बस्स्स्स ...... आप खुश.... और क्या चाहिये... बाकी तो बाहर पटाया जाता है आगे की कार्यवाही के लिये।
कुछ दिनों से लगातार देख रहा हूँ कि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को नोटों की माला पहनाई जा रही है वो भी हजार-हजार के नोटों की। मायावती प्रदेश के विकास संबंधी कार्य के बारे में बाई का मानना है कि हाथियों की मूर्तियां और कुछेक अपनी और स्व.कांशीराम की मूर्तियाँ लगवा देने से विकास अपने आप हो जाएगा जिस तरह से वेद उपासना करने वाले हिन्दुओं का मूर्ति पूजक हो जाने से स्वतः ही हो गया। मायावती मूर्तियों की महिमा जानती हैं। नोटों की माला को पहनने की स्वीकृति दर असल एक मानवीय प्रकृति है जो कि बार में नाचने वाली नचनिया और मायावती में भिन्न-भिन्न रूपों में दिखाई देती है भले ही वे नोट खून में डूबे हों........ये फ़ितरत जानती है कि इसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।
जय जय भड़ास

2 टिप्पणियाँ:

मनोज द्विवेदी ने कहा…

CHADH GAYE GUNDE HATHI PAR
NOTO KI MALA MAYA KI CHHATI PAR..

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